कॉलम: सिंगापुर से सबक ले सकते हैं मोदी और भारत
| सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली क्वान यू का निधन हो गया है। रविवार को होने वाले उनके अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। ली हर लिहाज से एक सख्त मिजाज नेता थे, लेकिन ऐसे स्टेट्समैन भी थे, जिनकी इमेज उनके देश की संस्कृति, मूल्य, छवि और संपत्ति में गहराई से दर्ज है। वह पूरी सत्ता अपने हाथ में रखने वाले नेता थे। विपक्ष को कुचल देने में उन्हें परहेज नहीं था। उनका मानना था कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के वेस्टर्न कॉन्सेप्ट एशिया के लिए नहीं हैं। बिजनस की काम की खबरें तुरंत पाने के लिए ET हिंदी का Facebook पेज लाइक करें और @ETHindi को Twitter पर फॉलो करें। अपने गरीब पड़ोसियों के बीच सिंगापुर ने काफी पहले वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया था। चाइनीज कम्युनिटी के दबदबे के बीच दो अल्पसंख्यक समुदायों मलय और भारतीयों के होने के बावजूद वहां किसी समुदाय विशेष के लिए सामाजिक तौर पर दम घुटने वाली स्थिति पैदा नहीं हुई थी। युवाओं को अनिवार्य रूप से दो साल के लिए नैशनल सर्विस में समय देना होता है। सिविल सर्वेंट्स और मिनिस्टर्स को प्राइवेट सेक्टर जैसी सैलरीज मिलती हैं। ड्रग तस्करी के लिए मौत की सजा है। गुंडागर्दी पर सार्वजनिक पिटाई होती है। आपको लगेगा कि यह पुलिस स्टेट है, लेकिन सड़कों पर पुलिस बमुश्किल दिखेगी। फिर भी आप पर नजर रहती है। आपको संदिग्ध पड़ोसियों की जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। मोदी के साथ ली की खूब छनी होती। विकास के बारे में उनकी सोच एक जैसी है। असहमति दोनों को नापसंद है। हालांकि कुछ मामलों में मोदी ज्यादा स्मार्ट नेता दिखते हैं। वह कई दलों वाले लोकतंत्र में टॉप पर पहुंचे हैं। उन्हें सवा अरब लोगों की उम्मीदों पर इम्तिहान देना है, जबकि ली के सामने 56 लाख लोग ही थे, जिनमें से करीब एक चौथाई ऐसे विदेशी लोग थे, जो फाइनैंशल सेंटर के रूप में सिंगापुर का रुख करते रहते थे। सोशल मीडिया पर मोदी वाचाल हैं और इंडिया में मुख्य धारा के प्रेस को बाईपास करने के लिए उन्होंने यह तरीका ढूंढा है। ली की तरह मोदी भी अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं होते हैं। हालांकि अगर हवा खिलाफ चल रही हो तो यह रवैया उन्हें दिक्कत दे सकता है। संसद का एक महीने का सत्र काफी प्रॉडक्टिव रहा। अध्यादेश के रूप में मोदी ने जिन छह कानूनों की ओर कदम बढ़ाया था, उनमें से पांच को वह संसद से पास कराने में सफल रहे। राज्यसभा में एनडीए के अल्पमत को देखते हुए यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। मोदी अगर अपने डिवेलपमेंट अजेंडा पर टिके रहे और इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में भारत की छवि निखार सके तो ही गरीबी जल्द खत्म होगी। लिहाजा टैक्स टेररिज्म को जल्द खत्म किया जाना चाहिए और जीएसटी को लागू किया जाना चाहिए। रिफॉर्म्स की राह पर तेजी से कदम बढ़ाने होंगे, जिसके बारे में आईएमएफ की क्रिस्टिन लागार्डी ने इसी महीने याद दिलाया था। उधर सिंगापुर में ली के निधन से राजनीतिक बदलाव तेज होंगे। 2011 के चुनावों में विपक्षी समूहों को वहां की 87 सीटों में से छह मिली थीं। सिंगापुर के लोग अब फ्री स्पीच की मांग मुखरता से करने लगे हैं। ली की पकड़ कमजोर हो ही चुकी थी और अब उनके जाने के साथ वह शिकंजा टूट गया है। पूरी सत्ता हमेशा अपने पास नहीं रखी जा सकती है। इस सप्ताहांत जब मोदी ली के अंतिम संस्कार में शामिल होंगे, तो उन्हें इस पर विचार करना चाहिए।
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