डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी की क्या है वजह?
|डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का रुख जारी है। बुधवार को डाॅलर के मुकाबले रुपया 67 के स्तर को पार कर गया जो डॉलर के मुकाबले रुपये का 15 महीने का निचला स्तर है। अहम सवाल यह है कि आखिर रुपया इतना गिर क्यों रहा है? एक्सपर्ट का मानना है कि इसके कई कारण हैं, लेकिन सबसे अहम है कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और इंपोर्टर्स द्वारा डॉलर की ज्यादा खरीदारी। इसके अलावा पोर्टफ़लियो इन्वेस्टर भी तेजी से सरकारी बॉन्ड्स से पैसा निकल रहे हैं। इसके चलते रुपये में भारी कमजोरी देखने को मिल रही है।
एक्सपोर्टर्स संगठन फियो के पूर्व प्रेजिडेंट रामू एस. देवड़ा का कहना है कि इस वक्त इंटरनैशनल लेवल पर इकॉनमी और मार्केट की हालत ठीक नहीं है। एक्सपोर्ट की तुलना में भारत का इंपोर्ट बढ़ रहा है। ऐसे में इंपोर्टर्स को डॉलर की जरूरत ज्यादा पड़ रही है। यही कारण है कि ज्यादा संख्या में डॉलर खरीदे जा रहे हैं। इससे डॉलर की डिमांड बढ़ रही है।
जब भी क्रूड के दाम बढ़ते हैं तो करंसी मार्केट में डॉलर का दबदबा और रुपये पर दबाव बढ़ता है। इससे रुपया टूटता है क्योंकि कारोबारियों को पता चल जाता है कि भारत जैसे देश को क्रूड का इंपोर्ट करने के लिए ज्यादा डॉलर चाहिए। इसके अलावा एक अहम बात इस बार यह हो रही है कि फॉरन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (ईपीआई) ने अब तक मार्केट में शेयर और बॉन्ड्स बेचकर करीब 3.5 अरब डॉलर निकाले हैं। यानी मार्केट में पैसा नहीं आ रहा है, बल्कि बाहर जा रहा है। इससे मार्केट में डॉलर का फ्लो कम हो गया है।
फॉरन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (ईपीआई) द्वारा इक्विटी और बॉन्ड्स बेचने को लेकर मार्केट में चिंता की लहरें उठने लगी हैं। डीएसई के पूर्व प्रेजिडेंट बीबी साहनी के अनुसार अगर फॉरन इन्वेस्टर्स ने शेयर और बॉन्डस बेचना बंद नहीं किया तो इससे शेयर और करंसी मार्केट में अफरा-तफरा मच सकती है। ऐसे में सरकार को इस बारे में भी सोचना होगा और जल्दी ही नीतिगत कदम उठाने होंगे।
करंसी मार्केट के एक्सपर्ट वेंकट नागेश्वर का कहना है कि अमेरिका अब ईरान के साथ परमाणु समझौते से अलग हो गया है। इसका भी असर करंसी मार्केट पर पड़ेगा। इसके बारे में और खुलासा होने के बाद अगर डॉलर के मुकाबले रुपया 68 के पार भी चला जाए तो हैरानी नहीं होगी। अगर अमेरिकी इकॉनमी में सुधार होता है, ब्याज दरें बढ़ती हैं और कच्चे तेल में तेजी बनी रहती है तो आरबीआई को डॉलर के साथ मैदान में कूदना होगा। हालांकि एक सीमा तक ही रुपये को गिरने से रोका जा सकेगा। ऐसे में रुपये निचले स्तर पर गिरकर रेकॉर्ड बना दें तो हैरानी नहीं होगी।
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