इंजीनियरों ने बिगाड़ दी दिल्ली

रामेश्वर दयाल, नई दिल्ली

राजधानी दिल्ली का भौगोलिक चरित्र बिगाड़ने में विभिन्न विभागों के अफसर/इंजीनियर गंभीर रूप से दोषी हैं। सुप्रीम कोर्ट में दी गई रिपोर्ट में मॉनिटरिंग कमिटी ने कहा है कि अगर ये अधिकारी अवैध निर्माणों के खिलाफ गंभीरता दिखाते तो दिल्ली के हालात बदतर नहीं होते। कमिटी ने दिल्ली के निर्माण व विकास में जुटे अफसरों व इंजीनियरों की जिम्मेदारी तय करने की गुजारिश सुप्रीम कोर्ट से की है। इस मसले पर अगली सुनवाई 25 फरवरी है। गौरतलब है कि अवैध निर्माण को बढ़ावा देने के आरोप में इंजीनियरों को डायरेक्ट टर्मिनेट किया जा चुका है। ऐसा एमसीडी के इतिहास में पहली बार हो चुका है।

सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमिटी आजकल अवैध निर्माणों के खिलाफ एक्शन में लगी हुई है। गत 5 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान के कोर्ट ने एमसीडी को एक्शन के आदेश दिए थे, जिसके चलते खान मार्केट, डिफेंस कॉलोनी, पटेल नगर, करोल बाग आदि में सीलिंग की जा रही है। अपने इसी एक्शन को लेकर परसों मॉनिटरिंग कमिटी ने अपने सलाहकार वकील के माध्यम से रिपोर्ट भी दाखिल की है। इस रिपोर्ट में कई बातों के अलावा अवैध निर्माण को न रोकने और उसे बढ़ावा देने में अफसरों को टारगेट किया गया है। रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है कि अगर अफसर गंभीरता दिखाते तो दिल्ली का इतना बुरा हाल नहीं होता। रिपोर्ट में इस बात पर दुख जताया गया है कि साल 2007 में अवैध निर्माणों के खिलाफ हुए एक्शन के बाद कोर्ट ने अवैध निर्माणों के खिलाफ सर्तकता बरतने के आदेश डीडीए व एमसीडी को दिए थे। लेकिन उन आदेशों की गंभीर अवहेलना की गई।

रिपोर्ट में सरकारी जमीनों पर कब्जे, अवैध निर्माण आदि के लिए डीडीए व एमसीडी अफसरों और इंजीनियरों को समान रूप से दोषी ठहराया गया है और चिंता जताई गई है कि इन्होंने अपनी ड्यूटी गंभीरता से नहीं निभाई। अगर यह गंभीर होते तो दिल्ली के हालात इतने बदतर नहीं होते। सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह इस मामले में अफसर/इंजीनियरों की जिम्मेदारी तय करें, ताकि भविष्य में अवैध निर्माणों पर लगाम लगाई जा सके। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 25 फरवरी को है। उम्मीद की जा रही है उस सुनवाई में कोर्ट अफसरों व इंजीनियरों को लेकर कड़ा फैसला ले सकती है।

गौरतलब है कि साल 2006-07 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मॉनिटरिंग कमिटी ने पूरी राजधानी में अवैध निर्माणों के खिलाफ जबर्दस्त अभियान चलाया था। उस वक्त ये आरोप लगे थे कि अवैध निर्माणों को बढ़ावा देने वाले एमसीडी के इंजीनियरों पर कोई एक्शन नहीं हो रहा है। इस आरोप के बाद एमसीडी के तत्कालीन कमिश्नर अशोक निगम ने 18 एग्जीक्यूटिव इंजीनियरों और 7 असिस्टेंट इंजीनियरों को सीधे टर्मिनेट कर दिया था। इसे एमसीडी का बड़ा कदम बताया गया था। उसका कारण यह था कि इंजीनियरों को सस्पेंड किया जाता रहा है, लेकिन एमसीडी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं।

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