इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल में और छूट देंगे : सिसोदिया
| जीएसटी के एक साल को कैसे देखते हैं?
एक टैक्स रिफॉर्म के तौर पर हमने जीएसटी का समर्थन किया था और आज भी इसकी मूल भावना के साथ हैं। लेकिन चीजें उस रूप में सामने नहीं आईं, जिसकी उम्मीद थी। कहा गया था कि इंस्पेक्टरराज खत्म होगा, सामान सस्ते होंगे, बिजनस आसान होगा। यहां निराशा ही हाथ लगी है।
सबसे ज्यादा खामी कहां रही, जिसे दूर किया जाना चाहिए ?
एक तो इसकी डिजाइन में ही गड़बड़ी है। यह डेस्टिनेशन बेस्ड टैक्स था, जहां माल बिकेगा वहां से टैक्स मिलेगा। पूरी दुनिया में एक ही तरह की जीएसटी है। जहां संघीय व्यवस्था है, वहां राज्य जीएसटी वसूलते हैं और केंद्र को उसका हिस्सा देते हैं। लेकिन यहां केंद्र को राज्यों पर भरोसा नहीं था। आप सीजीएसटी और एसजीएसटी के साथ आईजीएसटी भी लेकर आए। आईजीएसटी को मैं गैरजरूरी मानता हूं और इसे खत्म किया जाना चाहिए। आईजीएसटी के रूप में वसूले गए करीब 1.81 लाख करोड़ रुपए एक तरह के एस्क्रो एकाउंट में निष्क्रिय पड़े हैं। न केंद्र इस्तेमाल करता है, न राज्य। यह पैसे का दुरुपयोग है। दूसरा यह कि हम इस्पेक्टरराज की मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। जब सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है तो ई-वे बिल की आड़ में जगह-जगह चेकिंग क्यों? ई-वे बिल भी खत्म होना चाहिए। मल्टीपल टैक्स स्लैब का तो हम विरोध कर ही रहे हैं।
आपने कहा था कि दिल्ली में ई-वे बिल लागू नहीं होने देंगे, लेकिन आज दोनों तरह के बिल लागू हैं?
वैधानिक मजबूरी नहीं होती तो हम इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल कभी लागू न करते। हालांकि इसमें राज्यों को कुछ अधिकार दिए गए हैं, जिसके तहत हमने रियायतें भी दी हैं। अन्य राज्यों में इससे छूट की सीमा 50 हजार रु. है, हमारे यहां 1 लाख है। बी2सी बिक्री इससे मुक्त है। हम अभी और रियायतें देने की तैयारी कर रहे हैं। संभव है कि कई और कमोडिटीज को इससे बाहर कर दें। हमारा वश चले तो इसे पूरी तरह हटाना चाहेंगे।
दिल्ली के राजस्व पर जीएसटी का क्या असर रहा है?
पिछले साल टैक्स कलेक्शन 15-16 पर्सेंट बढ़ा है, जो वैट रिजीम में चली आ रही ग्रोथ रेट के लगभग बराबर है। क्या इसी के लिए इतना बड़ा रिफॉर्म होना था। दिल्ली ट्रेडिंग के अलावा सर्विसेज का हब है। अब हमें सर्विसेज में भी टैक्स मिलता है। हम मानकर चल रहे थे के जीएसटी आने से राजस्व 25-30 पर्सेंट तक बढ़ेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे हमारी धारणा मजबूत हुई है कि टैक्स दरें जितनी कम होंगी, रेवेन्यू ज्यादा मिलेगा। अब काउंसिल को विचार करना होगा कि हम चार-पांच स्लैब क्यों रखे हुए हैं और 28% रेट की क्या जरूरत है। शुरू के दो सालों में हमने दिल्ली में वैट रेट काफी घटाए थे, नतीजा यह रहा कि कुल बजट 30 से 48 हजार करोड़ पहुंच गया।
पेट्रोल-डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाने की बात चल रही है। क्या दिल्ली इनसे मोटी कमाई खोने को तैयार है ?
हम चाहते हैं कि पेट्रोल-डीजल से पहले लिकर को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। स्टेट एक्साइज से हमें लगभग 5000 करोड़ रु. मिलते हैं, लेकिन हम इसे जीएसटी में देने को तैयार हैं। उससे राजस्व बढ़ेगा, क्योंकि यहां कालाबाजारी ज्यादा है। इसके अलावा रियल एस्टेट को पूरी तरह जीएसटी के दायरे में लाने की मांग पर भी हम कायम हैं और इसके लिए काउंसिल में फिर मांग रखेंगे। डीजल-पेट्रोल में कालाबाजारी नहीं है, न ही यहां इनपुट क्रेडिट का मसला है। राज्यों के पास कुछ आय स्रोत तो होने ही चाहिए।
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