फिल्‍म रिव्‍यू ‘शोरगुल’ : गुल होती इंसानियत, बचाने का शोर (2.5 स्‍टार)

दंगे इंसानियत के नाम पर बदनुमा दाग हैं, मगर आजादी के छह दशकों बाद भी हिंदुस्तान उसे ढोने को मजबूर है। ‘शोरगुल’ की सोच उसी बुनियाद पर टिकी हुई है।

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