अपने सपने के लिए चंदा मांग रहा है यह ओलिंपियन
|पांच बार के ओलिंपियन और विंटर स्पोर्ट्स में भारतीय चेहरा शिवा केशवन ने अपने करियर को बचाए रखने के लिए क्राउड फंडिंग शुरू की है। मनाली में रहने वाले केशवन भारत के अकेले प्रफेशनल लूगर हैं। उन्होंने 2015 में एशियन लूगर चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था लेकिन फंड की कमी के चलते वह वर्ल्ड लूगर चैंपियनशिप में भाग नहीं ले पाए थे। यह टूर्नमेंट 31 जनवरी को जर्मनी में शुरू हुआ था।
34 वर्षीय केशवन अब क्राउड फंडिंग के जरिए एक करोड़ रुपये जुटाने की कोशिश में लगे हैं। इससे उन्हें 2018 में साउथ कोरिया के प्यंगयॉन्ग में हनोने वाले विंटर ओलिंपिक में भाग लेने में मदद मिलेगी।
केशवन ने कहा, ‘चूंकि मुझे केंद्रीय खेल मंत्रालय से किसी तरह की मदद नहीं मिली इसलिए मेरे दोस्तों ने चंदा मांगने की सलाह दी। हम कुछ पैसा इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह बहुत कम है।’
उन्होंने कहा, ‘खेल मंत्रालय में बैठे बाबू विंटर स्पोर्ट्स को लेकर बहुत उदासीन हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि मैं 2018 में साउथ कोरिया में होने वाले विंटर स्पोर्ट्स की ओपनिंग सेरिमनी में राष्ट्रीय ध्वज लेकर चलूंगा।’ केशवन ने बताया कि उन्हें 30 लाख रुपये अपने कोच की सैलरी के तौर पर देने हैं तथा 12 लाख रुपये खेल के उपकरणों पर खर्च होंगे। इसके अलावा 13 लाख रुपये विंटर और समर ट्रेनिंग पर खर्च होंगे, इनमें ट्रेक फी, जिम और फिजियो थेरेपी पर होने वाले खर्च शामिल है। इसके अलावा यात्रा पर 20 लाख रुपये खर्च होंगे और बाकी 28 लाख रुपये रुपये बोर्डिंग और अन्य पर खर्च होंगे। हालांकि यह सब मिलाकर एक करोड़ से ज्यादा ही खर्च हो जाएंगे।
अमेरिका के लूगर टीम के निदेशक और दो बार के विश्व चैंपियन डंकन केनेडी 2014 से केशवन के कोच थे लेकिन सैलरी न मिलने की वजह से उन्होंने अपना पद छोड़ दिया था। केनेडी की कोचिंग में केशवन ने एशियन लूगर चैंपियनशिप जीती थी। 2002 में इटली ने केशवन की प्रतिभा को पहचाते हुए उसे नागरिकता ऑफर की थी लेकिन देशभक्ति को महत्ता देते हुए इसे ठुकरा दिया था।
एक बात यह भी ध्यान रखने वाली है कि भारत में एक भी लूगर ट्रैक नहीं है लेकिन मनाली के रहने वाले केशवन 1998 से इस खेल में भारत का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं। उस समय वह 16 वर्ष के थे और उन्होंने नगानो विंटर ओलिंपिक्स में अपना इंटरनैशनल डेब्यू किया था।
केशवन ने आर्थिक सहायता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी खत लिखा है, लेकिन उन्हें सरकार से अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। और ऐसे में ओलिंपिक में भाग लेने का केशवन का सपना धीरे-धीरे दम तोड़ रहा है।
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