अमेरिकी संसद ने दोगुना कर दिया एच-1बी वीजा फीस, मोदी ने ओबामा से जताई थी चिंता

नई दिल्ली
भारत की आपत्तियों के बावजूद अमेरिकी संसद ने भारतीय आईटी प्रफेशनल्स पर लगाए जाने वाले आउटसॉर्सिंग फीस को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है। अमेरिकी संसद ने कहा, ‘अमेरिका में 50 या इससे ज्यादा लोगों को नौकरी पर रखने वाले आवेदकों को 2,000 की जगह अब 4,000 डॉलर देने होंगे अगर आवेदकों के आधे से ज्यादा कर्मचारी अप्रवासी नहीं हैं।’

एच-1बी वीजा के लिए 2,000 डॉलर और कुछ एल-1 वीजा के लिए 2,250 डॉलर आउटसोर्सिंग फीस का इस्तेमाल कंपनी के अंदर होने वाले ट्रांसफर्स के लिए किया जाता रहा है। अमेरिका ने अगस्त 2010 में इसे पांच सालों के लिए मंजूरी दी थी, लेकिन सितंबर में इसकी मियाद पूरी होने पर संसद ने इसे रीन्यू नहीं किया था।

बहरहाल, अमेरिकी कांग्रेस का यह फैसला आईटी इंडस्ट्री के नजरिए से अच्छा तो नहीं ही कहा जा सकता है क्योंकि यह कुशल कामगारों को क्लायंट लोकेशंस पर ट्रांसफर करने के लिए वीजा पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। अमेरिका में स्किल वर्कर्स के बीच एच-1बी वीजा पाने की प्रक्रिया को लेकर भी अंसतोष बढ़ रहा है। इनका कहना है कि बड़ी कंपनियों के लिए वीजा सस्ते विदेशी कामगारों को हायर करने का एक जरिया है।

इससे पहले पीआईबी ने एक बयान जारी कर कहा था कि प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी प्रेजिडेंट बराक ओबामा से भारत के आईटी उद्योग और इससे जुड़े पेशेवरों की वीजा संबंधी चिंताएं साझा की हैं। गौरतलब है कि ओबामा ने पैरिस जलवायु समझौते में भारत की भूमिका के लिए मोदी को बधाई देने के लिए फोन किया था।

अगले साल अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव होना है और एच-1बी वीजा को लेकर वहां बहस गरमा रही है क्योंकि नेता एच-1बी वीजा की मौजूदा संख्या में कटौती और आईटी कर्मचारियों के वेतन पर नियंत्रण की मांग कर रहे हैं। अमेरिका के अस्थायी वीजा से भारत की 146 बिलियन डॉलर वाली आईटी आउसटसॉर्सिंग इंडस्ट्री लगातार फायदा उठाती रही है। इंडस्ट्री बॉडी नैशनल असोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सर्विसेज कंपनीज की लंबे समय से राय है कि वीजा फीस भारतीय आईटी कंपनियों के लिए भेदभावकारी हैॉ

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