तालिबान के रुख में बड़ा बदलाव, 7.5 अरब डॉलर के TAPI पाइपलाइन का किया समर्थन

काबुल
दशकों की बातचीत के बाद अफगानिस्तान ने आखिरकार तालिबान के नियंत्रण वाले इलाके में 7.5 अरब डॉलर के गैस पाइपलाइन के लिए जमीन तैयार कर ली है। सबसे अधिक हैरानी की बात यह है कि आतंकवादी संगठन इस प्रॉजेक्ट के पक्ष में खड़ा हो गया है। वर्षों से लटके इस प्रॉजेक्ट को लेकर तालिबान के रुख में आए बदलाव से भारत सहित कई देशों को फायदा होगा। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

तालिबान के प्रवक्ता जैबिउल्लाह मुजाहिद ने पिछले महीने एक बयान में कहा, ‘तालिबान देश के पुनर्निर्माण और आर्थिक बुनियाद को दोबारा खड़ा करने में अपनी जिम्मेदारी को जानता है और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से इस मामले में अफगानियों की मदद के लिए कह रहा है।’ पाइपलाइन पर बातचीत तब से ही चल रही है जब देश में तालिबान की सरकार थी।

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प्रस्तावित तुर्कमेनिस्तान- अफगानिस्तान -पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन से सालाना 33 अरब क्युबिक मीटर गैस की सप्लाई होगी। इससे हजारों लोगों को नौकरियां मिलेंगी। इससे अफगानिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को भी काफी मदद मिलेगी। सरकारी कंपनियां तुर्कमेनगाज, अफगान गैस एंटरप्राइज और गेल इंडिया लिमिटेड इस पर काम कर रही हैं।

अफगानिस्तान में 500 मील से अधिक लंबी पाइपलाइन तालिबान नियंत्रित इलाके से गुजरेगी। काबुल में अमेरिका समर्थित सरकार के खिलाफ 17 साल से लड़ रहे संगठन के इस प्रॉजेक्ट में खड़े होने से राजनीतिक सुलह की उम्मीद भी जगी है।

राष्ट्रपति अशरफ गनी ने पिछले सप्ताह तालिबान के सामने शांति का प्रस्ताव रखा है। वह तालिबान को पॉलिटिकल मूवमेंट का दर्जा देने को तैयार हैं और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाने में मदद करेंगे।

ब्लूमबर्ग से राजनीतिक विश्लेषक हारुन मीर ने कहा, ‘प्रॉजेक्ट के पूरा होने से तालिबान और सरकार के बीच शांति वार्ता पर सकारात्मक असर होगा। तालिबान को भी इसका लाभ होगा और वे बातचीत के लिए अपना दरवाजा खोल सकते हैं।’

हालांकि, इस प्रॉजेक्ट को लेकर जानकर कई आशंका जाहिर करते हैं। कुछ का कहना है कि तालिबान ने भले समर्थन की बात कही है, लेकिन कुछ अन्य विरोध कर सकते हैं। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि तालिबान भी अपना मन बदल सकता है।

लंदन के रॉयल यूनाइडेट सर्विसेज इंस्टिट्यूट में रिसर्च फेलो शशांक जोशी ने कहा, ‘भारत-पाकिस्तान के बीच मौजूदा टेंशन और अफगानिस्तान के हालात ने प्रॉजेक्ट को पहले के मुकाबले कम व्यवहार्य बना दिया है।’

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