रेलवे को सौ रुपये कमाने के लिए खर्च करने पड़ रहे हैं ₹99.54
|इंडियन रेलवे के बढ़ते खर्चों पर चिंता जताते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने सुझाव दिया है कि इस तरह के हालात पर काबू पाने के लिए सबसे पहले रेलवे को अपने यात्री किरायों में नए सिरे से तय करने के साथ ही मुफ्तखोरों पर भी लगाम लगाने की जरूरत है। कैग की चिंता यह भी है कि इस वक्त उसके बढ़ते खर्चों की स्थिति यह हो गई है कि रेलवे को एक सौ रुपये कमाने के लिए 99.54 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।
संसद में मंगलवार को पेश की गई कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016-17 के वित्तीय साल में रेलवे की ऑपरेटिंग कॉस्ट 96.50 फीसदी है, लेकिन अगर इसमें पेंशन पर खर्च रकम को जोड़ दिया जाए तो यह आपरेटिंग रेश्यो बढ़कर 99.54 फीसदी है। कैग का कहना है कि इस स्थिति को सुधारने के लिए ऑपरेटिंग कास्ट की चरणबद्ध तरीके से वसूली होनी चाहिए ताकि रेलवे के खर्चों में कमी की जा सके।
कैग की इस रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि कायदे से यात्री किराया और मालभाड़ा लागत के आधार पर तय किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा करते हुए रेलवे की मौजूदा वित्तीय स्थिति और मार्केट स्थिति को ध्यान में रखकर किरायों को तर्कसंगत बनाया जाए।
यह भी कहा गया है कि एसी वन, फर्स्ट क्लास और टू टीयर एसी में सफर करने वाले यात्रियों के लिए किराये में किसी तरह की सब्सिडी का अर्थ नहीं है। इन श्रेणियों के लिए किराया उतना होना चाहिए, जितनी उन पर लागत आती है। यही नहीं, यह भी कहा गया है कि इन श्रेणी में मुफ्त और रियायती किराया पास देने की प्रवृत्ति पर रेलवे को रोक लगानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि रेलवे ने इस वक्त ट्रेनों में यात्रा के लिए जो कैटेगरी तय की हुई हैं, उनमें सिर्फ थर्ड एसी कैटेगरी में ही रेलवे को कमाई होती है वह भी बेहद मामूली। बाकी सभी कैटेगरी में रेलवे को लागत से कम ही किराया मिलता है। दिलचस्प यह है कि यह हालत तब है, जबकि मार्च 2017 तक फ्लेक्सी फेयर लागू हुए कुछ महीने बीत चुके थे। लेकिन फ्लेक्सी फेयर से हुई अतिरिक्त कमाई के बावजूद उसकी आपरेटिंग कॉस्ट अपेक्षाकृत ऊंची बनी हुई है।
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