चीन के कर्ज से उबरने के लिए श्री लंका को भारत-जापान से आस
|बुनियादी ढांचे से जुड़े प्रॉजेक्ट्स को लेकर चीन के कर्ज में डूबने की वजह से आलोचना झेल रहे श्री लंका के पीएम रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि उन्हें भारत और जापान से विदेशी निवेश चाहिए। एक इंटरव्यू के दौरान विक्रमसिंघे ने बीते साल चीन के साथ हुए उस समझौते का भी बचाव किया जिसके तहत श्री लंका ने रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह पेइचिंग को 99 साल के पट्टे पर दे दिया था।
इस समझौते से श्री लंका को 1.1 अरब डॉलर का राजस्व मिला। एक बिजनस कॉन्फ्रेंस से इतर विक्रमसिंघे ने कहा, ‘हंबनटोटा में बोझ हम पर है, क्योंकि चीनी व्यापारियों और श्री लंका बंदरगाह प्राधिकरण ने इसका अधिकार ले लिया है।’
‘ब्लूमबर्ग’ के मुताबिक, विक्रमसिंघे ने आगे कहा, ‘हम विदेशी बड़ी संख्या में निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए सोच रहे हैं। शुरुआत में ये निवेशक चीन, जापान और भारत से आएंगे और बाद में अन्य निवेशक मिलेंगे। हमें उम्मीद है कि वे निवेशक यूरोप से होंगे।’
विक्रमसिंघे ने साल 2015 में सत्ता संभाली थी। इसके बाद से ही उनपर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का दबाव है। इससे पहले की सरकार ने साल 2009 में गृहयुद्ध से उबरने के बाद चीन से अरबों डॉलर का कर्ज लिया। अब अगर यह कर्ज बढ़ता है तो देश की आर्थिक विकास में बाधा का बन सकता है।
मुश्किलों से भरे हैं आनेवाले कई साल
हंबनटोटा पोर्ट को चीन को सौंपने के बावजूद श्री लंका राजस्व बढ़ाने वाले कदम उठाने को मजबूर है, जिसमें हाल ही का कर सुधार भी शामिल है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2017 के अंत तक श्री लंका पर चीन का कुल 5 अरब डॉलर का कर्ज था। विक्रमसिंघे ने बताया कि साल 2018, 2019 और 2020 उनके लिए मुश्किल होने वाले हैं।
भारत को टेंशन
चीन के बढ़ते कर्ज की वजह से ही श्री लंका को अपना हंबनटोटा पोर्ट चीनी व्यापारियों को देने पर मजबूर होना पड़ा। हालांकि, इस समझौते ने भारत की परेशानी बढ़ा दी क्योंकि उसका प्रतिद्वंद्वी चीन इस बंदरगाह का इस्तेमाल सैन्य अड्डे के तौर पर भी कर सकता है।
चीनी ऋण के खिलाफ लोगों के गुस्से ने ही 3 साल पहले विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना के गठबंधन को सत्ता दिलवाने में मदद की थी, जिन्होंने वादा किया था कि चीनी निवेश वाले प्रॉजेक्ट्स की समीक्षा की जाएगी, क्योंकि उसमें भ्रष्टाचार हो रहा है। सोमवार को विक्रमसिंघे ने कहा कि श्री लंका को इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि एशियाई निवेशकों को पहले बुलाकर क्या हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव की तरह जापान भी बड़ी पहल कर रहा है और भारत भी।’
उन्होंने कहा कि जापान कोलंबो बंदरगाह में निवेश के लिए रुचि दिखा रहा है और भारतीय निवेशकों ने चीन द्वारा बनाए गए हंबनटोटा एयरपोर्ट के संचालन को संभालने में रुचि जाहिर की है।
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