‘तानाशाह’ केजरीवाल के खिलाफ मैदान में डटे प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव
| आम आदमी पार्टी (आप) में मचे घमासान के बीच योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों पर गंभीर सवाल उठाए। प्रशांत भूषण ने कहा कि कल पार्टी के लिए ऐतिहासिक दिन है और हम चाहते हैं कि इसकी बैठक किसी हंगामे के बिना सुचारू तरीके से हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों से कहा गया है कि उन्हें फोन भी भीतर लेकर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी, यह गलत है और हम मांग करते हैं कि बैठक की रिकॉर्डिंग कराई जाए। भूषण ने तर्कों और तथ्यों के जरिए यह जताने की कोशिश की कि केजरीवाल तानाशाह हैं और उन्हें ऐसे लोग बर्दाश्त नहीं है जो उनकी हां में हां नहीं मिला सकते। योगेंद्र यादव के अलावा प्रफेसर आनंद कुमार और अजीत झा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद प्रशांत भूषण ने राष्ट्रीय परिषद की बैठक में गड़बड़ी की आशंका जताते हुए कहा कि सभी विधायक जो परिषद के सदस्य भी नहीं है, उन्हें इसमें आमंत्रित सदस्य के तौर पर बुलाया गया है। उन्होंने कहा कि इन विधायकों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने साथ 50-50 समर्थकों को लेकर राष्ट्रीय परिषद में पहुंचे। प्रशांत भूषण ने कहा कि मैं कार्यकर्ताओं से आग्रह करता हूं कि जो राष्ट्रीय परिषद के सदस्य नहीं हैं, वे बैठक में न आएं। पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से निकाले जा चुके योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने एक बार फिर दोहराया कि अरविंद केजरीवाल का राष्ट्रीय संयोजक रहना उनके लिए मुद्दा नहीं है। दोनों ने कहा कि वे कोई भी मुद्दा उठाते हैं तो उसे केजरीवाल के साथ जोड़ दिया जाता है और कहा जाता है कि आप दोनों राष्ट्रीय कार्याकरिणी से इस्तीफा दे दीजिए। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि अरविंद किसी भी हाल में हमारे साथ काम करने को तैयार नहीं हैं। दोनों ने कहा कि कल पार्टी की तरफ से यह झूठ बोला गया कि हमने इस्तीफा दे दिया है, जबकि हमारी एक भी मांगें नहीं मानी गई हैं। योगेंद्र यादव ने कहा कि पिछले एक महीने में पार्टी में बहुत कुछ टूटा है और उथलपुथल के बीच आंदोलन की आत्मा को बचाए रखने का संघर्ष है। उन्होंने कहा कि यह कोई मुद्दा नहीं है कि प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव किसी कमिटी में रहें या नहीं, हम तो केवल इतना चाहते हैं कि कार्यकर्ताओं की आवाज सुनी जाए और बड़े निर्णयों में उन्हें वोट देने का अधिकार दिया जाए। उनकी बात को माना जाए या नहीं, इसका फैसला नेतृत्व पर छोड़ दिया जाए। योगेंद्र यादव ने राज्य यूनिटों की स्वायत्तता की पैरवी करते हुए कहा कि उन्हें कम से पंचायत और पालिका चुनाव लड़ने का फैसला लेने की छूट दी जाए। योगेंद्र यादव ने कहा,’जो भी मुद्दा उठाया जाता है, उसे अरविंद केजरीवाल से जोड़ दिया जाता है। पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक कौन होगा, यह मुद्दा हमारी तरफ से उठाया ही नहीं गया था। बार-बार कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय परिषद में तय होगा कि पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक कौन होगा। मैं उन्हें बताना चाहता हूं पार्टी संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय परिषद में संयोजक का फैसला नहीं हो सकता है, इसके लिए उचित मंच राष्ट्रीय कार्यकारिणी है। पार्टी की साइट से संविधान हटा दिया गया है, जिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं है, उन्हें मैं पार्टी का संविधान मैं भेंट करने के लिए तैयार हूं।’ योगेंद्र यादव के बाद प्रशांत भूषण ने कहा, ’16 मार्च को जब अरविंद केजरीवाल बेंगलुरु से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे तो उन्हें मैंने एसएमएस भेजकर समय मांगा था, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें 11 दिनों बाद भी मिलने का समय मांगा। उन्होंने हमारे मुद्दे पर कुछ लोगों को बातचीत के लिए अधिकृत किया गया और हमारी तरफ से हमने प्रफेसर आनंद कुमार व अजीत झा को बातचीत के लिए कहा। हर चीज के जवाब में यही कहा जाता है कि आप लोग राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दीजिए, हम सब देख लेंगे।’ भूषण ने कहा, ‘अरविंद केजरीवाल की तरफ से यह बात बार-बार कही गई कि वह हमारे साथ काम नहीं कर सकते। मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह स्थिति पैदा क्यों हुई। जब हमें पता चला कि अरविंद फिर से कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के लिए तैयार थे, तो मैंने कहा कि इससे पार्टी टूट जाएगी, लेकिन अरविंद इस पर अड़ गए कि वह पार्टी संयोजक हैं और पीएसी सदस्यों की आपत्ति के बावजूद अपनी इच्छा के हिसाब से फैसला ले सकते हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने जब यह मुद्दा आया तो उसने भी इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, इसके बावजूद जैसा कि राजेश गर्ग के ऑडियो टेप से साफ हो गया कि पार्टी की ओर से कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की जाती रही। कांग्रेस के उन छह विधायकों को ही तोड़ने की कोशिश की गई, जिन पर अरविंद केजरीवाल और पार्टी ने 4-4 करोड़ रुपये लेकर बीजेपी के साथ मिलने का आरोप लगाया था।’ मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘मैंने उनसे कहा कि अरविंद आप में बहुत खूबियां हैं, लेकिन दो भयंकर खामिया हैं जिससे पार्टी नष्ट हो सकती है। अपने मन का फैसला हर हाल में चाहते हैं और उन्हें ऐसे लोग बर्दाश्त नहीं हैं, जो उन्हें गलत कह सकते हैं। उन्होंने इसके जवाब में कहा कि मैं किसी ऐसे संगठन में रहा ही नहीं, जिसमें कोई मेरा विरोध करता हो। अरविंद को लगता है कि नीयत ठीक हो तो वह किसी भी तरीक को अपनाएं वह सही ही होगा। उन्हें लगता है कि अगर ‘आप’ दिल्ली में सरकार नहीं बना पाएगी तो देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।’ प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव की मांगें: 1. हमारा आग्रह था कि स्वराज की भावना के अनुरूप राज्य के फैसले राज्य स्तर पर हों। हमें बताया गया कि यह संगठन और कार्यक्रम के छोटे-मोटे मामले में तो चल सकता है, लेकिन देश के किसी भी कोने में पंचायत और नगर पालिका के चुनाव लड़ने का फैसला भी दिल्ली से ही लिया जाएगा । 2. हमने मांग की थी कि हमारे आंदोलन की मूल भावना के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में पार्टी पर लगाए गए चार बड़े आरोपों (दो करोड़ के चेक, उत्तमनगर में शराब बरामदगी, विधि मंत्री की डिग्री और दल-बदल और जोड़-तोड़ के सहारे सरकार बनाने की कोशिश) की लोकपाल से जांच करवाई जाए। जवाब मिला कि बाकी सब संभव है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े किसी भी “संवेदनशील” मामले पर जांच की मांग भी न की जाए। 3. हमने सुझाव दिया था कि लोकतांत्रिक भागीदारी की हमारी मांग के अनुरूप पार्टी के हर बड़े फैसले में कार्यकर्ताओं की राय ली जाय, मांग हो तो वोट के ज़रिए। जवाब मिला कि राय तो पूछ सकते हैं, लेकिन वॉलनटिअर द्वारा वोट की बात भूल जाएं, खासतौर पर उम्मीदवार चुनते वक्त। 4. हमने कहा था कि पार्टी अपने वादे के मुताबिक़ RTI के तहत आना स्वीकार करे। हमें बताया गया कि पार्टी कुछ जानकारी सार्वजनिक कर देगी, लेकिन RTI के दायरे में आना व्यावहारिक नहीं है।
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