समुद्र में यांत्रिक विधि से मछली मारने में कृत्रिम रोशनी के प्रयोग पर पाबंदी
|उन्होंने कहा कि सरकार ने भारत के विशिष्ट आर्थिक समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने के लिए बुल ट्रालिंग और बटुआ जाल तथा गिल नेटिंग करने पर पाबंदी लगा दी है।
उन्होंने कहा कि हाल में इस संदर्भ में 10 नवंबर को एक अधिसूचना जारी की गई है।
गोवा सहित तटीय राज्यों की समुद्री पारिस्थिकी को बचाने के लिए केन्द्र सरकार से इन गतिविधियों को रोकने की मांग के बाद यह फैसला लिया गया।
मत्स्यपालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए किये गये अन्य उपायों को रेखांकित करते हुए सिंह ने कहा कि सरकार ने इस वर्ष जनवरी से अनुमति पत्र एलओपी प्रणाली को रोक दिया है।
एलओपी प्रणाली का ध्येय भारतीय मछुआरों को इस्तेमाल किये जा चुके मछली मारने वाले पोतों का अन्य देशों से खरीदने की सुविधा देना है जिसे भारत में पहले पंजीकृत कराना होगा और भारतीय जल क्षेत्र में इन नौकाओं का इस्तेमाल किया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा विनियमित किये जाने वाले 12 समुद्री मील के आगे विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र ईईजेड में मानसून के दौरान पारंपरिक मछुआरों के लिए मछली मारने के प्रतिबंध से छूट दी गई है।
उन्होंने कहा कि मछली मारने पर प्रतिबंध की अवधि को भी 47 दिन से बढ़ाकर 61 दिन किया गया है जिसके लिए सभी तटीय राज्यों की सरकारों से सहमति ली गई है।
सिंह ने कहा कि मत्स्यपालन के क्षेत्र में और अधिक संभावना है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने कहा कि मत्स्यपालन क्षेत्र के समेकित विकास के लिए 300 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ ब्लू रिवोल्युशन स्कीम को लागू किया जा रहा है तथा वर्ष 2020 तक मछली उत्पादन मौजूदा एक करोड़ 14.1 लाख टन से बढ़ाकर 1.5 करोड़ टन करने का लक्ष्य रखा गया है।
इस मौके पर कृषि राज्यमंत्री कृष्णा राज और राष्ट्रीय मात्स्यकी विकास बोर्ड के मुख्य कार्यकारी रानी कुमुदिनी भी उपस्थित थे।
भाषा राजेश मनोहर
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