ज्ञान पर सवाल नहीं, लेकिन राजन का बोलना बर्दाश्त नहीं हुआ!
|रघुराम राजन के दूसरे कार्यकाल के मुद्दे पर आरएसएस के सीनियर लोगों ने सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठकें की थीं। इनमें दोनों पक्षों ने राजन की सार्वजनिक छवि और कामकाज के कुछ पहलुओं पर ऐतराज जताया था। इन बैठकों में कुछ वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों और कुछ पूर्व बैंकरों से भी राय ली गई थी। मोदी सरकार ने इन बैठकों से निकली राय को एक अहम इनपुट के रूप में लिया।
सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि बैठक में शामिल सभी लोगों ने माना था कि राजन की ईमानदारी और ज्ञान पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, हालांकि उनके कार्यकाल की कुछ बातों पर आपत्ति की गई। इस बात को मुद्दा बनाया गया कि राजन बार-बार सार्वजनिक मामलों पर प्रतिक्रिया देते हैं, जिसका बतौर सेंट्रल बैंकर उनके कामकाज से दूर-दूर तक नाता नहीं होता।’
सूत्रों के मुताबिक, यहां तक कहा गया कि सेंट्रल बैंकर बुद्धिजीवी की तरह बर्ताव नहीं कर सकता है। यह भी कहा गया कि आरबीआई गवर्नर को सार्वजनिक मामलों से दूर रहना चाहिए। बैठकों में इस तथ्य की याद दिलाई गई कि इससे पहले किसी भी आरबीआई गवर्नर ने मॉनेटरी और बैंकिंग से नाता न रखने वाले मुद्दों पर इतनी बात नहीं की थी।
सूत्रों के मुताबिक, संघ के लोगों और फाइनैंस से जुड़े कुछ प्राइवेट लोगों ने इन बैठकों में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में राजन की सोच पूरी तरह से सही नहीं है। दलील दी गई कि कैपिटल कंट्रोल, नॉन-कन्वर्टिबल करेंसी, बैंक डिपॉजिट प्रोटेक्शन के कड़े नियमों और हाल तक बिना बैंकरप्सी कानून वाली इंडियन इकॉनमी के कई मसलों पर राजन का रवैया ठीक नहीं था। कहा गया कि राजन अमेरिकी फाइनैंशियल सिस्टम की बातें भारत में लागू कर रहे हैं और इसके कारण बेमतलब की तकलीफ हो रही है।
चर्चा में शामिल कुछ लोगों ने यह दलील भी दी थी कि बैंकों के फंसे हुए कर्ज यानी एनपीए के मामले में राजन का रुख ठीक नहीं है। इन बैठकों में शामिल एक प्रभावशाली व्यक्ति ने कहा था कि राजन ‘हॉकी के नियमों से क्रिकेट खेल रहे हैं और बाजल नियमों को बाइबिल मान लिया गया है।’
क्या है बाजल नियम
बाजल नियम बैंकों के लिए ग्लोबल गाइडलाइंस है, जिनका मकसद संस्थागत और व्यवस्थागत जोखिम घटाना है। इसमें बैंकों की पूंजी, बांटे जाने वाले कर्ज की मात्रा, नकदी की मात्रा और फंडिंग जैसे मामलों में टारगेट सेट किए गए हैं। समझा जा रहा है कि बाजल-बाइबिल का जिक्र इंडिया में बैंकिंग रेगुलेशन के मामले में राजन के सख्त रुख के संदर्भ में किया गया था। सूत्रों के मुताबिक, बैठकों में कहा गया कि बाजल नियमों में जिन बैंकिंग स्ट्रक्चर्स की बात है, वे भारत में या तो हैं ही नहीं या पूरी तरह से नहीं हैं। इस संदर्भ में कहा गया था कि ‘कोई भी भारतीय बैंक जोखिम को उस तरह नहीं देखता है, जैसा पश्चिमी देशों के बैंक देखते हैं, जो ओपन कैपिटल इन्वाइरनमेंट में काम करते हैं।’
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