कोरोना में 57 दिन मौत से जूझे अनिरुद्ध दवे:रोते हुए बोले- डायपर तक पहनने पड़े; कभी वाइन बेचने का काम भी किया

आज की स्ट्रगल स्टोरी में कहानी टीवी इंडस्ट्री के पॉपुलर एक्टर अनिरुद्ध दवे की है। जयपुर में जन्मे अनिरुद्ध का पहला ख्वाब ही एक्टर बनने का था। जब इस सपने को पूरा करने मुंबई आए तो उन्हें जगह-जगह ठोकर मिली। पैसों की कमी की वजह से गुजारे के लिए क्लब में काम करना पड़ा। 2021 में वे कोविड की चपेट में आ गए। हालत इतनी खराब हो गई कि उन्होंने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। शाम करीब 4 बजे हमने अनिरुद्ध दवे से मुलाकात की। थोड़ी औपचारिकता के बाद उन्होंने हमें अपनी यह कहानी सुनाई। बातचीत की शुरुआत में हमने पहला सवाल अनिरुद्ध से कोविड के समय के बारे में किया। 2021 में अनिरुद्ध को कोरोना हुआ था। अनिरुद्ध ने बताया, ‘वह समय वाकई मेरे लिए बहुत भयानक था। पता ही नहीं चला कि कब मुझे कोविड हुआ और मैं कब अस्पताल में भर्ती हो गया। मैं 57 दिन भर्ती रहा। खुद को शांत रखने के लिए पेट के बल सोता था। ऐसा इसलिए करता था क्योंकि अगर एक करवट लूं तो आसपास कोई अंतिम सांसे गिन रहा होता था, दूसरी करवट लूं तो किसी की मौत हुई रहती थी। यह सब रोज देखना पड़ता था। ऐसे में कोई इंसान चाह कर भी पॉजिटिव नहीं रह सकता था। एक वक्त तो ऐसा आया कि मैंने जीने की उम्मीद ही खो दी थी। खुद ही बताइए, जिस इंसान के मन में हर वक्त यह संशय हो कि वह अगले पल मर सकता है, उसके लिए एक-एक पल काटना कितना मुश्किल होगा। मेरी जिंदगी एक छोटे बच्चे जैसी हो गई थी। ना कुछ कर सकता था, ना कह सकता था। हाथों में जगह-जगह इंजेक्शन लगे रहते थे। डायपर पहन कर रहना पड़ता था। मतलब बद से बदतर जिंदगी थी।’ इतना कहते-कहते अनिरुद्ध रोने लगते हैं। 2 मिनट शांत रहने के बाद वे पानी पीते हैं और खुद को ढांढस बंधाते हुए कहानी आगे बताते हैं। वे कहते हैं, ‘मैंने मान लिया था कि जिंदा नहीं बचूंगा। मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया था कि अगर मैं नहीं रहा तो परिवार का क्या होगा। उस वक्त मेरी बेटी सिर्फ 1 साल की थी। उस वक्त खुद के अच्छे और बुरे कर्म सब याद आने लगे। परिवार के साथ इंडस्ट्री के लोगों ने भी बहुत मदद की। उस वक्त एक-एक इंजेक्शन करीब लाख रुपए के थे। एक ऑक्सीजन सिलेंडर का खर्च 2-3 लाख रुपए तक था। 57 दिन में काफी पैसा खर्च हो गया। ऐसे में पेरेंट्स को लोगों से उधार मांगना पड़ा। इंडस्ट्री के लोगों ने भी फाइनेंशियली बहुत मदद की। भगवान से हमेशा यही दुआ है कि यह पल किसी दूसरे की जिंदगी में कभी ना आए। सच कहूं तो यह मेरी दूसरी जिंदगी है। वर्ना मैंने तो जीने की पूरी उम्मीद खो दी थी। ठीक होने के बाद मैंने सबका उधार चुका दिया था।’ इस हादसे से गुजरने के बाद आपने पहला प्रोजेक्ट क्या किया? उन्होंने कहा, ‘इस दौरान मुझे फिल्म ‘कागज 2’ का ऑफर मिला। इसमें मुझे आर्मी ऑफिसर का किरदार निभाना था। सच कहूं तो मैं इस किरदार के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था। लंग्स में भी दिक्कत थी। लंबे डायलॉग्स नहीं बोल पाता था, लेकिन मैं इतने बड़े मौके को खोना नहीं चाहता था। मालूम था कि इस किरदार को निभाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन मैं इसके लिए तैयार था। मैंने रनिंग से लेकर हर चीज की तैयारी की, ताकि एक रेस में किसी फौजी को मात देने का दम रख सकूं। यह सारी चीजें मैंने डॉक्टर की देख-रेख में की। पूरी तैयारी के बाद मैंने सतीश कौशिक साहब से कहा था- सर, आपका फौजी अब तैयार है। यह देख वे बहुत खुश हुए थे। परिवार के बारे में बताइए? जवाब में अनिरुद्ध ने कहा, ‘मेरा जन्म 21 जुलाई 1986 को जयपुर में हुआ था। मां-पिता जी दोनों ही टीचर थे। मुझे हमेशा से एक्टिंग का शौक था। कह सकते हैं कि मैंने पहला ख्वाब ही एक्टर बनने का देखा था। हालांकि परिवार को यह बात लंबे समय तक पता नहीं थी। रोज सुबह कॉलेज के लिए तैयार होकर निकल जाता था। फिर नाटक मंडली के साथ जगह-जगह जाकर नुक्कड़ नाटक करता था। सामाजिक मुद्दे पर एक्ट करता था। हर बार यही कोशिश रहती थी कि लोगों को अपने एक्ट के जरिए जागरूक करना है। एक दिन किसी ने आकर यह बात पिता जी को बता दी कि आपका बेटा तो ट्रैफिक सिग्नल पर नाटक मंडली के साथ एक्ट करके लोगों को जागरूक कर रहा है। फिर उस शख्स ने पिता जी से सवाल किया- वैसे आपका बेटा करता क्या है। इस पर पिता जी ने कहा- तैयार होकर तो कॉलेज ही जाता है, उसके बाद क्या करता है यह नहीं पता है। इस तरह से पिता जी को भी पता चला कि मैं नाटक करता हूं। एक्टिंग के लिहाज से जयपुर से मुझे बहुत कुछ मिला। वहां के बड़े-बड़े थिएटर आर्टिस्ट ने बहुत मदद की। उन लोगों ने मुझे हर कदम पर विश्वास दिलाया कि मैं कुछ भी कर सकता हूं। आज भी उन लोगों का शुक्रगुजार हूं।’ मुंबई जाने से पहले आपने दिल्ली का रुख किया, इसकी कोई खास वजह? अनिरुद्ध कहते हैं, ‘मैं मुंबई जाने से पहले नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग के गुर सीखना चाहता था। यही वजह रही कि मैंने पहले दिल्ली का रुख किया, लेकिन मेरा यहां (NSD) पहली बार में सिलेक्शन नहीं हुआ। भले ही यहां एडमिशन नहीं हुआ, लेकिन शायद ही ऐसी कोई फैकल्टी बची होगी, जिसके साथ मैंने काम ना किया हो।’ मुंबई आने पर पेरेंट्स का क्या रिएक्शन था? अनिरुद्ध ने कहा, ‘उनको यह डर सताता था कि एक टीचर का बच्चा होने के कारण मैं मुंबई में सर्वाइव कैसे करूंगा। हालांकि इसके बावजूद उन्होंने मेरे काम को हमेशा तवज्जो दी। वे आज भी मुझसे कहते हैं- बेटा परेशान ना होना, तुम्हारा ATM अभी जिंदा है। मुंबई आने पर हर स्ट्रगलर की तरह मुझे भी संघर्ष करना पड़ा। कुछ महीनों तक पेरेंट्स से फाइनेंशियल सपोर्ट लिया, लेकिन फिर बंद कर दिया। फिल्मों और टीवी के लिए ट्राई करता रहा, लेकिन काम नहीं मिल रहा था। इसी दौरान एक शख्स ने मुझसे कहा- तुम देखने में बहुत अच्छे हो। ऐसे में तुम बार में वाइन बेचने का काम कर लो। वहां तुम्हारा काम अलग-अलग बार में जाकर वाइन बेचने का रहेगा। इसके बदले हर दिन के 500-700 रुपए भी मिल जाएंगे। गुजारे के लिए कुछ करना तो था ही, इसलिए मैंने यह काम कर लिया। लगभग 4 महीने यह काम किया था। इसके बाद मुझे 2008 के शो ‘राजकुमार आर्यन’ में काम मिल गया था।’ टीवी के बाद फिल्मों में कब ट्राई किया? टीवी में आने के एक साल बाद ही अनिरुद्ध को 2009 की फिल्म ‘तेरे संग’ में देखा गया था। इसके बाद वे लंबे समय तक सिल्वर स्क्रीन से गायब रहे। इसके बारे में उन्होंने बताया, ‘मेरी हमेशा से चाहत थी कि फिल्मी पर्दे पर दिखूं। शुरुआत में टीवी शोज करके मैंने बहुत पैसा कमा लिया था। इतना कि पूरे खानदान में किसी ने नहीं कमाया था। 2016 के आस-पास मैंने कुछ समय के लिए टीवी शोज से ब्रेक लेने का प्लान बनाया और फिल्मों के लिए ट्राई किया। किस्मत से फिल्म ‘शोरगुल’ में काम मिल गया, लेकिन इसके बाद काम की कमी हो गई। धीरे-धीरे सारे पैसे भी खत्म होने लगे। इस दौरान कई अच्छे शोज के ऑफर भी ठुकरा चुका था। फिर जब फिल्म इंडस्ट्री में बात नहीं बनी, तो मैं वापस छोटे पर्दे पर लौट आया। इसके बाद मैंने टीवी शो यारों का टशन में काम किया।’ फिल्म चंदू चैंपियन के बारे में बताइए? उन्होंने बताया, ‘चंदू चैंपियन एक बहुत अच्छी फिल्म है। इसमें मुझे कार्तिक आर्यन के साथ काम करने का मौका मिला है। वे सच में एक उम्दा कलाकार हैं, जिसका नतीजा है कि वे आज इतने ऊंचे मुकाम पर हैं। शूटिंग के दौरान मैंने जितनी रिहर्सल करनी चाही, कार्तिक ने उसमें पूरा सपोर्ट किया। मेरे पास कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा की तरफ से इस फिल्म के ऑडिशन का कॉल आया था। फिल्म के डायरेक्टर कबीर खान को भी मेरा काम बहुत पसंद आया। इस फिल्म का ऑफर तब आया था, जब मैं फिल्म कागज 2 के लिए डबिंग कर रहा था। फिल्म की पूरी शूटिंग खत्म हो चुकी थी। ऐसे में एक फिल्म के बाद तुरंत दूसरी फिल्म का ऑफर मिलना बहुत खुशी की बात थी।’ अब एक नजर अनिरुद्ध के करियर ग्राफ पर… अनिरुद्ध ने ‘वो रहने वाली महलों की’, ‘यारों का टशन’, ‘पटियाला बेब्स’ जैसे टीवी शोज में काम किया है। हाल ही में उन्हें फिल्म ‘कागज 2’ में भी देखा गया है, जिसमें उन्होंने अनुपम खेर और सतीश कौशिक जैसे कलाकारों के साथ काम किया है। 2021 में उन्हें अक्षय कुमार स्टारर फिल्म बेल बॉटम में भी देखा गया था।

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