अपने आशियाने को बना दिया लुप्त हो रही गौरैया का बसेरा

विकास पाठक, वाराणसी
एक जमाने में तकरीबन हर घर के आंगन में चहकने वाली गौरैया आज के वक्त में कहीं गुम सी हो गई है, लेकिन इसके उलट बनारस का ऐसा परिवार है जिन्होंने अपने आशियाने को गौरैया के नाम कर दिया है। यहां के सरदार इन्द्रपाल सिंह का घर पूरे शहर की गौरैया का ठिकाना है। सौ-पचास से लेकर जितने भी जोड़े आ जाएं, सभी के रहने से लेकर दाना-पानी तक, यहां पूरा इंतजाम रहता है। उनकी यह पहल इस कदर फेमस हो गई है कि ‘गौरैया का मकान’ देखने के लिए दूर-दूर से लोग आने लगे हैं।

हरियाली से दूर होते जा रहे शहर की प्रमुख श्रीनगर कॉलोनी में रहने वाले 50 साल के इंद्रपाल के जीवन की धारा 15 साल पहले की एक घटना ने बदल दी। अचानक एक दिन घर के सामने लगा पेड़ काट दिए जाने से गौरय्या का ठौर छिनना उनके दिल को चोट पहुंचा गया। बस उसी दिन से उन्होंने अपने घर को गौरैया का बसेरा बनाने की ठान ली। वर्षों की मेहनत के बाद आज उनके घर में सौ से ज्यादा गौरैया अपने परिवार के साथ चहकती देखी जा सकती हैं। कारोबार नौकर-चाकरों के भरोसे छोड़ गौरैया की देखभाल में ही इंद्रपाल का पूरा दिन बीतता है। वह अपने बच्चों की तरह गौरैया को पालते नजर आते हैं।

ऐसे बनाया बसेरा
घर को गौरैया का ठिकाना बनाने के लिए इंद्रपाल ने सबसे पहले मकान के मेन गेट पर बोगनवेलिया और शमी के पौधे लगवाए। पेड़ जब ऊंचाइयों को छूने लगे तो दीवारों में दर्जनों छोटे गमलों को उलटा कर प्लास्टर ऑफ पैरिस से चिपका घोंसले बनाने को जगह बनाई। वहां पुराने कटे-फटे कपड़े, कटी घास और रुई रख दी। कुछ ही दिन बीते कि गौरैया ने घोंसला बना रहना शुरू कर दिया। यहां रहने वाले सौ से ज्यादा जोड़ों के वंश बढ़ाने से गौरैया की संख्या इतनी ज्यादा हो गई कि सुबह के समय बाहर निकलने वाले इनके झुंड देखने के लिए लोगों को इंतजार रहता है।

उड़ना भी सिखाते हैं
इंद्रपाल व उनका परिवार को बिन मां के गौरैया के चूजों का लालन-पालन भी करते हैं। वह बाज का शिकार बनीं गौरैया के बच्चों को घोंसले से निकाल दाना-पानी देने संग उड़ना सिखाते हैं।

खिलौना नहीं बच्चों संग खेल
इंद्रपाल की बेटी अमृता यह बताने से नहीं चूकती हैं कि वह खिलौने की जगह गौरैया के बच्चों संग खेल बड़ी हुई हैं। ड्राइंगरूम-किचन हो या अमृता का कमरा, सुबह होते ही घोंसले से निकले गौरैया के बच्चे उछल-कूद मचाने लगते हैं। अमृता का कहना है कि इन्हें छोड़ बनारस से कहीं बाहर जाने पर मन उदास हो जाता है।

गौरैया के हैं कई नाम
देश के अलग-अलग इलाकों में गौरैया को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। तमिल और मलयालम में इसे ‘कुरुवी’, तेलगू में ‘पिच्युका’, कन्नड़ में ‘गुब्बाची’, गुजराती में ‘चकली’, मराठी में ‘चिमानी’, पंजाबी में ‘चिड़ी’, बांग्ला में ‘चराई पाखी’, उड़िया में ‘घर चटिया’, कश्मीर में ‘चेर’ और सिंधी में ‘झिरकी’ कहा जाता है।

पर्यावरणविद् डॉ. अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘गौरैया सिर्फ पर्यावरण से नहीं बल्कि संस्कृति से भी जुड़ी है। लोकगीतों में जिस पक्षी का वर्णन सबसे पहले और ज्यादा मिलता था, वह गौरैया ही थी। ऐसे में पर्यावरण और संस्कृति, दोनों पर संकट है। गौरैया को बचाने के लिए सभी को कुछ न कुछ करना चाहिए।’

ये भी जानिए
भारत में बीस साल के अंदर गौरैया की संख्या में 60 फीसदी की कमी।
ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में इनकी संख्या तेजी से गिर रही।
नीदरलैंड्स में गौरैया को दुर्लभ प्रजाति के वर्ग में रखा गया।
गौरैया की घटती संख्या के लिए पेड़-पौधे, जल और भोजन की कमी कारण।

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