चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ फोरम में शामिल होगा अमेरिका, भारत पर दबाव

वॉशिंगटन
पेइचिंग में 14 और 15 मई को होने वाली ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) फोरम में अब अमेरिका भी शामिल होगा। अमेरिका ने अचानक यूटर्न लेते हुए चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ फोरम में शामिल होने का फैसला किया है। अमेरिका का यह कदम भारत पर काफी दबाव डालने वाला है क्योंकि अभी तक भारत ने चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ इनिशिएटिव में अपना प्रतिनिधि भेजने पर कोई निर्णय नहीं लिया है। भारत मानता है कि चीन ने अपनी इस परियोजना के लिए भरोसे का माहौल पैदा नहीं किया।

चीन के नापाक इरादों का सबसे बड़ा उदाहरण है चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा। चीन CPEC के द्वारा शिनजियांग को ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने की फिराक में है जिसे उसने बलूचिस्तान में बनाया है।

पेइचिंग भारत की संप्रभुता की उपेक्षा करते हुए इसे गिलगित-बलूचिस्तान इलाके से गुजार रहा है जिस पर भारत अपना दावा पेश करता है।

अगर भारत OBOR फोरम में अभी अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजता है तो भी इससे भारत को कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है क्योंकि OBOR सदस्यता आधारित संगठन नहीं है। वास्तव में, हो सकता है भविष्य में भारत के इस कदम की तारीफ की जाए कि वह अपने सैद्धांतिक पक्ष पर अडिग रहा। दिल्ली के सूत्रों के मुताबिक, सबसे बढ़िया होगा कि भारत जूनियर लेवल के राजनयिक अधिकारियों को प्रतिनिधि के तौर पर भेजे और उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों को भेजने से बचे।

इस फोरम की बैठक में कुछ भारतीय विशेषज्ञ भी शामिल हो सकते हैं। इस बैठक में 50 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग लेंगे।

इस बैठक में अमेरिका का भाग लेना हालांकि एक राजनीतिक फैसला है लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिका इसमें आर्थिक भागेदारी भी निभाने जा रहा है जिसमें चीन का ‘100 डे प्लान’ समझौते के तहत अमेरिकी बीफ को खरीदने की प्रतिबद्धता जताना है। वहीं, दूसरी तरफ वॉशिंगटन ने अमेरिका में चीनी बैंकों को विस्तार के लिए अनुमति प्रदान करना है।

नई दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज ऐंड एनालिसिस में रिसर्च कर रहे जगन्नाथ पंडा के मुताबिक, ‘भारत OBOR को लेकर अभी कश्मकश में है, भारत को अमेरिका के फैसले पर ध्यान में रखकर फैसला लेना होगा। यह एक मजबूत संकेत है कि ट्रंप प्रशासन यूएस-चीन संबंधों को नए आयाम देने की कोशिश कर रहा है।’

अमेरिका मैथ्यू पॉटिंगर की अगुवाई में एक इंटर-एंजेसी प्रतिनिधि दल भेज रहा है। मैथ्यू ट्रंप प्रशासन के टॉप सलाहकार और एनएसए, पूर्वी एशिया के वरिष्ठ निदेशक हैं।

चीन के प्रभुत्व वाले इस प्रॉजेक्ट के प्रति उदासीनता बरते रहा अमेरिका अब उन विकसित देशों (ब्रिटेन और जर्मनी) के समूह में शामिल हो गया है जो अपने प्रतिनिधि पेइचिंग भेज रहे हैं। अमेरिका का कहना है कि उसकी मौजूदगी से चीन पर अपनी योजनाओं को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए दबाव पड़ेगा और वह प्रॉजेक्ट में पर्यावरण और लेबर के मामले में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करेगा।

चीन के साथ सैन्य मतभेद रखने वाले जापान और दक्षिणी कोरिया भी पेइचिंग अपने प्रतिनिधि भेजने को राजी हैं। वहीं दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे पर मतभेद रखने वाले वियतनाम और इंडोनेशिया भी अपने आधिकारिक प्रतिनिधि चीन भेजेंगे। पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका भी इसमें हिस्सा लेंगे।

चीन का दावा है कि यह सभी देशों के लिए फायदे का सौदा होगा हालांकि इस पर संशय ही है कि पेइचिंग चीनी कंपनियों के दबाव को देखते हुए प्रॉजेक्ट के फायदे को बांट पाएगा। इस प्रॉजेक्ट में 6 आर्थिक गलियारे बनाने की योजना है लेकिन अभी तक इसका कोई विश्वसनीय मैप उपलब्ध नहीं कराया गया है। यह समय के साथ विकसित किया जाएगा।

चाइनास एशियन ड्रीम के लेखक टॉम मिलर ने कहा, ‘यह रोडमैप कैसा होगा, यह पूरी तरह से चीनी कंपनियों या चीनी सरकार के अन्य देशों के साथ समझौते पर निर्भर करेगा। कोई नहीं जानता कि वे आखिर क्या करने जा रहे हैं।’

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