घरों को वर्कस्पेस में बदल रहे चेन्नै के स्टार्टअप्स

शिल्पा एलिजाबेथ/भारनी वैथीश्वरन, चेन्नै

एक आरामदायक घर को कैसे स्टार्टअप्स के गढ़ में बदला जाए, अगर आप यह जानना चाहते हैं तो चेन्नै स्थित स्किलवेरी के दफ्तर का दौरा कर सकते हैं। वहां निवेशक बिजनस शुरू करने और बढ़ाने से संबंधित गुर सीखने आते हैं। स्किलवेरी के संस्थापक सबरीनाथ सी. हैं जिनका स्टार्टअप मुरुगप्पा ग्रुप के स्किल ट्रेनिंग आर्म्स के लिए लर्निंग हार्डवेयर की सप्लाई करता है। इसने हाल ही में इम्पैक्ट फर्म अंकुर कैपिटल से पूंजी जुटाई है।

सबरीनाथ ने अपने घर को ही स्टार्टअप्स के गढ़ में बदल दिया है। मॉड्युलर किचन के अंदर झूलते हुए तारों के नीचे इंटेग्रेटिड सर्किस बोर्ड्स और सोल्डरिंग मशीनें लगी हुई हैं। उनके बेडरुमों में कपड़े की शीटें पड़ी हुई हैं जो आधुनिक फैब्रिक स्टार्टअप्स माइक्रोस्पिन अपनी विशिष्ट टेक्सटाइल मशीनरी का इस्तेमाल करके बनाता है। मकान में बने हॉल में कई तरह के कंप्यूटर लगे हैं जहां टेक्नॉलजी स्टाफ नए प्रॉडक्ट्स तैयार करते हैं और एचआर एवं फाइनैंस एंप्लॉयीज वहां काम करते हैं। सबरीनाथ ने अपनी मशीनों की असेंबलिंग के लिए एक इंडस्ट्रियल डिजाइन स्टार्टअप के अन्य अपार्टमेंट से दो कमरा लिया है। इस 1,500 स्क्वेयर फीट घर के पीछे में एक छोटा सा गार्डन है जहां स्किलवेरी के संस्थापक सबरीनाथ सी., माइक्रोस्पिन और फ्रैक्टल नाम के स्टार्टअप्स के संस्थापकों के साथ लंच करते हैं।

चेन्नै में स्टार्टअप इकोसिस्टम बढ़ रहा है इसलिए छोटे ऑफिस स्पेस की जरूरत सरकार भी महसूस कर रही है जो अपने सबसे पहले आईटी हब टाइडल पार्क में जल्द ही स्टार्टअप वेयरहाउस खोलेगी लेकिन इसकी जो मौजूदा कपैसिटी है, उसमें सारे स्टार्टअप्स को अजस्ट करना संभव नहीं है। ऑफिस स्पेस की कमी से निपटने के लिए चेन्नै में स्टार्टअप्स शेयरिंग से भी काम चला रहे हैं। ऑफिस स्पेस के लिए बढ़ती हुई इस मांग को स्टार्टअप ऑफिसजुवो ने बिजनस में बदल दिया है। ऑफिसजुवो कमर्शल स्पेस किराये पर देने के लिए बना एक डिजिटल मार्केटप्लेस है। ऑफिसजुवो के सीईओ श्रीकांत टी. बताते हैं, ‘ऑफिस स्पेस तलाशने में पेश आने वाली कठिनाइयां ही ऑफिसजुवो की शुरू करने की बुनियाद है।’ श्रीकांत की 9 सदस्यों की टीम एक आईटी सर्विसेज कंपनी के साथ स्पेस साझा करके अपना काम चला रही है।

ऑफिस स्पेस शेयरिंग करने में जहां कम किराया देना पड़ता है वहीं एक-दूसरे के टैलंट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। श्रीकांत अगर अलग से कोई जगह लेते तो उनको 36,000-50,000 रुपये महीने देना पड़ता लेकिन शेयरिंग से उनको 15,000 रुपये ही देना पड़ता है। श्रीकांत बताते हैं, ‘यह इसलिए भी अच्छा होता है कि हम एक-दूसरे के टैलंट का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। हम अपना कुछ टेक वर्क उनको आउटसोर्स कर सकते हैं।’

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