आम आदमी पार्टी ने पूछा, पूरे देश में संसदीय सचिव वैध, बस दिल्ली में अवैध?
|आम आदमी पार्टी के नेताओं ने मंगलवार को 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर उन्हें लाभ का पद देने के आरोपों को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। आप के नेताओं ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस यह कहकर दिल्ली के लोगों को भ्रमित कर रहे हैं कि दिल्ली में 21 विधायकों की सदस्यता रद्द होगी और फिर से चुनाव होंगे।
आप नेताओं संजय सिंह, अशुतोष और राघव चड्ढा ने दावा किया कि दिल्ली सरकार ने विधायकों को लाभ का पद नहीं दिया है। हालांकि, आप नेताओं ने पत्रकारों के इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि जब आप सरकार मानती है कि संसदीय सचिव लाभ का पद नहीं है तो इसके लिए बिल लाने की जरूरत क्यों पड़ी! पढ़िए, आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इस दौरान क्या-क्या कहा-
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अफवाहें चल रही हैं कि राष्ट्रपति ने विधेयकों का बिल रिजेक्ट कर दिया है। यह बिल मोदी सरकार ने नामंजूर करके भेजा था। अगर राष्ट्रपति बिल नामंजूर करते तो अरुणाचल और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन केंद्र सरकार ने नहीं राष्ट्रपति ने लगाया था। देश में आपातकाल इंदिरा गांधी ने नहीं, राष्ट्रपति ने घोषित किया था। केंद्र का फैसला मानना राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी होता है।
पंजाब में बीजेपी के पांच विधायक और अकाली के 19 विधायक संसदीय सचिव हैं। नगालैंड में 24 संसदीय सचिव हैं, खट्टर सरकार ने संसदीय सचिव बनाए, पंजाब में 24 हैं, गुजरात-राजस्थान में 5-5, हिमाचल प्रदेश में 6, हरियाणा में, पश्चिम बंगाल में और तो और पुडुचेरी में भी संसदीय सचिव हैं। पूरे देश के संसदीय सचिव वैध हैं, बस दिल्ली के ही अवैध हैं?
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अभी यह मामला चुनाव आयोग में है, हमारे विधायकों ने जवाब दिया है। चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार करिए। राष्ट्रपति के विधेयक को नामंजूर करने से जो स्थिति पैदा हुई है, उसपर दिल्ली सरकार फैसला लेगी। संसदीय सचिव का पद लाभ का पद है या नहीं इस पर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने फैसला नहीं किया है।
पंजाब में संसदीय सचिवों को 20 हजार रुपये हर महीने वेतन, पांच-पांच हजार रुपये के दो अलाउंस, 50 हजार रुपये हाउस रेंट, 10 हजार रुपये टेलिफोन बिल, 2 लाख रुपये ट्रैवलिंग अलाउंस, 12 रुपये प्रति किमी माइलेज अलाउंस मिलता है। गुजरात में 50 हजार रुपये वेतन, कार, जिप्सी, रेजिडेंस, कुक, ऑफिस, प्राइवेट सेक्रटरी मिलता है। दिल्ली में तो विधायकों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है
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2006 में संसद में पीएम, स्पीकर, वित्त मंत्री समेत 40 सांसदों का लाभ के पद पर होने का मामला उठा था। संसद ने पुरानी तारीख से ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के प्रावधान को ‘नल ऐंड वॉइड’ कर दिया था, तब कांग्रेस और बीजेपी क्या कर रही थीं। इनकी सदस्यता रद्द होने वाली थी, 1 सितंबर 2006 को राष्ट्रपति ने इसपर साइन किए थे। 46 पोस्ट प्रॉफिट के दायरे से हटा दिए गए थे।
मोदीजी दिल्ली के लोगों ने आपको हराया है, उनसे बदला मत लीजिए हमने 23 बिल पास किए, चार बिल मनी बिल थे, जिन्हें रोक नहीं सकते हैं। 19 बिल एक साल से ज्यादा समय से पड़े हुए हैं। दिल्ली की विधानसभा को पंगु बना दिया है। मोदी जी केजरीवाल से मत डरिए, आप अपना काम करिए, उनको अपना काम करने दीजिए। पहले मोदी जी का नारा था, न खाऊंगा न खाने दूंगा, अब नारा है- न काम करूंगा, न करने दूंगा।
बीजेपी वाले कह रहे हैं कि विधायकों की 4 लाख रुपये सैलरी कर दी है। जब बिल ही पास नहीं हुआ, कानून ही नहीं बना तो विधायकों को चार लाख रुपये की सैलरी कहां से मिली।
मोदीजी आधे समय देश के बाहर रहते हैं, देश के अंदर आते हैं तो यही सोचते हैं कि अरविंद को कैसे बर्बाद करना है, डर है कि वह कलई खोल सकता है, मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। दिल्ली सरकार उनकी आंखों की किरकिरी बन गई है।
अगर मोदीजी ने हमें खत्म करने का मन बना लिया है तो चुनाव आयोग में हमारी सदस्यता रद्द करा दें, आप पीएम हैं कुछ भी कर सकते हैं। कभी सीबीआई जांच करवाते हैं, कभी मुकदमा करते हैं।
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