जिस बीमार पर कर रहे थे रिसर्च बाद में उसी बीमारी से हुए पीड़ित
|कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी में डिजनेरेटिव ब्रेन डीसीज पर रिसर्च कर रहे राहुल देसिकन नाम के इंडो-अमेरिकन रीसर्चर आज खुद उसी बीमारी से जूझ रहे हैं। डेढ़ साल पहले वह कैर्लिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के उभरते सितारे थे। उन्होंने उस वक्त ही एमियोट्रॉपिक लैटरल सिरोसिस (एएलएस) पर अपना रिसर्च शुरू ही किया था।
आज राहुल 40 साल के हो चुके हैं और वह अपना सारा काम घर से ही करते हैं। एएलएस से पीड़ित होने के कारण वह न तो चल पाते हैं न ही बोल पाते हैं। वह बस अपना सिर और अंगूठा थोड़ा सा घूमा सकते हैं उसके अलावा कुछ नहीं। राहुल टाइप करके कहते हैं कि उनके साथ प्रकृति ने यह बेहद ही क्रूर मजाक किया है। सिर्फ कुछ शब्द टाइप करने में ही उन्हें कई मिनट लग जाते हैं। उन्हें जो भी कहना होता है वह टाइप कर के ही कहते हैं। इसके साथ ही राहुल का कहना है कि उनका अब भगवान से पूरी तरह से विश्वास उठ चुका है। इस बीमारी ने राहुल की आवाज तो छीन ली पर उन्हें चुप नहीं करा सकी। इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद आज राहुल एएलएस पर काफी काम कर चुके हैं। उनका उद्देश्य इस बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को समाझाना है कि आखिर एएलएस और ऐल्टशाइमर्ज जैसी बीमारियां होती क्या हैं।
राहुल के अनुसार एएलएस पर की गई उनकी रिसर्च से वह बेहद मोहब्बत करते हैं और यही उनके जीने की वजह भी है। 2016 में राहुल की आवाज जब अचानक बदलने लगी तो उन्हें लगा कि उन्हें साइनस है पर जब एक दिन अपने बड़े बेटे को नहलाने के दौरान उन्हें अपने हाथ में कमजोरी महसूस हुई तो उन्हें एएलएस की चिंता सताने लगी पर उनके दोस्तों को लगा कि वह बेदह ही जवान और स्वस्थ हैं इसलिए उन्हें यह बीमारी हो ही नहीं सकती। कुछ महीनों बाद इस बीमारी के लक्षण बढ़ने लगे पर वह लगातार काम करते रहें। एक बार जब तबीयत ज्यादा खराब होने पर राहुल को अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो पता चला कि उन्हें एएलएस है। बीमारी का पता चलने पर राहुल और उनकी पत्नी विजयराघवन को लगा कि सब खत्म हो गया। धीरे-धीरे राहुल की आवाज चली गई और उनके हाथ-पैर ने भी काम करना बंद कर दिया।
बीमारी के बाद राहुल ने एएलएस पर बहुत काम कर लिया है और वह आगे भी इसी तरह काम करते रहना चाहते हैं। राहुल कहते हैं कि एएलएस ने उन्हें एहसास करवा दिया है कि उनकी लाइफ कैसी है और वह कौन हैं। इतना सबकुछ खोने के बाद भी राहुल आज भी खुद को बेदह खुशकिस्मत मानते हैं।
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