बिहार की GE डीजल इंजन फैक्ट्री का काम चल रहा है: पीयूष गोयल
|बिहार में बनाई जा रही जनरल इलेक्ट्रिक की लोकोमोटिव फैक्ट्री पटरी पर ही है और सरकार देशहित में यथासंभव अच्छा काम करेगी। यह बात रेल मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को कही। उन्होंने इन चिंताओं को खारिज किया कि भारतीय रेल इस डीजल लोको फैक्ट्री प्रॉजेक्ट से हटने की योजना बना रहा है।
मंत्री ने कहा, ‘वह फैक्ट्री लगाई जा रही है और काम पटरी पर है। मुझे कोई बदलाव होता हुआ नहीं दिख रहा है। चार-पांच दिनों पहले उनके टॉप अधिकारियों ने मुझसे मुलाकात की थी। वहां काम चल रहा है, लेकिन जहां तक प्रदूषण और पर्यावरण में बदलाव से जुड़ी चिंताओं की बात है तो इलेक्ट्रिफिकेशन जनहित में है। इससे अरबों डॉलर की बचत होगी।’
गोयल ने कहा, ‘हमने जीई के साथ कई सार्थक वार्ताएं की हैं। इसमें इस बात पर भी चर्चा हुई है कि क्या आने वाले समय में हम प्रदूषण घटाने और लागत में बचत करने के दोहरे मकसद हासिल करने और साथ ही यह सुनिश्चित करने पर गौर कर सकते हैं कि यह कॉन्ट्रैक्ट भारत के लोगों की सेवा करता रहे।’
बिहार वाली फैक्ट्री में जीई के डीजल के बजाए इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव्स बनाने की संभावना पर रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने कहा, ‘वाराणसी की डीजल लोकोमोटिव फैक्ट्री में भी इलेक्ट्रिक इंजन बनाए जा रहे हैं। यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है कि डीजल इंजन को इलेक्ट्रिकल में नहीं बदला जा सकता है। वाराणसी में ऐसा किया ही जा रहा है। हालांकि हम जीई के साथ हुए करार को लेकर प्रतिबद्ध हैं।’
सरकार की ओर से यह बयान तब आया है, जब जीई ने कहा था कि अगर रेल मंत्रालय ने जॉइंट वेंचर प्रॉजेक्ट में बदलाव का कदम बढ़ाया तो ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम प्रभावित हो सकता है। जीई ने साल 2015 में 14600 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था। उसे रेलवे को 10 वर्षों में 1000 डीजल लोकोमोटिव्स मुहैया कराने हैं। यह काम वह भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाकर करेगी।
कंपनी इस प्रॉजेक्ट में 1300 करोड़ रुपये निवेश कर रही है। हालांकि रेलवे अगले कुछ वर्षों में 100 पर्सेंट इलेक्ट्रिक नेटवर्क की ओर कदम बढ़ा रहा है, लिहाजा सवाल उठ रहे हैं कि डीजल इंजनों की जरूरत क्या रह जाएगी। गोयल ने इसी महीने रेल मंत्री बनने के बाद इस संभावना पर रेल बोर्ड से चर्चा की थी। जीई के टॉप अधिकारी भी प्रॉजेक्ट की पिक्चर साफ करने के लिए गोयल से मिले थे।
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