ध्यानचंद पुरस्कार प्राप्त करने से पहले साझा की अपनी यादें
| मां की हाथ से बुनी स्वेटर और बाटा के जूतों को पहनकर विंबलडन कोर्ट पर कदम रखना और 1964 में इस ग्रैंडस्लेम टूर्नमेंट के लिए क्वॉलिफाइ करने के बाद फ्रेड पैरी का उन्हें रैकिट सौंपना जैसी कुछ यादें हैं जो आज भी शिव प्रकाश मिश्रा को रोमांचित कर देती हैं। मिश्रा को जल्द ही आजीवन उपलब्धियों के लिए प्रतिष्ठित ध्यानचंद पुरस्कार दिया जाएगा। उन्होंने उन दिनों को याद किया जब खेल के प्रति दीवानगी महत्वपूर्ण होती थी। उन्होंने तब कुछ टूर्नमेंट में प्रति प्रदर्शनी मैच पांच पाउंड की रकम पर खेले थे। ग्रैंडस्लेम और डेविस कप में कई वर्षों तक भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले 73 वर्षीय मिश्रा ने कहा कि विंबलडन के पुरुष सिंगल्स के लिए क्वॉलिफाइ करना और दिग्गज फ्रेड पैरी से टेनिस किट हासिल करना उनके करियर का सबसे यादगार क्षण रहा। उन्होंने कहा, ‘उन दिनों खिलाड़ियों को केवल 100 पाउंड मिला करते थे जबकि आजकल पहले दौर में हारने वाले को 25,000 पाउंड के करीब धनराशि मिल जाती है। हमने बहुत संघर्ष किया। आप विदेश जाते समय अपने साथ आठ डॉलर से ज्यादा नहीं ले जा सकते थे। वहां रहना बहुत मुश्किल होता था। हम पैसे कमाने के लिए प्रदर्शनी मैच खेला करते थे।’ मिश्रा ने कहा, ‘विंबलडन के बाद मैं यूएस नैशनल चैंपियनशिप (यूएस ओपन सिंगल्स से पहले) में भी खेला। फोरेस्ट हिल पर घास पर खेलते हुए मैं तीसरे दौर में पहुंचा था। दूसरे दौर में मैंने अर्नेस्टो अगुएरी के खिलाफ पांचवां सेट 14-12 से जीता था लेकिन तीसरे दौर में विक सैक्सास (अमेरिका) से हार गया था। वे वास्तव में कड़े दिन थे।’ मिश्रा ने बताया कि अमेरिका में 12 सप्ताह खेलने पर उन्हें प्रति सप्ताह 50 डॉलर मिलते थे। इसके अलावा वे प्रदर्शनी मैचों में खेलकर प्रति मैच पांच पाउंड की कमाई करते थे। उन्होंने कहा, ‘उन दिनों खिलाड़ियों के पास टेनिस से इतर करियर बनाने और पैसा कमाने के ढेर सारे मौके होते थे। ‘ अब चयन समिति के अध्यक्ष मिश्रा ने 1964 में डेविस कप में पदार्पण किया। उन्होंने सीलोन (अब श्रीलंका) और पाकिस्तान के खिलाफ जीत से शुरुआत की। उन्होंने कहा, ‘मैंने हैदराबाद में पदार्पण किया तथा सिंगल्स और डबल्स दोनों में जीत दर्ज की। इसके बाद लाहौर में मैंने पाकिस्तान के नंबर एक खिलाड़ी को हराया। वे वास्तव में शानदार दिन थे और उन्हें मैं बड़े खुश होकर याद करता हूं।’ मिश्रा ने हालांकि कहा कि अब भारतीय खिलाड़ी घास पर खेलना पसंद नहीं करते हैं जो डेविस कप के घरेलू मुकाबलों में भारत के लिए फायदे का सौदा होता था। उन्होंने कहा, ‘हमने कुछ अच्छी टीमों के खिलाफ घरेलू मुकाबलों में घास पर कई मैच जीते। दुखद है कि अब खिलाड़ी घास पर खेलना पसंद नहीं करते। उन्हें हार्ड कोर्ट भाता है।’
मिश्रा ने कहा, ‘विंबलडन में तब बेस्ट ऑफ फाइव क्वॉलिफायर्स होते थे और मैंने पांच सेट तक चले तीन मैच जीतकर क्वॉलिफाइ किया था। मैं लकड़ी के रैकिट से खेलता था, बाटा के जूते और मां की बुनी हुई स्वेटर पहनता था। जब मैंने मुख्य ड्रॉ में जगह बनाई तो महान फ्रेड पैरी आए और उन्होंने अपनी किट, जूते और रैकिट मुझे दिए। यह नि:संदेह मेरे करियर का सबसे यादगार क्षण था।’
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