एक्सपर्ट की राय : मौत जैसे गंभीर सबजेक्ट पर भी हंसाती है \’मुक्ति भवन\’

'मुक्ति भवन' रिलीज हो गई है। इसपर जानी-मानी फिल्म क्रिटिक अनुपमा चोपड़ा से dainikbhaskar.com ने जाना, कैसी है ये फिल्म…   स्टारकास्ट – आदिल हुसैन, ललित बहल, गीतांजलि कुलकर्णा, पॉलोमी जी।    डायरेक्शन फिल्म 'मुक्ति भवन' में बनारस के घाट पर जलते मुर्दे, मान्यताएं आदि के बीच डायरेक्टर शुभाशीष में हंसी ढूंढ लाए हैं। उन्होंने फिल्म की स्टोरी को काफी नपे तुले शब्दों में बताया है 'मुक्ति भवन' में एक ठहराव है जो कि आज कल की फिल्मों में कम ही देखने को मिलता है। अगर आपको भारी प्लॉट का हाई वोल्टेज ड्रामा पसंद है तो 'मुक्ति भवन' आपको बांध कर रखेगी। फिल्म में ज्यादा कुछ नहीं होता है। कहानी को बताने का तरीका, ट्विस्ट को बेहतरीन तरीके से लाया गया है। जो कि आप में फिल्म देखने के लिए पेशेंस बनाए रखता है। 'मुक्ति भवन' की परफॉर्मेंस दमदार है।    कहानी फिल्म का एक बूढ़ा आदमी दयानंद कुमार (ललित बहल) को लगता है कि उनका आखिरी वक्त आ गया है। वो बनारस के एक लॉज (मुक्ति भवन) में मरना चाहता है। जहां उनके पिता की मौत हुई थी। दया का बेटा राजीव (आदिल हुसैन) थोड़ा अजीब होता है।…

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