विमानों की हवा निकाल रही भारत की ‘गंदी हवा’
| भारत का वायुमंडल हवाई जहाज बनाने वाली कंपनियों की जेब पर काफी भारी पड़ रहा है। वायुमंडल में धूल और गर्मी की वजह से कई कंपनियां विमानों के इंजन बदलने को मजबूर हो गई हैं। तेल की खपत कम करने के लिए कंपनियों को लेटेस्ट इंजन खरीदने पड़ रहे हैं, जिसकी वजह से उन पर खासा आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। लेटेस्ट इंजन ऐसी तकनीक से बनाए जा रहे हैं, जो पश्चिमी देशों के वातावरण में भी फिट रहें और भारत के गर्म और धूल भरे वातावरण भी झेल सकें। हालत यह हो गई है कि विमानों की उड़ान की सहूलियत के लिहाज से भारत को गल्फ देशों व चीन के कुछ हिस्सों के साथ रैंकिंग मिली है। इन देशों का वातावरण विमानों के लिए बहुत ही खराब माना जाता है। एअर इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘पहले विमान का इंजन 16000 उड़ान भरने के बार ही रिपेयर और मेंटिनेंस के लिए जाता था जिसमें चार से पांच साल लगते थे, लेकिन अब 8 से 10 हजार उड़ान भरने के बाद ही उन्हें रिपेयर के लिए भेजना पड़ रहा है।’ उन्होंने यह भी बताया कि विमान को एक बार मेंटिनेंस के लिए भेजने पर उस पर 21 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च आता है। उनके मुताबिक, एक विमानों को जल्दी-जल्दी रिपेयर शॉप भेजने का मतलब यह है कि कंपनियों पर भारी आर्थिक दबाव पड़ेगा। एअर इंडिया ने अपने 40 सीएफएम इजनों के साथ ‘हार्श इन्वायरनमेंट किट’ लगाई हैं। एक किट की कीमत करीब 5 लाख डॉलर है। बता दें कि एअर इंडिया के पास 43 एयरबस ए-320 विमान हैं और इन विमानों के सभी 86 इंजनों से लिए कंपनी ने वातावरण से निपटने वाली किट लगाने का फैसला लिया है। देश और विदेश की कई और कंपनियां भी ऐसा करने पर मजबूर हैं क्योंकि उनके उन्हें भी ऐसे ही हालातों का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, इंजन बनाने वाली कंपनियों के लिए यह नई चुनौती है कि वे ऐसे इंजन तैयार करें गर्म और ठंडे दोनों तरह के वातावरण में लंबे समय तक बिना किसी खराबी के काम कर सकें। विमानों के इंजन बनाने वाली कंपनी मैरी एलन एस जोन्स, प्रैट ऐंड विटनीज़ के वाइस प्रेजिडेंट ने बताया, ‘चीन के भी कुछ इलाके ऐसे हैं, जिनका हाल भारत और मिडिल ईस्ट एशिया जैसा ही है। यहां का वातावरण में इतनी धूल, रेत और गर्मी है कि इंजन कम वक्त में ही खराब हो जाते हैं।’
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