अयोध्या कांडः 90वीं सदी का हीरो बना साधू, करते हैं गायों की सेवा

मथुरा
उत्तर प्रदेश के सुरेश चंद्र बघेल 50 साल के हैं। 1990 में जब वह 23 साल के थे तब उन्होंने बाबरी मस्जिद को डाइनामाइ से उड़ाने का प्रयास किया था। इस माले में उन्हें 5 साल की जेल हुई थी। इसी घटना के 2 साल बाद बाबरी मस्जिद कांड हुआ।

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बघेल को राम के संघर्ष का हीरो माना गया। इन दिनों वह एकांत में साधू का जीवन बिता रहे हैं। वृंदावन की गौशाला में वह गायों की सेवा करते हैं। वह कहते हैं कि आज भी वह उनके धर्म के लिए मर सकते हैं और किसी को मार भी सकते हैं।

6 दिसंबर की 25वीं वर्षगांठ पर उन्होंने बताया कि उन्हें कोई पछतावा नहीं है लेकिन अब वह गायों की सेवा करके बहुत खुश हैं। कहते हैं कि आज भी कोई धर्म की बात आएगी तो वह लड़ने मरने को पूरी तरह से तैयार हैं।

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बघेल ने बताया कि वह संघ परिवार के अयोध्या कांड मामले में उग्र आंदोलन से बहुत ज्यादा भावात्मक हो गए थे। उन्होंने कहा कि जिस हिंदू का खून न खौला खून नहीं वो पानी है, जो राम के काम न आए वो बेकार जवानी है नारों को सुनने के बाद वह अयोध्या पहुंचे और राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया।

वह कहते हैं कि उन्होंने सुना था कि पर गोलियां चलीं उसके बाद उन्होंने संकल्प लिया कि वह अयोध्या जाएंगे और ढांचा गिरा देंगे। वह कहते हैं उन्हें लगता है कि वह बहुत दुर्भाग्यशाली थे जो उनके उद्देश्य में सफल नहीं हो सके। उन्हें 1990 में 28 डाइनामाइट की छड़ियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। जब वह जेल से बाहर आए तो उन्होंने उनका बाकी जीवन साधु की तरह बिताने का फैसला लिया।

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बघेल ने कहा कि मुलायम सिंह यादव की सरकार में उन्हें पहला हिंदू आतंकवादी घोषित किया गया था। कहते हैं कि उन्होंने जो किया उसका उन्हें कोई अफसोस नहीं है। उन्हें यह देखकर खुशी होगी कि अयोध्या में राम मंदिर बने। उन्हें गर्व है कि वह इतने बड़े, ऐतिहासिक का हिस्सा बने।

उन्होंने कहा कि अब अगर 25 साल बाद भी अयोध्या में राम मंदिर नहीं बन पाया तो उन्हें इस बात का अफसोस होगा। वृंदावन के ज्ञानी की बगीची गौशाला में वह रहते हैं। वहां के केयर टेकर सत्य नारायाण दास बाबा ने बताया कि बघेल पूरी तरह से गायों की सेवा और पूजा के समर्पित हैं। बघेल की पत्नी और बच्चे कई साल पहले आगरा में शिफ्ट हो गए थे लेकिन बघेल ने छोड़कर कहीं और जाने से मना कर दिया था।

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