वीजा नियम में बदलाव: भारत से इस बात का ब्रिटेन ने लिया बदला
|भले ही भारत-ब्रिटेन ने पहले ‘यूके-इंडिया वीक’ की शुरुआत कर दी हो लेकिन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते गोता खाते दिख रहे हैं। दरअसल, बीते हफ्ते ब्रिटेन सरकार ने वीजा आवेदन प्रक्रिया को आसान बनाने वाली सूची से भारतीय छात्रों को बाहर कर दिया था। अब ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री लियाम फॉक्स ने साफ कहा है कि यह कदम भारत से बदला लेने के लिए उठाया गया है। फॉक्स ने कहा कि इसी साल अप्रैल महीने में भारत ने उस करार पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, जिसके तहत यूके में रह रहे अवैध भारतीय प्रवासियों की वापसी सुनिश्चित करनी थी। इसी कारण ब्रिटेन ने भारत को छात्रों के लिए आसान वीजा सूची से बाहर कर दिया है।
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हालांकि, फॉक्स के इस बयान से लंदन में भारतीय दूतावास के अधिकारी खुश नहीं हैं। यूके-इंडिया वीक का उद्देश्य ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन-भारत के बीच साझेदारी की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करना है। लेकिन, इस इवेंट के शुरू होने के एक दिन बाद ही दोनों देशों के संबंध अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गए हैं।
फॉक्स के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय उच्चायोग के एक अधिकारी ने हमारे सहयोगी TOI से कहा, ‘यह ब्रिटिश सरकार पर निर्भर करता है कि वह किस तरह का वीजा देना चाहते हैं और क्या वे भारत के साथ करीबी रिश्ते चाहते हैं। मुझे लग रहा है कि जो संकेत वे हमे दे रहे हैं वे गलत हैं और जो क्षति वे हमारे रिश्ते को पहुंचा रहे हैं उसका असर लंबे समय तक दिखेगा। यह उनपर है कि वे वीजा मुद्दे को MoU से जोड़े, लेकिन अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें इसके परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे। मुझे इस बात को लेकर भरोसा नहीं है कि अब कुछ अच्छा होनेवाला है।’
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ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया, ‘जो भारतीय छात्र वैध रूप से ब्रिटेन पढ़ने आ रहे हैं, उनकी कोई सीमा नहीं है। बीते साल भारतीयों को जारी किए गए टीअर-4 वीजा में तो 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। यूके में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों की वापसी के लिए समझौते तक पहुंचने के लिए हमारी कोशिशें जारी हैं और हमें उम्मीद है कि यह जल्द सुलझ जाएगा।’
ब्रिटेन का मानना है कि करीब 1 लाख भारतीय प्रवासी अवैध रूप से वहां रह रहे हैं लेकिन भारत की नजर में यह आंकड़ा सिर्फ 2000 है।
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केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने इसी साल जनवरी में MoU की पहल की थी लेकिन अप्रैल में पीएम मोदी ने अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। सूत्रों के मुताबिक भारत ने इस करार पर हस्ताक्षर सिर्फ इसलिए नहीं किए थे क्योंकि ब्रिटेन की तरफ से भारतीयों को वीजा जारी करने की प्रक्रिया को आसान करने में उसे कोई प्रगति नहीं दिख रही थी।
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