अमेरिका की सख्ती से चीन के और करीब जाएगा पाकिस्तान?

वॉशिंगटन
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जब अफगानिस्तान को लेकर नई रणनीति की घोषणा की तब आतंकवाद को पनाह देने वाले पाकिस्तान को भी जमकर फटकार लगाई। अमेरिका ने यहां तक कहा कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता तो उसे दिए विशेष दर्जे पर भी विचार करना होगा और सैन्य सहायता भी रोकी जा सकती है। हालांकि, अब यूएस एकस्पर्ट्स का मानना है कि ट्रंप की इस सख्ती का पाकिस्तान पर खास असर नहीं होगा, बल्कि इससे वह चीन के पहले से भी ज्यादा करीब आ जाएगा।

ऐक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर अमेरिका के कदम पाकिस्तान को उकसा सकता है, और अगर उसे लगा कि यूएस के साथ बरसों से चले आ रहा समझौता खतरे में है, तो वह चीन की तरफ हाथ बढ़ा सकता है। चीन अमेरिका और भारत दोनों का ही चिर-प्रतिद्वंद्वी देश है।

यूएस के एक्सपर्ट्स यह भी कहते हैं कि अगर अफगानिस्ता में सरकार गिरानी हो और यूएस के सैनिकों को बाहर निकालना हो तो पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क और अफगान तालिबान को समर्थन देने से भी गुरेज नहीं करेगा।

वॉशिंगटन इंस्टिट्यूट में फेलो और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जेम्स जैफरी कहते हैं, ‘पाकिस्तान पर दबाव बनाने का कोई रास्ता नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान यह फैसला कर चुका है कि सीमा पार आतंकवाद को खत्म करने से ज्यादा जरूरी भारत को किसी भी तरह काबुल से दूर रखना है।’

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जेफरी कहते हैं, ‘हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। सभी तरह की मदद पर रोक लगाना, और हक्कानी नेटवर्क पर हमले शुरू करने के बाद भी यह गारंटी नहीं है कि पाकिस्तान वही करेगा जो उसे अमेरिका कहेगा।’

अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट में रेजिडेंट फेलो सदानंद धूमे कहता हैं कि अमेरिका ने हमेशा से अफगानिस्तान में भारत के अधिक सहयोग को बढ़ावा दिया है, लेकिन उसने कभी भी ऐसा करते समय पाकिस्तान को दरकिनार नहीं किया। धूमे ने कहा, ‘अब ऐसा देखने को मिला है कि अमेरिका को पाकिस्तान की संवेदनशीलता की परवाह नहीं है।’

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बता दें कि पाकिस्तान और चीन के बीच हमेशा से अच्छे रिश्ते रहे हैं। दोनों देशों के नेताओं ने इस संबंध को बेहद मजबूत संबंध कहा है। कुछ साल पहले पेइचिंग की ओर से ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल की घोषणा किए जाने पर इनका संबंध आगे बढ़ा है। दोनों देशों के बीच एक महत्वाकांक्षी पहल के तहत 50 अरब डॉलर का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। इसको लेकर भारत अपना विरोध भी दर्ज कर चुका है।

पेंटागन में वरिष्ठ अधिकारी रहे सेत जोन्स कहते हैं, ‘पाकिस्तान यह भी नहीं चाहेगा कि अफगानिस्ता में सरकार गिरे और वह इसके पक्ष में भी नहीं रहेगा कि काबुल और नई दिल्ली की करीबी बढ़े।’ हालांकि, सभी एक्सपर्ट्स का यह मानना है कि अब लंबे समय तक अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी नहीं होने वाली है।

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