नुकसानदेह दवाओं को फैलाने में मदद कर रहा है भारत का ड्रग ऐक्ट

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रुपाली मुखर्जी, मुंबईएक स्टडी से पता चला है कि भारत के ड्रग ऐक्ट ने नुकसानदेह ड्रग्स कॉम्बिनेशन को फैलाने में मदद की है। इनमें से ज्यादातर दवाएं क्लिनिकल ट्रायल्स के बगैर ही रिटेल की दुकानों पर मौजूद हैं।

प्रतिष्ठित मेडिकल मैगजीन लांसट का कहना है कि इससे डायबीटीज के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा मेटफॉर्मिन के नुकसानदेह कॉम्बिनेशन डोज को अप्रूवल के साथ साथ मूल्य नियंत्रण से भी छूट मिल गई है।

हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को प्राप्त फाइंडिंग्स से पता चलता है कि इस (मेटफॉर्मिन) के इस्तेमाल के समर्थन में मुश्किल से ही कोई साक्ष्य मौजूद है और सुझाव देते हैं कि रेग्युलेटर को सभी लाइसेंसों को वापस ले लेना चाहिए जब तक कि मैन्युफैक्चरर इन दवाओं की सुरक्षा का कोई वैज्ञानिक औचित्य नहीं बताए। लांसट ने अपने ऐनालिसिस में कहा, ‘भारत का ड्रग ऐक्ट ऐसा है जिससे फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) को सीडीएससीओ (सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन) की मंजूरी से छूट मिल जाती है और इस कानून में सुधार की तुरंत आवश्यकता है।

हालांकि डायबीटीज कंट्रोल करने के लिए इंटरनैशनल या नैशनल ट्रीटमेंट गाइडलाइंस में मेटफॉर्मिन के फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन को लेने का सुझाव नहीं दिया जाता है लेकिन देश में इसके 500 से अधिक ब्रैंड्स उपलब्ध हैं। मेटफॉर्मिन कॉम्बिनेशन की टॉप-सेलिंग दवाओं में ऐमरिल एमपी, जेमर पीवन, ग्लिमी एम, ग्लिसीफेज पीजीवन और पायगलर जीएफ शामलि है। लांसट का कहना है कि मेटफॉर्मिन कॉम्बिनेशन वाली दवाओं का इंटरनैशनल स्तर पर बहुत ही कम इस्तेमाल होता है।

फोर्टिस सीडीओसी के चेयरमैन डॉ.अनूप मिश्रा ने बताया, ‘बहुत से संदिग्ध ड्रग कॉम्बिनेशन को प्रतिबंधित करना चाहिए और मार्केट से हटा लेना चाहिए। किसी नई एफडीसी की जांच और निगरानी के लिए सख्त शर्त और परीक्षण प्रक्रिया लागू करनी चाहिए। इसके अलावा मैन्युफैक्चिरंग कंपनी की बैक ग्राउंड और अतीत के परफॉर्मेंस की सख्ती से निगरानी होनी चाहिए।’

हालांकि, भारत में 41 मेटफॉर्मिन एफडीसी को डायबीटीज कंट्रोल करने के लिए मंजूरी दी गई हैं लेकिन उनकी मंजूरी का औचित्य स्पष्ट नहीं है। नई दवाओं को किस आधार पर मंजूरी दी गई या दी जा रही है, इस बारे में ड्रग रेग्युलेटर कुछ प्रकाशित नहीं करता है। वहीं, देश की क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री के पास भारत में हुए इन ट्रायल्स के बारे में कोई डेटा नहीं है। 2009 के बाद से ट्रायल्स को अनिवार्य बना दिया गया है।

लांसट ने बताया, ‘हमारे रिसर्च से पता चलता है कि मल्टिनैशनल कंपनियों द्वारा स्पॉन्सर किए गए शॉर्ट ड्युरेशन ट्रायल्स किसी एफडीसी के संभावित नुकसानों और संभावित फायदों के बीच संतुलन है या नहीं, यह गौर करने पर फेल रहता है। वे इन कॉम्बिनेशन की सुरक्षा और प्रभाव के समर्थन में भी पर्याप्त प्रमाण नहीं देते हैं। जब इन ट्रायल्स को एफडीसी की मंजूरी के लिए WHO की गाइडलाइंस के पैमाने पर परखा गया तो कोई भी ट्रायल्स सुरक्षा के मापदंड पर खरा नहीं उतरा।

रंजीत रॉय चौधरी की अध्यक्षता वाली एक्सपर्ट कमिटी ने पहले बताया था कि भारत में करीब 85,000 ड्रग फॉर्म्युलेशन मौजूद हैं, जिनकी बिल्कुल मार्केटिंग नहीं की जानी चाहिए क्योंकि उनकी मंजूरी के वैज्ञानिक आधार की तुरंत समीक्षा करने की आवश्यकता है। एक संसदीय रिपोर्ट में पता चला कि आवश्यक क्लिनिकल ट्रायल्स के बगैर नए ड्रग अप्रूवल्स दिए जा रहे हैं।

अंग्रेजी में भी पढ़ें: Drug Act aiding harmful combo of meds: Lancet

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