ऐपल-वॉलमार्ट मिलकर भी इस कंपनी के सामने छोटे

रियाद

सऊदी अरामको कहने को तो सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी है, लेकिन यह दुनिया की कई दिग्गज कंपनियों से मीलों आगे है। यह दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी है, जो हर दिन करीब 90.54 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करती है। द वॉशिंगट पोस्ट में छपी खबर के मुताबिक, यह दुनिया में कुल तेल उत्पादन का 10 पर्सेंट है और अमेरिका के कुल कच्चे तेल उत्पादन से भी ज्यादा। सऊदी सरकार की इस कंपनी के पास सबसे ज्यादा ऑइल फील्ड्स हैं जिनमें करीब 2.65 खरब बैरल तेल हैं। विश्व की मौजूदा मांग को देखें तो यह मात्रा 8 सालों तक आपूर्ति के लिए पर्याप्त है।

द वॉशिंगटन पोस्ट कहता है कि सऊदी अरामको के पास ना केवल तेल का अकूत भंडार है बल्कि यह दुनिया भर में सबसे सस्ते तेल की आपूर्ति करने में भी सक्षम है। यही वजह है कि सऊदी सरकार की अकूत संपत्ति में करीब पूरा का पूरा योगदान इसी कंपनी का है। इसलिए, जब इस महीने जब यह सुनने में आया कि कंपनी का निजीकरण किया जाएगा तो बैंकों और निवेशकों के मुंह में पानी आ गया। अगर, सऊदी अरामको निजीकरण की ओर कदम बढ़ाता है तो यह शायद दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा इनिशल पब्लिक ऑफरिंग्स (आईपीओ) होगा।

सऊदी किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद के 29 वर्षीय बेटे मोहम्मद बिन सलमान अल सऊद ने 4 जनवरी को द इकॉनमिस्ट से कहा था कि कंपनी आईपीओ ला सकती है और फिर कंपनी ने शुक्रवार को एक वक्तव्य जारी कर कहा कि वह विकल्पों पर विचार कर रही है। सोमवार को अरामको के चेयरमैन खालिद अल फालिह ने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा कि कंपनी लोगों के बीच जाएगी। हालांकि, उन्होंने कहा कि आईपीओ लिस्टिंग के लिए कोई समयसीमा नहीं तय की गई है।

अरामको का इतिहास दरअसल टेक्सास के एक तेल व्यापारी और मध्य पूर्व में अमेरिकी शोषण का इतिहास है। कंपनी की स्थापना चार अमेरिकी कंपनियों से मिलकर हुई थी। ये चारों कंपनियों का एक में विलय हो गया था। जब तीसरी दुनिया में उपनवेशवाद विरोधी लहर चली तो सऊदी अरब ने 1973 में अरामको का 25 प्रतिशत हिस्सा खरीद लिया और तब से उसने लगातार 1980 तक पूरी कंपनी को अपने नाम कर लिया। द वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, यह तो साफ है कि सरकार का इरादा कंपनी पर नियंत्रण कायम रखने का है। लेकिन, लिस्टिंग को लेकर कई जानकारियां अब भी धुंधली हैं। मसलन, क्या लिस्टिंग में मुख्य कंपनी भी शामिल होगी जिसके पास तेल रिजर्व्स हैं या रिफाइनरीज और पेट्रकेमिकल प्लांट्स जैसे सिर्फ आजू-बाजू वाले असेट्स ही लिस्टिंग का हिस्सा होंगे।

यह भी स्पष्ट नहीं है कि लिस्टिंग कुल कितने मूल्य की होगी। कैपिटल इकनॉमिक्स के जस्टिन ट्युवी की मानें तो अरामको का मूल्य 1 ट्रिलियन डॉलर (करीब 675 खरब रुपये) से लेकर 10 ट्रिलियन डॉलर (करीब 6750 खरब रुपये) से भी ज्यादा के बीच कुछ भी हो सकता है। इससे यह दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी हो जाएगी। लेकिन, सऊदी सरकार कंपनी का बहुत छोटा हिस्सा ही निजी हाथों में सौंपने पर विचार कर सकती है। तब भी, यह इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी रही 2014 में अलीबाबा की 25 बिलियन डॉलर (करीब 16.89 खरब रुपये) की लिस्टिंग को पार कर जाएगी।

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