आलू-टमाटर के क्यों बढ़े ‘भाव’

नोएडा : टमाटर और आलू की बढ़ रही कीमतों से रसोई का बजट फिर गड़बड़ाने को हैं। इन बढ़ती कीमतों की वजह अलग-अलग बताई जा रही है, लेकिन अधिकतर लोगों की नजर में अचानक बढ़ी कीमतें मुनाफाखोरी और कालाबाजारी का नतीजा हैं। थोक मंडी और खुदरा बाजार के रेट में बड़ा अंतर है। इस पर कंट्रोल का कोई सिस्टम नहीं है।
मॉनसून की दस्तक अभी हुई भी नहीं है कि सब्जियों की कीमतें बढ़ने लगी हैं। विक्रेताओं ने बताया कि पिछले दिनों डीजल की कीमत बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ा है। इसका असर सभी सब्जियों की कीमत पर 5 से 7 पर्सेंट तक ही पड़ा है। मॉनसून से ठीक पहले नॉर्थ इंडिया में टमाटर की कालाबाजारी शुरू हो गई है। वहां टमाटरों की लोकल सप्लाई कुछ दिनों से एकदम बंद हो गई है। दिल्ली-एनसीआर में यह टमाटर पहुंच नहीं रहा है। हरौला मार्केट के सब्जी विक्रेता स्वामी लाल का कहना है कि वजह एक ही है कि उत्तरी क्षेत्रों में टमाटर का स्टॉक किया जा रहा है। इसकी वजह से महाराष्ट्र व बेंगलुरु के टमाटरों पर निर्भरता बढ़ गई है। महाराष्ट्र के टमाटर हरियाणा व राजस्थान आदि से महंगे होते हैं। टमाटर के अलावा आलू भी 15 दिनों में ही 15 रुपये से बढ़कर 30 रुपये किलो तक पहुंच गया है। इसकी वजह भी स्टॉक करना ही है। मंडियों में उसकी फर्जी किल्लत दिखाई जा रही है। इंदिरा मार्केट के सब्जी विक्रेता राजू ने बताया कि टमाटर 50 रुपये और आलू 30 रुपये किलो हो गया है। राजू ने बताया कि दिल्ली की थोक मंडी में टमाटर के दाम 25 से 30 रुपये किलो हैं।

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