बनारसः यहां एक हॉस्‍टल गाय-भैंस और कुत्ते-बंदरों का भी

वाराणसी
गाय हो या भैंस या फिर बंदर व कुत्ते, इन सबके लिए हॉस्टल। यह सुनने में कुछ अटपटा जरूर लगेगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के बनारस में ऐसी जगह भी है। अगर आपने अपने घर में गाय, कुत्ता या कोई अन्य जानवर पाल रखा है और छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए सपरिवार बाहर जाने पड़े तो इनके रहने-खाने की चिंता करने की जरूरत नहीं है। अपने पालतू जानवर को ‘आश्रय फॉर सिक एंड हेल्प्लेस एनिमल्स सेंटर’ के हॉस्टल में रख सकते हैं।

यहां इनके देखभाल की पूरी व्यवस्था है। यही नहीं, इस हॉस्टल से लगा एक भी हैं। इसमें सड़क पर घायल पड़े जानवरों का इलाज होता है। बस एक कॉल करने भर की देर है। डॉक्टरों की टीम ऐम्बुलेंस के साथ पहुंचकर बीमार या चोटिल जानवर को इलाज के लिए ले जाएगी। अंधे या अपंग हो चुके पशुओं को रखकर उनकी सेवा भी की जाती है। खास यह है कि यह सब कुछ बिना किसी सरकारी मदद या चंदे के किया जा रहा है।

सोच को अंजाम तक पहुंचाया

जानवरों के लिए की परिकल्पना किसान के बेटे और सेना में कर्नल रहे पीके सिंह की पत्नी आभा सिंह की है। कुछ साल पहले वाहन की चपेट में आए एक कुत्ते को सड़क पर तड़पते देख आभा सिंह का दिल ऐसा पसीजा कि बीमार और अवारा पशुओं-जानवरों का बेहतर इलाज कराने की ठान ली।

अपनी सोच को अंजाम तक पहुंचाने के लिए परिवारीजनों और मित्र-सहयोगियों की मदद से से बाबतपुर एयरपोर्ट जाने वाले मार्ग पर एक बड़ा भूखंड खरीद आश्रय फॉर सिक एंड हेल्प्लेस एनिमल्स सेंटर खोल दिया। इसके विस्तार के क्रम में आमजन की मुश्किलें कम करने को जानवरों का हॉस्टल सामने आया है। इस हॉस्टल में खासकर बीएचयू, डीजल रेल इंजन कारखाना में काम करने वाले तमाम लोग अपनी गाय-भैंस को रखकर छुट्टियों में यात्रा का आनंद ले रहे हैं। गाय-भैंस की खुराकी (भूसा-चूनी) के लिए प्रतिदिन सौ रुपये देना होता है।

शेल्टर होम में दर्जनों अंधे पशु
आश्रय फॉर सिक एंड हेल्प्लेस एनिमल्स सेंटर में आंख की रोशनी गवा चुकी अंजनी बंदरिया के साथ करीब एक दर्जन ऐसे बंदरों को जगह मिली है जो करंट लगने या अन्य किसी तरह से से चोट खाने से चलने-फिरने लायक नहीं हैं। गाय गौरी भी अंधी हो चुकी है। बड़ी संख्या घायल कुत्तों को आश्रय मिला है। बनारस घूमने आने वाले विदेशी सड़कों पर घायल पड़े पशुओं को देख सेंटर तक पहुंचाने की पहल करते हैं।

घर के किचन में बनता है जानवरों का खाना
आश्रय फॉर सिक एंड हेल्प्लेस एनिमल्स सेंटर की संचालिका आभा सिंह के मुताबिक और बंदरों के लिए खाना उनके घर के किचन में ही बनता है। निर्धारित ब्रेक फास्ट और लंच टाइम पर सेंटर के कर्मचारी बनारसी, सुमित, सचिन आदि इन्हें चावल, दूध, अंडा और बिस्कुट देते हैं।

रेस्क्यू टीम भी
सेंटर में सात कर्मचारियों की भी है। हेल्प लाइन नम्बर ( 09839309337व 09918800802) पर कहीं से भी फोन आते ही तुरंत रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंच घायल जानवरों को सड़क से उठा स्ट्रेचर में बांध ऐम्बुलेंस से आश्रय स्थल लाती है। इनके इलाज पर चाहे जितना खर्च हो, संस्था वहन करती है। पूरी तरह ठीक हुए जानवरों को छोड़ दिया जाता है और चलने-फिरने लायक न रहने पर ‘आश्रय’ का सहारा मिलता है।

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