अब पालना में पलेंगे बिन मां के लाल, मिलेगी पूरी सुरक्षा

गाजियाबाद
अब लावारिस नवजात शिशुओं के पालन-पोषण के लिए पुलिस और स्वास्थ्य विभाग को किसी एनजीओ की सहायता नहीं लेनी पड़ेगी। ऐसे बच्चों के लिए जनपद के सभी स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में पालना (शिशु स्वागत केंद्र) बनाए जाएंगे। यहां तीन महीने तक के नवजात शिशुओं की देखभाल और लालन-पालन किया जाएगा। इसके बाद उन्हें मथुरा स्थित राजकीय बालगृह भेजा जाएगा। इस संबंध में प्रमुख सचिव रेणुका कुमार ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को शासनादेश भेजकर जल्द से जल्द केंद्र बानने के निर्देश दिए हैं।

इन केंद्रों को किसी ऐसे स्थान पर बनाया जाएगा जहां कोई भी महिला, पुरुष या दंपति जो अपनी पहचान सार्वजनिक न करना चाहता हो, वह नवजात को पालना में सुरक्षित रखकर लौट सके। लेकिन ऐसा स्थान ढूढ़ने में अस्पताल को पसीना आ रहा है। अस्पताल में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां पर एकांत हो और पालना बनाया जा सके।

दो कर्मियों की होगी ड्यूटी

पालना यानि नवजात शिशु केंद्र पर समूह ग एवं घ श्रेणी के कर्मचारियों की ड्यूटी रोटेशन पर लगाई जाएगी। केंद्र का प्रभारी राजपत्रित अधिकारी को बनाया जाएगा। प्रभारी का दायित्व होगा कि वह प्रत्येक दिन पालना की गतिविधियों पर निगरानी रखे। केंद्र पर आठ-आठ घंटे की ड्यूटी लगाए जाने के निर्देश दिए गए हैं। जिसकी ड्यूटी लगाई जाएगी उसका फोन नंबर और नाम भी बोर्ड पर अंकित किए जाने के भी निर्देश हैं।

पहले भी भर्ती हो चुके हैं नवजात
दुष्कर्म पीड़िता किशोरी ने महिला अस्पताल में स्वस्थ बेटे को जन्म दिया था, लेकिन उसने बच्चे को अपनाने से इनकार कर दिया था। अस्पताल स्टाफ ने बच्चे का नामकरण कन्हैया किया था। उसे तीन महीने तक अस्पताल की नर्सरी में रखा गया था। बाल संरक्षण अधिकारी के नेतृत्व में उसे मथुरा भेज दिया गया था। इस समय भी एक लावारिस बच्चा सुदामा नर्सरी में पल रहा है। महिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दीपा त्यागी ने बताया कि नवजात शिशुओं की देखभाल की पूरी व्यवस्था है, लेकिन नए शासनादेश के तहत पालना गोपनीय स्थान पर बनाया जाना है।

सबसे अधिक परेशानी हो रही है कि पालना किस स्थान पर बनाया जाए कि जहां लोग आसानी से पहुंच सकें और आम लोगों की निगाह से दूर भी रहे। जल्द ही बैठक कर जगह की पहचान की जाएगी। जिस स्थान पर पालना रखा जाएगा, उस स्थान पर एक घंटी भी लगा दी जाएगी। जो बटन दबाने के दो मिनट बाद बजेगी। इतने समय में बच्चा रखने वाले को बिना किसी की नजर में आए वापस जाने का समय मिल जाएगा। तीन महीने तक शिशु को अस्पताल में रखने के लिए बजट की व्यवस्था भी अस्पताल के पास है।

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