गन्ने से जैवलिन थ्रो की प्रैक्टिस, ओलिंपिक तक पहुंचीं अन्नू:दान के पैसों से जूते खरीदे, पापा कहते थे- पैसा नहीं है, खेलना छोड़ दो

‘मैं नहीं चाहता था कि अन्नू कोई गेम खेले। मेरे पास इतना पैसा नहीं था कि उसे नया जैवलिन दिला सकूं। अन्नू भी ये बात जानती थी। इसलिए वो जिद नहीं करती, घर के पीछे खेत में गन्ना फेंककर प्रैक्टिस कर लेती थी। बाद में स्कूल के हेडमास्टर ने उसे बांस का जैवलिन लाकर दिया। वो खेल में आगे बढ़ने लगी, तब हमने पहला प्रोफेशनल जैवलिन खरीदा। वो 2,500 रुपए का था।’ अमरपाल जैवलिन थ्रोअर अन्नू रानी के पिता हैं। अन्नू पेरिस ओलिंपिक में 7 अगस्त को जैवलिन थ्रो का क्वालिफाइंग राउंड खेलेंगी। वे ओलिंपिक तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला जैवलिन थ्रोअर हैं। नेशनल रिकॉर्ड होल्डर हैं, 60 मीटर से ज्यादा जैवलिन थ्रो करने वाली इकलौती भारतीय महिला हैं। चार बार अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं। इस लिहाज से उनसे ओलिंपिक मेडल की भी उम्मीद है। अन्नू की कहानी मेरठ के बहादुरपुर गांव से शुरू होती है। पिता अमरपाल किसान हैं। परिवार में पत्नी, दो बेटे और अन्नू समेत दो बेटियां हैं। एक वक्त अन्नू के पास अच्छे जूते खरीदने के पैसे नहीं थे। आश्रम को दान में मिले पैसों से उन्होंने पहली बार अच्छे जूते खरीदे थे। पढ़िए अन्नू रानी के घर से ग्राउंड रिपोर्ट। तीन गेम ट्राई किए, जैवलिन में बेस्ट थीं, इसलिए यही गेम चुना बहादुरपुर पहुंचने पर हम अन्नू के पिता अमरपाल से मिले। वे जिस कमरे में बैठे थे, उसमें अन्नू के मेडल और ट्रॉफियां रखी हैं। उन्होंने ये कमरा खासतौर से अन्नू के मेडल रखने के लिए बनवाया है। अमरपाल साफगोई से कहते हैं, ‘मुझे अन्नू का खेलना पसंद नहीं था। कभी नहीं लगा था कि वो खेल में इतना आगे बढ़ जाएगी, लेकिन एक के बाद एक मेडल जीतती रही। 2023 में चीन में हुए एशियन गेम्स में गोल्ड भी जीता।’ अन्नू की जर्नी कैसे शुरू हुई? अमरपाल कहते हैं, ‘घर में हमेशा से खेल-कूद का माहौल रहा है। मैं शौक के लिए शॉट पुट खेलता था। मेरा बड़ा भतीजा दौड़ लगाता था। अब वो आर्मी में है। उसे देखकर मेरा बड़ा बेटा उपेंद्र भी दौड़ लगाने लगा। वो कॉलेज के दिनों में अच्छा खिलाड़ी था।’ ‘अन्नू भी स्कूल में स्पोर्ट्स पर ज्यादा ध्यान देती थी। उसने खुद को शॉट पुट, जैवलिन और डिस्कस थ्रो तीनों में आजमाया। उसके साथ अमरोहा की एक लड़की थी रश्मि। वो डिस्कस थ्रो और शॉट पुट में फर्स्ट आती थी और अन्नू सेकेंड। अन्नू जैवलिन में फर्स्ट आ गई। यहीं से उसका मन जैवलिन थ्रो में लग गया।’ ‘मैं उसे खेलने से मना करता था। हम छोटे किसान परिवार से हैं। खर्च का पैसा नहीं होता था। मैंने गांव में किसी लड़की को खेलते देखा भी नहीं था। अन्नू स्कूल के दिनों से स्टेट लेवल पर खेल रही थी। लोग मुझे समझाते थे कि बेटी को क्यों आगे नहीं बढ़ने दे रहे।’ अमरपाल को समझाने वालों में अन्नू के अंकल अरविंद कुमार भी थे। उन्होंने अमरपाल को बातों से नहीं समझाया, उन्हें अन्नू के स्कूल ले गए। अरविंद बताते हैं, ‘मैं भी रोज दौड़ लगाता था। मुझे पता था कि अन्नू स्पोर्ट्स में अच्छी है। मैं उसे रोज सुबह जंपिंग, योग और रेस करवाता था।’ अमरपाल को भी लगा कि बेटी को नहीं रोकना चाहिए। वे खुद उसे गेम के लिए ले जाने लगे। अमरपाल बताते हैं, ‘2009 की बात है। मैं अन्नू को स्टेट-लेवल गेम के लिए ले गया था। वहां उसके तीन इवेंट थे। वो तीनों में फर्स्ट आई। उसने बार-बार साबित किया कि वो खेल में आगे बढ़ सकती है। इसके बाद से मैं हमेशा साथ रहा।’ ‘अन्नू कॉलेज में आ गई, तब उसका बड़ा भाई साथ जाने लगा। कॉलेज में पहुंची, तो वहां एक कोच थे धर्मपाल। वे कहते थे कि अन्नू को जैवलिन थ्रो में आगे बढ़ना चाहिए, मैं उसे ट्रेनिंग दूंगा। यहीं से उसने जैवलिन को करियर बना लिया।’ लिगामेंट सर्जरी हुई, तब डॉक्टर ने कहा- अब जैवलिन थ्रो नहीं खेलना 2012 में नेशनल गेम्स से पहले अन्नू को घुटनों में लिगामेंट इंजरी हो गई थी। डॉक्टर ने कहा कि अब जैवलिन खेलना बंद कर दो। अमरपाल अन्नू को स्वामी विवेकानंद सरस्वती के पास ले गए। मेरठ के टिकरी गांव में उनका गुरुकुल प्रभात आश्रम है। अमरपाल बताते हैं, ‘घर के पीछे खेत में प्रैक्टिस के दौरान अन्नू को चोट लग गई थी। जैवलिन थ्रो करते वक्त शरीर का पूरा वजन पैर और घुटने पर पड़ता है। अभी अन्नू को इंटरनेशनल लेवल पर खेलना था। डॉक्टर ने कह दिया कि अन्नू को स्पोर्ट्स छोड़ना पड़ेगा।’ ‘हम गुरु जी के पास गए। उन्होंने अन्नू को कुछ दिन आश्रम में रखा। वो वहीं रहकर आश्रम के मैदान में प्रैक्टिस करती थी। सुबह और शाम एक घंटा ध्यान भी करती। धीरे-धीरे उसकी सेहत सुधर गई।’ अमरपाल बताते हैं, ‘ओलिंपिक के तीन महीने पहले से अन्नू जर्मनी में तैयारी कर रही थी। ट्रेनिंग के दौरान भी उसे पीठ में चोट लगी थी। अब तो वो ठीक है। पेरिस जाने से पहले गुरु जी से मिलने आश्रम गई थी। वहीं से एयरपोर्ट के लिए निकल गई। हम उससे नहीं मिल पाए।’ बॉल बहुत तेज फेंकती थीं, भाई ने कहा- जैवलिन फेंको अन्नू को आगे बढ़ाने में उनके दोनों भाइयों का बहुत सपोर्ट रहा। बड़े भाई उपेंद्र बताते हैं, ‘मैं 1500 और 5000 मीटर में नेशनल लेवल तक खेला हूं। स्कूल में 3000 मीटर रेस में हिस्सा लिया था। बाद में यूनिवर्सिटी लेवल पर भी खेला। फिर मुझे इंजरी होने लगीं। शरीर में जगह-जगह दर्द रहता था।’ ‘तब अन्नू 5वीं में थी। मेरा उस पर ध्यान नहीं था। वो गांव की लड़कियों के साथ रेस लगाती थी। मुझे पता चला, तो मैंने अन्नू को 100 मीटर रेस में दौड़ाया। अन्नू पीछे रह गई। मुझे बहुत दुख हुआ। मैं रेसिंग में चैंपियन था और मेरी बहन हार गई।’ उपेंद्र बताते हैं, ‘हम घर में क्रिकेट खेलते थे। मैंने देखा अन्नू बॉल बहुत तेज फेंकती थी। एक दिन अन्नू स्कूल से जैवलिन उठा लाई। मैं खेलने जाता था तो एथलीट्स को जैवलिन फेंकते देखता था। मैंने अन्नू को उन्हीं की तरह जैवलिन फेंकना सिखाया। वो धीरे-धीरे बहुत अच्छा खेलने लगी।’ ‘स्टेट लेवल पर अन्नू ने गोल्ड जीता। 2014 में लखनऊ में नेशनल इंटर स्टेट एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 14 साल पुराना नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया। उसने 58.83 मीटर थ्रो कर गोल्ड मेडल जीता।’ पैसों की जरूरत पड़ी तब फिर गुरु जी ने मदद की अन्नू रानी के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट पैसों की थी। उपेंद्र बताते हैं, ‘अन्नू ने पहली बार नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीता, तब हमें पता चला कि ये खेल खेलने के लिए पैसे भी चाहिए। अन्नू तब नॉर्मल जूते पहनकर खेलती थी।’ ‘पापा स्वामी विवेकानंद सरस्वती के पास गए। उनसे कहा कि पैसों की दिक्कत है। अन्नू को आगे नहीं खिला पाएंगे। कुछ साल बाद शादी ही कर देंगे। स्वामी जी ने ऐसा करने से मना किया। लोग आश्रम में दान देने आते थे। स्वामी जी ने उनसे कहा कि मुझे पैसे मत दो, अन्नू को दे दो। एक भक्त ने 5 हजार रुपए दिए। इन पैसों से अन्नू ने स्पाइक वाले जूते खरीदे थे।’ अन्नू खेलती रहे, इसलिए बड़े भाई ने पढ़ाई छोड़ खेती शुरू कर दी अन्नू के एक और बड़े भाई जीतेंद्र हैं। जीतेंद्र बताते हैं, ‘2023 में अन्नू एशियन गेम्स में गोल्ड जीतकर आई। मैं बहुत खुश था। मैंने पूरी रात उसके पोस्टर लगाए। वो गांव आने वाली थी। उस दिन सुबह मैं फूल लेकर बाइक से घर आ रहा था। रास्ते में मेरा एक्सीडेंट हो गया। मुझे बहुत दुख हुआ कि मैं उसकी खुशी में शामिल नहीं हो पाया।’ ‘हम जब छोटे थे। मैं देखता था कि बड़े भैया स्कूल पढ़ने जाते हैं। अन्नू खेलती है। भैया उसे प्रैक्टिस कराते थे। हम तो किसान हैं। इसलिए फैसला करना था कौन पढ़ेगा और कौन खेती करेगा। मैंने सब छोड़कर खेती संभाल ली। 8वीं के बाद पढ़ाई भी छोड़ दी।’ घर आने से पहले अपने स्कूल जाती हैं अन्नू जीतेंद्र बताते हैं, ‘अन्नू जिस घर में पढ़ती थी, वो घर के सामने ही है। उसने 5वीं तक यहीं पढ़ाई की है। अन्नू इसी स्कूल में रेस लगाती थी। खो-खो खेलती थी। अन्नू जब भी घर आती है, पहले स्कूल जाती है। बच्चों से बात करती है।’ जीतेंद्र की बात सुनकर हम अन्नू के स्कूल पहुंचे। यहां मिलीं टीचर अरुणा रानी बताती हैं, ‘अन्नू एशियन गेम्स में गोल्ड जीतकर गांव लौटीं, तो सबसे पहले स्कूल आईं। हमने उनका सम्मान किया। अन्नू मेरी क्लास में भी आईं। वो इंटरनेशनल प्लेयर हैं, लेकिन बिल्कुल नॉर्मल लोगों की तरह व्यवहार करती हैं।’

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