बैड लोन के मामले में दुनिया के सिर्फ चार देश हैं भारत से आगे
|बैंकों के औसतन 9.85% लोन फंसे होने के कारण भारत उन देशों के समूह में शामिल हो गया है जिनके नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स (NPAs) बहुत ज्यादा हैं। सिर्फ यूरोपियन यूनियन के चार देश ही इस मोर्चे पर भारत से आगे हैं। इस लिस्ट में शामिल पुर्तगाल, इटली, आयरलैंड, ग्रीस और स्पेन को आम तौर पर पिग्स (PIIGS) भी कहा जाता है।
रेटिंग्स एजेंसी केयर के एक शोध पत्र के मुताबिक, भारत का एनपीए रेशियो ‘हाई एनपीए’ वाले देशों में सबसे ज्यादा है। भारत के एनपीए में रीस्ट्रक्चर्ड ऐसेट्स शामिल नही हैं जो एनपीए से भी करीब 2% ज्यादा है। पिग्स देशों में स्पेन के बैड लोन का रेशियो भारत से कम है।
केयर के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनैविस ने रिपोर्ट में कहा, ‘एनपीए की समस्या की गंभीरता को पूरे तंत्र में फंसे ऐसेट्स के संपूर्ण स्तर के रूप में देखा जा सकता है। 2015 में जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने ऐसेट क्वॉलिटी रेकग्निशन (AQR) की बात कही, तब से इन ऐसेट्स की पहचान करने की गति बढ़ गई है। यूरोपीय राष्ट्रों में बैड लोन्स की समस्या बहुत पुरानी है जबकि हमारे यहां सिर्फ दो साल पहले ही इसकी पहचान हुई है।’
भारतीय बैंकों ने स्ट्रेस्ड लोन्स को एनपीएज मानना तब शुरू किया जब पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने AQR नियम लागू किए। इसने बैंकों को उन कर्जदारों को डिफॉल्टर्स की सूची में डालने को बाध्य किया जिनके पास पड़े लोन अटक गए। सबनैविस के मुताबिक, एनपीएज ने दोहरी समस्या पैदा कर दी। पहली, इससे बैंकों की पूंजी घट गई और दूसरी, इससे लंबी अवधि के प्रॉजेक्ट्स के लिए कर्ज देने की बैंकों की क्षमता कम हो गई। इसी वजह से ज्यादातर सरकारी बैंक रिटेल लोन पर जोर दे रहे हैं।
रिपोर्ट में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को चार वर्गों में बांटा गया है- बहुत कम एनपीए, कम एनपीए, मध्यम स्तर का एनपीए और बहुत ज्यादा एनपीए। जिन देशों में बैड लोन का स्तर बहुत कम है, वे हैं- ऑस्ट्रेलिया, यूके, हॉन्ग कॉन्ग, कनाडा और दक्षिण कोरिया। उभरते बाजारोंवाली अर्थव्यवस्थाओं में चीन, अर्जेंटिना और चीली के बैड लोन का रेशियो बहुत कम (1-2%) है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, भारत में बैड लोन की समस्या बहुत गंभीर है, फिर भी इसे तेज वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था बनने का फायदा मिलेगा। इससे यूरोप के बड़े बैड लोन वाले देशों के मुकाबले भारत बेहतर स्थिति में रहेगा।
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