कुपवाड़ा: शहीद की मां बोली, मोदी मुझे बम लाकर दें

कानपुर
शहीद कैप्टन आयुष यादव के परिवार के लिए गुरुवार का दिन कभी न भूलने वाला दर्द लेकर आया। सुबह आयुष की मां टीवी पर कुपवाड़ा में चल रही मुठभेड़ देख रही थीं, तभी उन्हें मृतकों में कैप्टन आयुष का नाम दिखा। वह रोने लगीं और होशोहवास खो बैठीं। बेटे की मौत का दुख उनसे संभाला नहीं जा रहा था और वह बार-बार रोते हुए यही कह रही थीं कि बेटे के बिना अब मैं कैसे रहूंगी। बेटे को खोने का गम इतना था कि रुंधे गले से वह बोल उठीं कि मोदी मुझे बम लाकर दे दें, मैं दुश्मनों पर बम गिराऊंगी।

दोपहर में आर्मी ऑफिसर आयुष के पिता अरुणकांत यादव के पास सांत्वना देने पहुंचे। अरुण ने किसी तरह अपने आंसू काबू में किए और बोले, यह तो सरकार की पॉलिसी है। हमने तो अपना बेटा उन्हें सौंप दिया था।

जाजमऊ एरिया की डिफेंस कॉलोनी में हर कोई कैप्टन आयुष (25) को जानता है। उनके पिता अरुणकांत अपने भाइयों के साथ एक ही बंगले में रहते हैं। आयुष की बहन रूपल की फरवरी में ही शादी हुई थी। गुरुवार सुबह आयुष की मां सरला टीवी पर कुपवाड़ा मुठभेड़ की खबरें देख रही थीं, तभी मृतकों में कैप्टन आयुष का नाम दिखा। वह रोते-रोते बेहोश सी होने लगीं।

रोते हुए मां सरला ने कहा, ‘मोदीजी को ठोस कदम उठाने चाहिए। अगर सरकार कुछ नहीं कर सकती तो मुझे बम लाकर दे। मैं दुश्मनों पर बम गिराऊंगी। अब मैं अपने बेटे के बिना कैसे रहूंगी। उससे तो रोज बात होती थी।’

शहीद आयुष के पिता

UP पुलिस में सब-इंस्पेक्टर अरुणकांत ने तुरंत पत्नी को संभाला और दिल्ली से लेकर कश्मीर तक आर्मी से संपर्क किया। वहां से आयुष की शहादत की पुष्टि होते ही पूरे परिवार का गला रुंध गया। कुछ ही देर में रिश्तेदार और कॉलोनी के लोग शोक जताने के लिए वहां पहुंच गए। दोपहर करीब 1 बजे कानपुर कैंट से आर्मी अफसर संवदेना जताने आयुष के पिता अरुणकांत यादव के पास पहुंचे। अंदर के कमरे से आयुष की मां की चीखें माहौल को भारी कर रही थीं।

आर्मी ऑफिसर ने जैसे ही अरुणकांत के कंधे पर हाथ रखा, वह रो पड़े। किसी तरह आंसुओं को आंखों में छिपाकर बोले, ‘मैं भी फौज में जाना चाहता था लेकिन मौका नहीं मिल सका। मेरे पिता रॉयल एयरफोर्स में थे। भतीजी और दामाद भी आर्मी में हैं। मेरे भाई आर्मी में है। मेरा बेटा फौज में था। यह सरकार की पॉलिसी है। मैंने अपना बेटा देश को सौंप दिया था। मंगलवार को मेरी आयुष से बात हुई थी। मैं कश्मीर के हालात को लेकर परेशान था। उसने कहा था कि पापा अब श्रीनगर आ जाओ मेरे पास। यहां ऐसी कोई दिक्कत नहीं है’। फरवरी में अपनी बहन रूपल की शादी के लिए आखिरी बार आयुष कानपुर आया था।


बस यादें बची हैं

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