Import duty: यूरोपियन बिजनेस ग्रुप ने कहा भारत आयात शुल्क करे आधा
|यूरोपियन बिजनेस ग्रुप (ईबीजी) ने भारत से 1500 सीसी के ऊपर वाली सभी लग्जरी और प्रीमियम कारों पर आयात शुल्क 50 फीसदी घटाने की मांग की है। ईबीजी के अंतर्गत कई यूरोपीय पैसेंजर कार निर्माता और वाहन कलपुर्जा कंपनियां आती हैं। वर्तमान में, पूरी तरह से तैयार (सीबीयू) नई पैसेंजर कारों पर आयात शुल्क या तो 60 फीसदी लगता है या फिर 100 फीसदी। यूरोपीय आयोग और भारत में यूरोपीय व्यापार समुदाय की अगुवाई करने वाले समूह ने सुझाव दिया है कि दो तरह के दामों के बजाय 50 फीसदी कीमत पर आयात किया जाना चाहिए।
इस समय, 100 फीसदी का सीमा शुल्क उन वाहनों पर लगाया जाता है, जिनकी माल भाड़ा सहित कुल कीमत 40,000 डॉलर से अधिक होती है, या 3 लीटर से अधिक इंजन क्षमता वाले पेट्रोल वाहनों और 2.5 लीटर या इससे अधिक इंजन क्षमता वाले डीजल वाहनों पर भी सीमा शुल्क 100 फीसदी लगाया जाता है। पूरी तरह से तैयार वे कारें,जिनकी माल भाड़ा सहित कुल कीमत 40,000 डॉलर से कम है या 3,000 सीसी वाले पेट्रोल वाहनों और 2500 सीसी वाले डीजल वाहनों पर 60 फीसदी का सीमा शुल्क लगाया जाता है।
ईबीजी ने अपनी मांग के बारे में बताते हुए कहा कि अधिकांश यूरोपीय कार निर्माता भारत में कलपुर्जे और सीकेडी (कंप्लीटली नॉक्ड डाउन) किट आयात करते हैं और उन्हें स्थानीय स्तर पर असेंबल करते हैं ताकि घरेलू कमाई बढ़ाई जा सके। हालांकि, जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान जैसे देशों, जिनके साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) हैं, द्वारा लगाए गए शुल्क के मुकाबले यूरोप से निर्यात किए गए मालों पर अधिक सीमा शुल्क लगता है।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच प्रस्तावित एफटीए से निकल सकता है इस समस्या का समाधान
इसके कारण यूरोपीय निर्माताओं को अधिक नुकसान झेलना पड़ता है। समूह के अनुसार, भारत में प्रीमियम बाजार छोटा है और इसके कारण, यूरोपीय वाहन निर्माता को पैमाना और गुणवत्ता के हिसाब से बेहतर मुनाफा नहीं मिल पाता है और इसलिए एक स्तर के बाद आपूर्तिकर्ता अधिक विस्तार नहीं कर पाते। बेशक, इन समस्याओं को यूरोपीय संघ और भारत के बीच प्रस्तावित एफटीए के माध्यम से हल किया जा सकता है। ईबीजी ने सिफारिश की है कि प्रस्तावित यूरोपीय संघ-भारत एफटीए में मोटर वाहन क्षेत्र को शामिल करना जरूरी है और कहा है कि यह टैरिफ कटौती और गैर-टैरिफ प्रतिबंधों में छूट पर एक आपसी समझौता होगा।
ईबीजी ने यह भी तर्क दिया है कि गैर-टैरिफ प्रतिबन्धों को हटाने के लिए समान प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि इससे यूरोपीय निर्माताओं द्वारा भारत में निवेश के लिए रुकावट उत्पन्न होती है। तीसरा, यह तर्क भी दिया गया है कि प्रीमियम और वॉल्यूम उत्पादों के बीच अंतर एक संभावित रास्ता है, जिसके माध्यम से भारत सरकार स्थानीय वाहन निर्माताओं पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव को दूर कर सकती है।
फोक्सवैगन ने किया है 2 अरब डॉलर से अधिक निवेश का वादा
यूरोपीय वाहन क्षेत्रों ने भारत में 300 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। फोक्सवैगन जैसी कार निर्माता कंपनियों ने देश में 2 अरब डॉलर से अधिक के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है। ईबीजी ने ईवी को बढ़ावा देने के लिए लंबी अवधि के निवेश में विश्वास बढ़ाने, लंबी अवधि के लिए ईवी पर 5 फीसदी जीएसटी को जारी रखने और स्वदेशीकरण लक्ष्य के विस्तार और एक निश्चित ईवी मात्रा हासिल करने के बाद संभावित चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम लागू करने के लिए सात साल की ईवी नीति को तैयार करने की सिफारिश की है। हालांकि दोपहिया और तिपहिया वाहन निर्माताओं के संगठन द्वारा स्थानीयकरण की कुछ मांग को पूरा किया जा रहा है।
भारतीय बाजार के लिए, ईबीजी ने 2017 में प्रीमियम कारों पर लगाए गए अतिरिक्त उपकर में चरणबद्ध कमी करने के लिए कहा है जो पांच साल के लिए होना था। समूह ने इसे शुरू में 12 फीसदी की सीमा निर्धारित करने के लिए कहा है। इसके बाद यह धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से इसे शून्य पर लाया जा सकेगा। इसका उद्देश्य, वाहन क्षेत्र के लिए एकल जीएसटी दर में परिवर्तन करना है। वर्तमान में, प्रीमियम वाहनों पर 28 फीसदी के साथ अधिकतम जीएसटी लगाई जाती है, और इसके अलावा अतिरिक्त उपकर 20 से 22 फीसदी के दायरे में लगाया जाता है। इसके बाद एसयूवी कारों पर कुल कर 48 से 50 फीसदी तक पहुंच जाता है।
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