घास से कमा रहे, धान-दालें गंवा रहे किसान

सुबोध वर्मा, नई दिल्ली

धान, दालें, तिलहन और गेहूं से ज्यादा फायदा किसानों को घास उगाकर बेचने में हो रहा है। बीते 5 सालों में विभिन्न फसलों का महत्व कितना बदला है, इसका सीधा उदाहरण यहां देखा जा सकता है। साल 2011-12 और 2015-16 में देश में उत्पादित अनाज और दालों के मूल्य में 3 प्रतिशत की गिरावट आई थी।

तिलहन का यही आंकड़ा 13 प्रतिशत था, शक्कर का 1 प्रतिशत। वहीं, घास, जो जानवरों के चारे आदि में इस्तेमाल होती है, इसकी वैल्यू 1 प्रतिशत बढ़ी थी। 2 तरह के खाने के आइटमों – फल और सब्जी की वैल्यू 15 प्रतिशत तक बढ़ी थी और मिर्च-मसालों के मूल्य में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।

सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस द्वारा (नैशनल अकाउंट्स स्टैटिस्टिक्स 2017) से यह आंकड़े निकाले गए हैं। इन्हीं आंकड़ों का दर्द है, जो देशभर में किसानों को आत्महत्या, आंदोलन जैसे कदम उठाने पर मजबूर कर रहा है। बीज, पानी, खाद आदि की कीमतें बढ़ रही हैं और कमाई उतनी हो नहीं रही है, जिससे किसान परेशान है।

सब्जियां उगाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि वे बिना ज्यादा खाद और कीटनाशक की खपत के तैयार हो जाती हैं। 2-4 महीने में उन्हें तैयार कर बेचा जा सकता है लेकिन हर कोई फल और सब्जी ही नहीं बेच सकता। ज्यादा कमाई न होने और दामों में जल्दी उतार-चढ़ाव होने के चलते यह ज्यादा वक्त तक फायदे का सौदा साबित नहीं होता। फूड ग्रेन्स ज्यादा मुनाफा व सुरक्षित रहता है और सरकार भी इसमें किसानों का सहयोग करती है।

खबर अंग्रेजी में – for farmers today, grass is ‘greener’ than rice and pulses

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