दिल्ली एमसीडी उपचुनाव के नतीजों का क्या है मतलब

नई दिल्ली
पिछले दो सालों के अंदर दिल्ली में तीन इलेक्शन हुए और तीनों इलेक्शन में राजधानी में एकदम अलग नतीजे देखने को मिले। जहां लोकसभा चुनावों में दिल्ली के लोगों ने बीजेपी की झोली में सातों सीटें डाल दीं वहीं विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को 67 सीटें देकर नया इतिहास रच दिया।

वहीं अब एमसीडी की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में सत्ता से बिल्कुल बाहर हो गई कांग्रेस को एक बार फिर ‘वापसी’ कराकर राजधानी में पॉलिटिकल बैलेंस बनाने की दिल्ली के लोगों ने कोशिश की। इन तीनों चुनावों के नतीजों से साफ है कि किसी भी चुनाव के पैटर्न से आगे आने वाले चुनावों का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। इन रिजल्ट से लोगों ने यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि अगर उनकी उम्मीदों पर सत्ताधारी पार्टियां खरा नहीं उतरतीं तो वे उन्हें बदल डालेंगे।

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में दिल्ली के लोगों ने सातों सीटों पर बीजेपी को जिताया। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर रही और कांग्रेस तीसरे नंबर। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में एक साल के अंदर ही लोगों ने दिल्ली के रिजल्ट एकदम बदल दिए। इस चुनाव में 70 सीटों में से 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी को जिता दिया। बीजेपी केवल 3 सीटों पर सिमटकर रह गई। वहीं कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया।

इस चुनाव में जहां आप को करीब 54 फीसदी वोट मिले, बीजेपी को करीब 32 फीसदी तो कांग्रेस को केवल 9.7 फीसदी ही वोट मिल पाए। लेकिन एमसीडी की 13 सीटों पर हुए उप चुनावों में पॉलिटिकल बैलेंस कर दिया। बीजेपी को सबसे ज्यादा 34.11 फीसदी वोट दिए, लेकिन सीट केवल 3 मिलीं। आप को 5 सीट मिलीं लेकिन वोट 29.93 फीसदी रह गया। कांग्रेस जिसका लग रहा था कि फिर से राजनीति में वापसी होना मुश्किल होगा उसे 24.87 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस को 4 सीट मिली साथ ही पार्टी के बागी निर्दलीय उम्मीदवार ने जीतने के बाद फिर से कांग्रेस में वापसी कर ली और सीटों की संख्या 5 हो गई।

इस चुनाव में यह भी देखने को मिला कि गांव और अनॉथराइज्ड कॉलोनियों में रहने वाले वोटरों ने कांग्रेस का फिर से हाथ थामा। इससे साफ है कि कांग्रेस के वोटर फिर से वापसी हो रहे हैं। जेजे क्लस्टर एरिया में आप को भी वोट मिले। दिल्ली में सफाई और विकास जैसे मुद्दों पर यह चुनाव लड़ा गया। ​अनॉथराइज्ड कॉलोनियों में विकास के मुद्दे और हल ना होने के कारण भी लोगों की नाराजगी दिखी। सफाई कर्मचारियों की सैलरी के मुद्दे भी चुनाव में खूब उछले। चूंकि अगले साल तीनों एमसीडी का चुनाव होना है इसलिए तीनों पार्टियों को सोचना होगा कि लोगों की समस्याएं हल नहीं होंगी तो रिजल्ट फिर बदल सकते हैं।

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