इंटिमेट सीन्स से पहले खास कपड़े पहनाए जाते हैं:इमोशन पर कंट्रोल के लिए वर्कशॉप होती है; जब असहज दीपिका के लिए कैमरामैन हटाए गए

पक्षियों का चोंच लड़ाना, दो फूलों का मिलना, दूध का उबलना…पुरानी फिल्मों में ये सीन हीरो-हीरोइन की इंटिमेसी दिखाने के लिए डाले जाते थे। वक्त के साथ इन इंटिमेट सीन्स को फिल्माने में काफी बदलाव आ गया है। सीन को वास्तविक रूप देने की होड़ मची है और डायरेक्टर्स के सामने चुनौती बड़ी हो गई है। ऐसे सीन्स शूट करना न एक्टर्स के लिए आसान होता है और न ही डायरेक्टर के लिए। सबसे बड़ा चैलेंज यह है कि सीन को ओरिजिनल दिखाने के साथ-साथ स्टार्स को एक-दूसरे की डिग्निटी का भी ख्याल रखना पड़ता है। इसके लिए एक्टर्स की रिहर्सल होती है, वर्कशॉप में भेजा जाता है ताकि वे अपने इमोशंस को कंट्रोल कर सकें। यह वर्कशॉप ऑर्गनाइज करता है, इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर। आज के समय में सिने जगत में इनकी भूमिका काफी बढ़ गई है। रील टु रियल के इस एपिसोड में इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर की भूमिका और उनके वर्किंग प्रोसेस को समझेंगे। इसके लिए हमने देश की पहली इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर आस्था खन्ना, नेहा व्यासो, एक्ट्रेस-मनोचिकित्सक डॉ. अदिति गोवित्रिकर और मनोचिकित्सक डॉ. केरसी चावड़ा से बात की। आस्था ने बताया कि फिल्म गहराइयां में दीपिका पादुकोण इंटिमेट सीन्स को लेकर थोड़ी असहज हो रही थीं क्योंकि सेट पर काफी सारे लोग मौजूद थे। बाद में 4-5 लोगों को छोड़ सबको वहां से हटा दिया गया। यहां तक कि कैमरामैन को भी दूर बाथरूम से सीन रिकॉर्ड करने की हिदायत दी गई थी। एक्टर्स अपनी बाउंड्रीज इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर को बता देते हैं वर्कशॉप के दौरान इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर सबसे पहले एक्टर्स की इच्छा और सीमाओं पर बात करते हैं। वे किस लेवल तक सीन्स शूट कर सकते हैं, उनसे पहले पूछा जाता है। एक्टर्स अपनी बाउंड्रीज इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर को बता देते हैं। फिर एक्टर्स को बताया जाता है कि शूटिंग के दौरान उन्हें कैसे रिएक्ट करना है। हाथ कहां-कहां लगा सकते हैं, परफेक्शन इतना हो कि थोड़ा भी हाथ ऊपर-नीचे नहीं होना चाहिए। इस बीच एक्टर्स को समझाया जाता है कि अगर उन्हें कुछ भी गलत लगे तो कट बोल देना है या फिर अपनी बॉडी को स्थिर (फ्रीज) कर लेना है। यह देखकर डायरेक्टर खुद ही सीन रोक देगा। वर्कशॉप के बाद इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर सीन्स डिजाइन करते हैं। अब यहां इंटिमेसी का मतलब सिर्फ रोमांटिक सीन्स से नहीं है। सेक्शुअल वॉयलेंस जैसे रेप सीन, समलैंगिक संबंधों वाले दृश्य, नाबालिग के बीच किसिंग सीन्स और एक्टर्स के नहाने के सीन भी इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर की देखरेख में शूट होते हैं। इंटिमेट सीन्स को तीन कैटेगरी में रखा जाता है, एक्टर्स को खास कपड़े दिए जाते हैं नेहा व्यासो के मुताबिक, फिल्म के डायरेक्टर इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर को उस पर्टिकुलर सीन को लेकर एक ब्रीफ देते हैं। ब्रीफ के हिसाब से इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर तीन अलग-अलग कैटेगरी (रेड, यलो, ग्रीन) में सीन्स को ब्रेकडाउन करते हैं। रेड कैटेगरी में इंटिमेसी ज्यादा होती है, यलो में उससे थोड़ी कम और ग्रीन में बिल्कुल कम होती है। को-ऑर्डिनेटर इसके बाद सीन्स को अपने दिमाग में विजुअलाइज करते हैं, फिर पन्ने पर लिख लेते हैं। इसके बाद उन सीन्स को कैसे परफॉर्म करना है, एक्टर्स को बताया जाता है। उन्हें कुछ खास तरह के कपड़े दिए जाते हैं। इसे इंटिमेसी किट कहते हैं। इसके बाद एक क्लोज सेट पर इन सीन्स की शूटिंग शुरू होती है। शूटिंग के दौरान बस 4 से 5 लोग मौजूद होते हैं। 4 से 5 लोगों में आर्टिस्ट, डायरेक्टर, इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर और कैमरामैन होते हैं। आस्था खन्ना ने वेब शो सास बहू और फ्लेमिंगो की शूटिंग का एक किस्सा शेयर किया। उन्होंने बताया, ‘इस शो में एक रेप सीन था। 5 लड़के मिलकर एक लड़की के साथ रेगिस्तान में जबरदस्ती करते हैं। उस सीन को मुझे ऐसे फिल्माना था कि देखने में वो नेचुरल लगे। मैंने पांचों लड़कों के फेस पर ज्यादा फोकस किया। उनके चेहरे से वो दरिंदगी दिखनी चाहिए, ऐसा उन्हें बताया गया था। एक्ट्रेस को बिल्कुल ऐसे दिखाना था, जैसे वो जिंदा लाश की तरह लगे। इस सीन को ऐसे डिजाइन किया गया कि वो देखने में बिल्कुल रियल लगा।’ डिंपल कपाड़िया को उनके को-स्टार ने कर लिया था किस, यह सीन स्क्रिप्ट में नहीं था पहले जब इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर का अस्तित्व नहीं था, तब सेट पर ऐसे कई वाकये हो जाया करते थे, जब आर्टिस्ट को-स्टार के एक्शन की वजह से काफी असहज हो जाते थे। आस्था ने बताया, ‘एक बार डिंपल कपाड़िया ने मुझसे बताया कि उनके को-स्टार ने एक सीन की शूटिंग के दौरान उन्हें किस कर लिया था। जबकि इसके बारे में डिंपल को बताया भी नहीं गया था और न ही यह सीन स्क्रिप्ट में था। डिंपल के लिए यह घटना काफी शॉकिंग थी।’ राधिका आप्टे को को-स्टार ने कर दी गुदगुदी आस्था ने राधिका आप्टे का भी एक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, ‘शूटिंग के वक्त एक को-स्टार ने राधिका आप्टे को गुदगुदी कर दी थी। स्क्रिप्ट में ऐसा कुछ लिखा नहीं था, एक्टर ने खुद से मजाक मस्ती में यह कर दिया था। राधिका इस घटना पर कुछ भी रिएक्ट नहीं कर पाईं। शायद सामने वाले एक्टर का ओहदा काफी बड़ा था।’ आइटम सॉन्ग भी इंटिमेट सीन्स की कैटेगरी में आते हैं यहां तक कि आइटम सॉन्ग्स भी इंटिमेट सीन्स की कैटेगरी में आते हैं। शूटिंग के दौरान कैमरे का अधिकतर फोकस हीरोइन के बॉडी पार्ट्स पर होता है। ऐसे में उन्हें यह करने में दिक्कत न हो, इसके लिए भी प्रॉपर वर्कशॉप ऑर्गनाइज कराए जाते हैं। 30 के दशक में पहली बार हिंदी फिल्मों में इंटिमेट सीन्स दिखे ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड में इंटिमेट सीन्स फिल्माने की शुरुआत 1990 या 2000 के आसपास ही हुई। 1929 में एक्ट्रेस सीता देवी ने साइलेंट फिल्म ‘ए थ्रो ऑफ डाइस’ में को-स्टार चारू रॉय के साथ किसिंग सीन दिया था। 1933 की फिल्म कर्मा में देविका रानी का उनके को-स्टार हिमांशु राय के साथ 4 मिनट लंबा किसिंग सीन था, जो कि उस वक्त काफी चर्चा का विषय बना था। 1952 में सिनेमैटोग्राफी एक्ट के बाद ऐसे सीन्स पर कैंची चलनी शुरू हुई। फिर फिल्मों में लव मेकिंग सीन्स को सिम्बॉलिक तरीके से ही दिखाया जाने लगा। बाद में राज कपूर ने 70 के दशक में अपनी फिल्मों में ऑनस्क्रीन किसिंग को फिर से दिखाना शुरू किया। 1990 के दशक में किसिंग को ही लवमेकिंग सीन्स के तौर पर देखा जाता था। 2000 के बाद मेकर्स ने लव मेकिंग सीन्स फिल्माने का दायरा बढ़ा दिया। अब OTT के जमाने में ऐसे सीन्स साधारण हो गए हैं। हालांकि इंटिमेसी को-ऑर्डिनेटर्स का कहना है कि मेकर्स को ऐसे दृश्य सिर्फ ध्यान आकर्षित कराने के लिए नहीं डालने चाहिए। अगर स्क्रिप्ट की डिमांड है, तभी ऐसे सीन्स दिखाए जाने चाहिए, वर्ना यह फूहड़ता का रूप ले लेगी और इसके आगे कला कहीं दबकर रह जाएगी।

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