केंद्रीय नेताओं का सीलिंग पर मंथन, ताकि छिटक न जाएं वोट!
|जानकार सूत्रों ने दावा किया है कि दिल्ली को सीलिंग की मार से बचाने के लिए बीजेपी के तीन बड़े केंद्रीय नेता ऐक्टिव हैं। उनका मानना है कि पार्टी के परंपरागत वोटों को छिटकने से बचाने के लिए तो सीलिंग का तोड़ निकालना जरूरी है ही, संभावित दिल्ली विधानसभा उपचुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिए भी लोगों का रोजगार बचाना जरूरी है। दिल्ली के नेताओं से मंथन चल रहा है। राजनिवास से भी सलाह-मशविरा किया जा रहा है।
साल 2006-07 में दिल्ली के दुकानदारों को भारी सीलिंग का सामना करना पड़ा था। एमसीडी में कांग्रेस का शासन था। सीलिंग का गुस्सा पार्टी पर भारी पड़ा था, जिसके बाद अब तक उनका एमसीडी में शासन नहीं आ पाया। बीजेपी नेता मान रहे हैं कि एमसीडी के चुनाव तो फिलहाल नहीं होने हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा की 20 सीटों पर उपचुनाव होने की संभावनाओं के बीच सीलिंग प्रकरण पार्टी के लिए खासी परेशानी पैदा कर सकता है। पार्टी को व्यापारी वोट बैंक में सेंध का खतरा लग रहा है, इसलिए सीलिंग की मार से दुकानदारों को बचाने के लिए गंभीर मंथन चल रहा है। संभावना है कि केंद्र इस बाबत संसद के बजट सेशन में बिल लाएगी, इसलिए बिल के प्रारूप को लेकर बातचीत का दौर शुरू हो गया है।
सूत्रों का दावा है कि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह लगातार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और संबद्ध अफसरों से विचार-विमर्श में लगे हैं। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदेव पुरी व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी मंत्रणा में जुटे हैं। सूत्रों के अनुसार इस मसले को लेकर इन्होंने उपराज्यपाल अनिल बैजल को एक-दो बार बुलाया भी है और पूछा है कि दिल्ली के केंद्रशासित प्रदेश होने के नाते संभावित बिल में क्या-क्या प्रावधान जोड़े जा सकते हैं, ताकि बाद में कोर्ट का सामना या अन्य परेशानियों से रूबरू न होना पड़े। इस मसले पर मास्टर प्लान से जुड़े पूर्व अफसरों से भी बातचीत की गई है, ताकि दिल्ली को बचाने का जो बिल लाया जाए, उसमें बाद में संशोधन करने की जरूरत न पड़े।
सूत्र बताते हैं कि केंद्र के साथ समस्या यह है कि सीलिंग को बचाने का कोई भी कानून उसके ही बनाए मास्टर प्लान के लिए परेशानी पैदा करेगा। दूसरी समस्या यह कि लोगों को सीलिंग से तो बचा लिया जाए लेकिन अवैध निर्माणों से दिल्ली को कैसे बचाया जा सकेगा? साल 2007 में जब दिल्ली को सीलिंग से बचाया गया था, तब भी यह कहा गया था कि अवैध निर्माण को बचाने की ठोस नीति बनेगी, लेकिन वह नहीं बनी। इसके चलते दिल्ली के कई इलाके स्लम में तब्दील हो गए। केंद्र माथापच्ची कर रहा है कि दिल्ली को सीलिंग से बचा लिया जाए, लेकिन अवैध निर्माण पर भी रोक लगाई जाए। इसके लिए दिल्ली के पार्टी नेताओं से भी सलाह ली जा रही है।
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