शी चिनफिंग के शासनकाल में बढ़ीं मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं: विशेषज्ञ

पेइचिंग
पांच साल कैद में रहने और घर में तीन गार्ड के साए में जिंदगी बिताने वाले चीन के मानवाधिकार वकील गाउ जूसैंग के बर्दाश्त ने जवाब दे दिया और वह अपने कुछ दोस्तों तथा अपने चालक की मदद से राज्य सुरक्षा वाले कैदखाने से अगस्त 2013 में भाग गए थे। भागकर वह एक अजनबी के यहां पहुंचे, जिसने उन्हें मांस खिलाया। गाउ ने सालों बाद पहली बार अच्छा खाना खाया था। हालांकि गाउ की आजादी का यह जीवन काफी छोटा रहा। एक तरह से तीन सप्ताह से भी कम। पुलिस को उनके शांची प्रांत के जेगझू में छुपे होने की सूचना मिली। पुलिस ने गाउ को पकड़ने के लिए एक-एक घर की तलाशी ली और उन्हें उनके समर्थक ली फवांग के घर से पकड़ लिया।

गाउ को भागने में मदद करने वाले ली ने कहा कि अब गाउ के ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है। गाउ के साथ हुई इस घटना ने साबित किया कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के शासनकाल में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की क्या हालत है। शी पिछले महीने पार्टी कांग्रेस की हुई बैठक में अपने जेनरेशन में चीन के सबसे ताकतवर नेता बनकर उभरे थे। पार्टी ने उन्हों दोबारा देश का राष्ट्रपति पद सौंपने का फैसला किया था। कई विशेषज्ञों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि शी के शासनकाल में मानवाधिकार आजादी को बुरी तरह से कुचला गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है और दुनिया में इसका प्रभुत्व भी बढ़ता जा रहा है। हालांकि चीनी युवाओं में राजनीति के प्रति बढ़ती विरक्ति पार्टी के लिए चिंता का सबब भी है। हॉन्ग कॉन्ग स्थित मानवाधिकार संस्था में रिर्सचर माया वेंग ने कहा, ‘चीन में मानवाधिकार की स्थिति खराब ही हो रही है और इसमें सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।’ उन्होंने मौजूदा समय में मानवाधिकार पर जारी बंदिशों को 1989 में लोकतंत्र की मांग करने वाले आंदोलनकारियों के खिलाफ खूनी दमन से भी खराब बताया। उन्होंने कहा, ‘हमें लगता है कि अभी हम सबसे निचले स्तर पर नहीं पहुंचे हैं।’

वेंग और कुछ अन्य लोगों ने चीन में चुपचाप हिरासत में लिए जाने की घटनाओं और बंद कमरे में ट्रायल की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। अधिकारी राजनीतिक बंदियों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी अनदेखी करते हैं।

वेंग ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी इस मुद्दे पर कोई मदद करते हुए नहीं दिख रहे हैं। ट्रंप ने पिछले महीने अपनी चीन की यात्रा के दौरान भी मानवाधिकार से जुड़ा मुद्दा नहीं उठाया था। वेंग ने कहा कि ट्रंप ने ऐसा करके चीनी सरकार के कृत्यों को मान्यता ही दे दी। हालांकि चीन की सरकार मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों का कड़ाई से खंडन करती रही है। चीन का कहना है कि उसके यहां कानून का राज है और किसी बाहरी को मानवाधिकार को चुनौती देने का अधिकार नहीं है।

उधर थाईलैंड स्थित चीनी कार्यकर्ता वू यूहुआ ने बताया कि पार्टी कांग्रेस के बाद हालात और खराब हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘स्थिति खराब हो रही है। कैदियों को प्रताड़ित किया जा रहा है।’ नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लियू शियाओबो की कैद में ही मौत को मानवाधिकार कार्यकर्ता सबसे खतरनाक स्तर मानते हैं। ऐसे कई और भी मामले हैं जिसकी जानकारी किसी को नहीं और पार्टी अपने खिलाफ उठने वाली आवाज का दमन कर दे रही है। रिहा होने वाले कैदियों पर भी चीन का जबर्दस्त नियंत्रण होता है। गाउ को जब अगस्त 2014 में रिहा किया गया था, तो उन्हें किसी से बातचीत करने तक की इजाजत नहीं थी।

शी के कार्यकाल के दौरान अल्पसंख्यकों के खिलाफ भी प्रतिबंध कड़े किए गए हैं। हजारों उइगर मुस्लिमों और पॉलिटिकल रीएजुकेशन सेंटर्स में भेज दिया गया है। तिब्बतियों पर भी कई तरह के प्रतिबंध हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि आगे स्थिति और खराब हो सकती है।

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