खेल रत्न पाने वाले पहले पैरा-ऐथलीट देवेंद्र झाझरिया ने कहा, 12 साल बाद मिला सम्मान

नई दिल्ली
देवेंद्र सिंह झाझरिया पहलै पैरा ऐथलाीट हैं जिन्हें खेल रत्न पुरस्कार से नवाजा जाएगा। 2 बार के ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता देवेंद्र मानते हैं कि उन्हें 12 साल पहले एथेंस ओलिंपिक के बाद ही यह अवॉर्ड मिल जाना चाहिए था। बता दें कि देवेंद्र झाझरिया ने पुरुषों के भाला फेंकने के F46 वर्ग में विश्व रेकॉर्ड भी बनाया है।

देवेंद्र को साल 2016 का टाइम्स ऑफ इंडिया स्पोर्ट्स अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। देवेंद्र से हमारे सहयोगी साइट टाइम्स ऑफ इंडिया.कॉम के जिमी ऑल्टर ने खास बातचीत की। देंवेंद्र ने कहा, ‘अवॉर्ड मिलना बेहद खुशी की बात है, लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय है कि मुझे यह सम्मान देर से मिला। 2004 में जब मैंने एथेंस ओलिंपिक में गोल्ड जीता था तभी मुझे यह सम्मान मिल जाना चाहिए था।’ बता देंकि 2008 और 2012 में भाला फेंकनें में F46 कटिगरी को शामिल नहीं किया गया था। देवेंद्र ने 2016 रियो ओलिंपिक में भी गोल्ड जीतकर देश का मान बढ़ाया।

देवेंद्र को बतौर खिलाड़ी मिलने वाले सम्मान से कोई शिकायत नहीं है। वह कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि अपने खेल करियर में मुझे पहचान और सम्मान मिला है। एथेंस ओलिंपिक के वक्त मैं बहुत कम उम्र का था और मुझे दुनियादारी की समझ नहीं थी। रियो ओलिंपिक तक हालात अलग थे। रियो ओलिंपिक में खाने की मेज पर लोग मेरी तरफ देखकर कहते थे कि यह भारत का खिलाड़ी है, जिसने वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाया है। रियो जाने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हमसे बात की थी। रियो ओलिंपिक में मैं भारतीय दल का प्रतिनिधित्व कर रहा था और अपने देश के झंडे को उठाना बेहद गर्व की बात होती है। कहीं न कहीं से यह भावना थी कि अपने देश के लिए कुछ करना है।’

रियो ओलिंपिक के बाद पैरालंपियन खिलाड़ियों के लिए लोगों के नजरिए में काफी बदलाव आया है, देवेंद्र ऐसा मानते हैं। उन्होंने कहा, ‘रियो में मिली सफलता के बाद सरकार से हमें काफी प्रोत्साहन मिला। मैं मीडिया का भी शुक्रगुजार हूं जिन्होंने पैरा ऐथलीट्स का मनोबल बढ़ाया। हमें सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कई सम्मान मिले। इन सबसे हमारा हौसला बढ़ा है और पैरा ऐथलीट्स के लिए लोगों का नजरिया भी बदला है।’

देवेंद्र कहते हैं कि पैरा ऐथलीट्स के लिए सरकारी स्तर पर अब काफी सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कहा, ‘अभी तक हमारी तरह के खिलाड़ियों के लिए राज्य सरकारों के स्तर पर ज्यादा कुछ नहीं हुआ है। हमें ज्यादा से ज्यादा ग्राउंड और प्रैक्टिस के लिए जरूरी सुविधाएं चाहिए। राज्य सरकारों को इस दिशा में पहल करना होगा। हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्यों में पैरा ऐथलीट्स के लिए खास सुविधाएं हैं, लेकिन कुछ राज्यों में स्थिति अभी भी ठीक नहीं है।’

35 साल की उम्र में अपने ही रेकॉर्ड को तोड़ने के बारे में देवेंद्र कहते हैं, ’23 साल की उम्र में एथेंस में मैंने जिस रेकॉर्ड को बनाया था 12 साल बाद उसे खुद ही तोड़ना सुखद है। यह मेरे 12 सालों की तपस्या और मेरी पत्नी के त्याग की वजह से ही संभव हो सका। 12 साल के दौरान कोच की तरफ से मिलने वाले समर्थन के लिए भी मैं शुक्रगुजार हूं।’

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