विदेशी कंपनियों के आने की आहट से भारतीय फ्यूल रिटेलिंग कंपनियों में बढ़ी बेचैनी
|पिछले दो वर्षों से तेल के दामों में गिरावट आने से मुश्किलों का सामना कर रही विदेशी ऑयल कंपनियां भारत जैसे बाजार में रिटेलिंग बिजनस शुरू कर अपना बिजनस बढ़ाना चाहती हैं। 13 लाख करोड़ डॉलर का रिजर्व रखने वाली दुनिया की टॉप पेट्रोलियम कंपनियों में शामिल सऊदी अरामको ने भी भारत में फ्यूल की मार्केटिंग में दिलचस्पी दिखाई है। भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी इकनॉमी होने के साथ ही तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता भी है।
देश में सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों के पास फिलिंग स्टेशंस का एक बड़ा नेटवर्क और मजबूत सप्लाई चेन मौजूद है, लेकिन इंटरनेशनल ऑयल कंपनियों के ग्लोबल एक्सपीरियंस, ब्रांड इक्विटी और कैश को लेकर मजबूत स्थिति की वजह से उनका मुकाबला करना आसान नहीं होगा। इंडियन ऑयल कॉर्प के पूर्व एग्जिक्युटिव डायरेक्टर अमरेश कपूर ने कहा, ‘बीपी और रोजनेफ्ट मौजूदा कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर सकती हैं। अगर वह तेजी से खर्च करें तो जल्द फिलिंग स्टेशंस का नेटवर्क तैयार कर सकती हैं। सरकार भी उनका स्वागत करने के लिए तैयार है और ऐसे में उन्हें सप्लाई हासिल करने या अपना नेटवर्क बढ़ाने में मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा।’
केपीएमजी में कंसल्टेंट गौरव मोडा के मुताबिक, ‘विदेशी कंपनियां ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिसेज देश में ला सकती हैं, जिससे सर्विस का लेवल बढ़ेगा। टेक्नॉलजी और इनोवेशन के अधिक इस्तेमाल के साथ वह अपनी मार्केट हिस्सेदारी बढ़ा सकती हैं।’ विदेशी कंपनियों के आने से पेट्रोल पंप मालिक भी चिंतित हैं। ऑल इंडिया पेट्रोलियम डीलर्स असोसिएशन के पदाधिकारी नितिन गोयल ने कहा, ‘इंटरनेशनल कंपनियां हमारे कस्टमर्स छीन सकती हैं। नई लुक और इक्विपमेंट के अलावा अडवांस्ड टेक्नॉलजी और बेहतर सर्विस के चलते वह निश्चित तौर पर हमसे आगे रहेंगी।’
हालांकि देश की सबसे बड़ी फ्यूल रिटेलर इंडियन ऑयल कॉर्प का कहना है कि वह इस कॉम्पिटिशन से निपटने के लिए तैयार है। कंपनी के डायरेक्टर (मार्केटिंग) बीएस कैंथ ने कहा, ‘हम कॉम्पिटिशन के लिए पूरी तरह तैयार हैं। नई कंपनियों के आने से कॉम्पिटिशन बढ़ेगा और अंत में ग्राहकों को फायदा होगा।’
India’s fuel retailing sector is poised for unprecedented competition with Russia’s Rosneft and Britain’s BP Plc set to operate petrol pumps with global best practices, which can shake up the state dominated sector and give consumers international quality service. Armed with fat balance sheets and a welcoming government, these aggressive oil biggies can challenge the dominance of state firms, which have 95 per cent share in the business. Read full story here…
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