क्या ज्यादा गरीबी वाले राज्य मनरेगा पर कम कर रहे खर्च?
|केंद्र सरकार ने पूर्व ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है। समिति को सरकार की प्रमुख योजना मनरेगा के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है, जिसमें वर्षों से चल रही इस योजना की गरीबी उन्मूलन में भूमिका, सरकारी ढांचे और व्यवस्था व खासकर व्यय के तरीकों का अध्ययन शामिल है।
सूत्रों का कहना है कि अक्टूबर में गठित की गई समिति जनवरी तक अपनी रिपोर्ट देगी। यह रिपोर्ट संसद में फरवरी में पेश होने जा रहे केंद्रीय बजट 2022-23 के पहले आएगी। महामारी के पहले करीब 5 से 5.5 करोड़ परिवार इस योजना के तहत नियमित रूप से रोजगार पाते थे। महामारी के बाद यह संख्या बढ़कर 7 करोड़ के पार पहुंच गई है।
साथ ही महामारी के पहले इस योजना के लिए सालना करीब 70,000 से 80,000 करोड़ रुपये बजट का प्रावधान किया जाता था, जो महामारी के बाद बढ़कर करीब 1,00,000 करोड़ रुपये सालाना हो गया है। इस योजना पर बड़े पैमाने पर खर्च जारी रहने और आर्थिक रिकवरी के संकेत दिखने के बावजूद कुछ तिमाहियों से ग्रामीण इलाकों में काम की मांग बढ़ने के कारण इस मद में किए जा रहे खर्च की प्रकृति को लेकर कुछ संदेह उठ रहे हैं।
कई खबरें आईं, जिनमें कहा गया है कि मनरेगा के तहत खर्च का तरीका बदल गया है और इस धन का बड़ा हिस्सा व्यक्तिगत संपत्तियों के सृजन में हो रहा है, जो मुख्य रूप से हाशिये पर खड़े लोगों पर किया जाता है, लेकिन चिंता बनी हुई है।
हाल की खबरों में कहा गया है कि 25 राज्यों के 341 ब्लॉक में मनरेगा के तहत किए गए काम केंद्र सरकार की जांच के दायरे में है, जिसके लिए विशेष ऑडिट टीम लगाई गई है, जिसे इसकी जमीनी हकीकत समझनी है। हालांकि मनरेगा के तहत कुछ तिमाहियों से काम की मांग कृत्रिम होने या छेड़छाड़ कर रिपोर्ट तैयार करने के संदेह के विपरीत डलबर्ग एडवाइजर्स की रिपोर्ट ‘द स्टेट आफ रूरल इंप्लाइमेंटः ए लुक ऐट मनरेगा एक्रॉस 5 स्टेट्स इन इंडिया’ की धारणा है।
कुछ महीने पहले जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ साल के दौरान करीब 70 प्रतिशत जॉब कार्ड धारकों ने मनरेगा में काम की मांग की है। इसमें यह भी कहा गया है कि सभी परिवारों ने काम के लिए आवेदन किया, उन्हें काम मिला भी, लेकिन उनमें से ज्यादातर को कम काम मिला।
डलबर्ग के शोध में 5 राज्यों आंध्र प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के आंकड़े शामिल किए गए हैं। इन राज्यों में योजना के तहत दिए जाने वाले कुल रोजगार का एक तिहाई रोजगार मिलता है और मनरेगा के तहत पंजीकृत कुल कामगारों में से 40 प्रतिशत इन्हीं राज्यों से हैं।
मनरेगा पर किए जाने वाले खर्च के वित्त वर्ष 2022 के आंकड़ों और गरीबी के साथ इसके संबंध को लेकर कुछ पैटर्न मिलता है, लेकिन यह ठोस नहीं है। साथ ही वास्तविक व्यय इस पर निर्भर है कि राज्य कितनी मांग के सृजन में सक्षम है और मांग के लिए कितना माहौल तैयार करते हैं, जिससे हाशिये के समाज के लोग काम की मांग कर सकें और कृत्रिम रूप से मांग को दबाया न जाए।
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