आईआईटी में ऐडमिशन के लिए बेचनी पड़ी भैंस, लेना पड़ा लोन

अभिनव मल्होत्रा, कानपुर
कानपुर के होनहार शशि कुमार के लिए जेईई अडवांस्ड को क्लियर कर आईआईटी में स्थान हासिल करना उतना कठिन नहीं रहा, जितना इसके लिए फी जुटाना। अलीगढ़ के हरिरामपुर गांव के रहने वाले शशि ने आईआईटी की SC PWD कैटिगरी में ऑल इंडिया 5वीं रैंक हासिल की है। उन्हें अपने रैंक के आधार पर आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस से बीटेक अलॉट हुआ। लेकिन शशि की फी का जुगाड़ करने के लिए घरवालों को अपनी भैंस तक बेचनी पड़ गई।

इतना ही नहीं परिवार को स्थानीय स्तर पर 3 प्रतिशत के इंट्रेस्ट रेट से लोन भी लेना पड़ा है। शशि कुमार के पिता मनरेगा में मजदूर हैं। टीबी बीमारी से पीड़ित शशि के पिता सोनपाल की मासिक आमदनी 4 हजार रुपये है। उनकी सारी कमाई इलाज और घर में ही खर्च हो जाती है।

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत करते हुए शशि कुमार ने बताया, ‘भैंस को बेचने पर हमें 8000 रुपये मिले। बाकी के पैसे गांव के एक साहूकार से लोन पर लिए गए। इसके लिए 3 फीसदी के हिसाब से इंट्रेस्ट चुकाने होंगे। भैंस बेचने का फैसला मेरे पिता ने लिया था। हम गरीब हैं और हमारे पास इस संकट से निकलने का और कोई दूसरा चारा नहीं था।’

ऐडमिशन फी के बाद और दूसरे खर्चों का क्यो होगा, इस सवाल पर शशि ने कहा कि या तो बैंक से लोन लेना पड़ेगा या फिर ऐसा हो कि आईआईटी कानपुर उसे कुछ स्कॉलरशिप दे दे। शशि ने कहा, ‘अब सबकुछ भगवान के हाथों में है। वह जैसे हमें इस स्थान पर लेकर आए हैं, वैसे ही भविष्य में भी मदद करेंगे।’

शशि अपने गांव के ऐसे पहले शख्स हैं, जिन्होंने प्रतिष्ठित आईआईटी जेईई को पास किया है। शशि के पिता को इस बात का अंदाजा भली-भांति है कि शिक्षा ही उनके परिवार का जीवन स्तर बदल सकती है। इसके लिए उन्होंने अपने चारों बच्चों को जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ाया।

शशि की छोटी बहन गुड़िया घर पर बच्चों को ट्यूशन देती है। इसके एवज में मिले पैसे भी घर संभालने में खर्च हो जाते हैं। शशि ने दूसरे प्रयास में आईआईटी जेईई को पार पाने में सफलता हासिल की है।

अंग्रेजी में पढ़ें: This family sold a buffalo to pay for their son’s admission to IIT-Kanpur

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