आजीविका के लिए अफगानिस्तान में अफीम की खेती कर रहे किसान
|उन्होंने कहा कि गेंहू की कम कीमत, गरीबी और बेरोजगारी ने उन्हें गेहूं की जगह खसखस को देने के लिए मजबूर कर दिया। असदुल्लाह ने अपनी मजबूरी समझाते हुए कहा, ‘सच कहूं तो मुझे अफीम की खेती से नफरत है। यह एक जहर है, जो लोगों की जान लेता है। मादक पदार्थ या अन्य अवैध ड्रग्स उगाना और उन्हें बेचना इस्लामिक कानून में हराम है।’
युद्धग्रस्त अफगानिस्तान बहुत बड़े पैमाने पर अफीम की खेती करने वाला देश है। यह कथित तौर पर देश में हेरोइन के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल की करीब 90 फीसदी आपूर्ति करता है। अफगानिस्तान में पूर्व में तालिबान के चंगुल में रहे दक्षिणी कंधार और हेलमंड प्रांत अवैध मादक पदार्थों की बड़े पैमाने पर खेती करने वाले इलाके हैं।
बुझे-बुझे से असदुल्लाह ने कहा, ‘मैं अफीम की खेती छोड़ने और वैद्य फसलें जैसे गेहूं, चावल, तरबूज-खरबूजा व केसर की खेती करने के लिए तैयार हूं, लेकिन अगर सरकार मेरी केसर खरीदने, मेरे कृषि उत्पादों को बेचने के लिए एक बाजार तलाशने या मेरे बेटों को एक नौकरी दिलाने में मदद करे।’
मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।