अफगानिस्तान: तालिबान नेता ने कहा, ‘खूब पेड़ लगाओ, इससे दुनिया बेहतर होती है’

काबुल
तालिबान का नाम हमेशा हिंसा और धार्मिक कट्टरता से संबंधित मामलों में ही सुना जाता है, लेकिन शायद यह पहली बार हुआ है कि अफगानिस्तान से तालिबान की एक अच्छी खबर आई है। यहां तालिबान ने अपने नेता हबीतुल्लाह अखूंदज़ादा के नाम से जारी किए गए एक अनोखे बयान में अफगान लोगों से काफी संख्या में पेड़ लगाने की अपील की है। तालिबान की ओर से जारी इस जन अपील में कहा गया है कि लोग इस दुनिया में और मरने के बाद के पारलौकिक जीवन की बेहतरी के लिए ज्यादा पेड़ लगाएं। माना जाता है कि अखूंज़ादा ने 15 साल से भी ज्यादा समय पाकिस्तान के एक मदरसे में पढ़ाते हुए गुजारा है। वह एक मौलवी रहा है। लोगों से पेड़ लगाने की अपनी अपील को भी उसे कुरान के ही मुताबिक बताया है।

आधिकारिक तालिबानी अखबारों ने अखूंदज़ादा के नाम से यह ‘विशेष संदेश’ प्रकाशित किया है। तालिबान के लिए इस तरह की पहल बहुत अलग और अनोखी बात है। हाल के दिनों की ही बात करें, तो तालिबान ने मारे जाने वाले नागरिकों, आगामी सैन्य अभियान और 1980 के दौर में सोवियत सेना के अफगानिस्तान से बाहर जाने की वर्षगांठ के मौके पर बयान जारी किया था। माना जाता है कि अखूंदज़ादा ने मई 2016 में तालिबान का नेतृत्व संभाला। इसके बाद से ही वह छुपा हुआ है। अपने ताजा बयान में अखूंदज़ादा ने अफगान नागरिकों और तालिबानी लड़ाकों से अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाने की अपील की है। बयान में लोगों से अपील करते हुए कहा गया है कि वे ‘एक या एक से ज्यादा फलदार या फिर गैर-फलदार पेड़ लगाएं। इससे धरती की खूबसूरती बढ़ती है और अल्लाह के बनाए इंसानों और जीवों को फायदा होता है।’

यह बयान अंग्रेजी सहित चार भाषाओं में प्रकाशित किया गया है। इसमें अखूंदज़ादा ने कहा है, ‘मुजाहिदीन और मेरे प्यारे देशवासियों को पेड़ लगाने के इस काम के लिए हाथ मिलाना चाहिए।’ इस बयान में यह भी कहा गया है कि तालिबान ‘विदेशी आक्रमणकारियों और उनके भाड़े के सिपाहियों के साथ संघर्ष में सक्रिय है।’ मालूम हो कि तालिबान अफगानिस्तान की सरकार को विदेशियों (अमेरिका) का ‘भाड़े का मजदूर’ बताता है और उसे अफगान सरकार को उखाड़कर फेंकने की कोशिश कर रहा है। तालिबान ने अफगान सरकार और नाटो गठबंधन सेना के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। साल 2001 में अमेरिकी सेना के हस्तक्षेप के बाद तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।

बयान में आगे कहा गया है, ‘पेड़ लगाना और खेती करना ऐसे काम माने जाते हैं जिनसे इस दुनिया में तो फायदा मिलता ही है और मौत के बाद जन्नत में भी इसका बहुत शबाब मिलता है।’

साल 2014 में बड़ी मात्रा में विदेशी सैनिकों के लौट जाने के बाद से तालिबान को धीरे-धीरे काफी बढ़त मिल रही है। अफगानिस्तान का 40 फीसद से ज्यादा इलाका फिलहाल तालिबान के नियंत्रण में है। तालिबान को हालांकि ज्यादातर उसके आतंकी हमलों के लिए जाना जाता है, लेकिन जिन इलाकों पर उसका अधिकार है, वहां तालिबान राजनैतिक तौर पर भी सक्रिय है। अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के उप प्रवक्ता शाह हुसैन मुर्तज़ावी ने इस बयान को खारिज करते हुए इसे ‘लोगों को धोखा देने की’ कोशिश बताया। उन्होंने कहा कि तालिबान अपने अपराधों और खुद द्वारा की जाने वाली बर्बादियों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए यह तरीका अपना रहा है। उन्होंने कहा, ‘तालिबानी सत्ता की शुरुआत के समय से ही इन लोगों के दिमाग में केवल लड़ना, अपराध करना और बर्बादी लाना जैसी बातें ही हावी हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि तालिबान पेड़ लगाने और पर्यावरण की रक्षा करने जैसी बातें करे?’

राजधानी काबुल सहित अफगानिस्तान के ज्यादातर बड़े शहरों मे काफी आबादी और भीड़भाड़ है। यहां बहुत कम ही हरियाली देखने को मिलती है। अफगानिस्तान के जन स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, वायु प्रदूषण और इससे जुड़ी परेशानियों के कारण काबुल में हर साल करीब 4,000 लोग मरते हैं।

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