जाएगी AAP के 21 विधायकों की सदस्यता, कांग्रेस-बीजेपी के पास वापसी का मौका?
|‘लाभ के पद’ को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) के 21 विधायकों की सदस्यता खतरे में है। राष्ट्रपति द्वारा विधायकों को सुरक्षित करने से संबंधित बिल को नामंजूर किए जाने के बाद इन विधायकों की सदस्यता खत्म हो सकती है। गेंद अब चुनाव आयोग के पाले में है। अगर विधायकों की सदस्यता जाती है और इन 21 सीटों पर उपचुनाव होते हैं, तो यह एक तरह से ‘आप’ सरकार के लिए जनमतसंग्रह की तरह हो सकता है। वहीं, कांग्रेस-बीजेपी के लिए अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका भी बन सकता है।
अगर चुनाव आयोग इन विधायकों की सदस्यता को रद्द करने का फैसला करता है तो खाली सीटों पर 6 महीने के भीतर उपचुनाव कराए जाएंगे। पिछले चुनावों में आप के इन विधायकों की जीत का अंतर देखने पर पता चलता है कि इनमें से कुछ अरविंद केजरीवाल के सबसे मजबूत चेहरों में से एक हैं। दिल्ली की जिन विधानसभाओं से ये विधायक चुन कर आए हैं कि वहां की जनसंख्या विविधिता उपचुनाव को काफी रोचक बना सकती है।
आप सरकार को डेढ़ साल के शासन के बाद एक बार फिर जनता की अदालत में उतरना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में डेढ़ साल पहले सत्ता में आने के बाद केजरीवाल सरकार का 70 पॉइंट अजेंडा कितना लागू हुआ, इसकी परीक्षा हो सकती है। खासकर गरीबों को लेकर आप सरकार का प्रदर्शन जनता की अदालत में जाएगा। ऐसा माना जाता रहा है कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले और दिल्ली के गरीब तबके में ‘आप’ का जबर्दस्त होल्ड ही पिछले चुनाव में इसकी लैंडस्लाइड जीत की वजह बना था।
विधानसभावार देखें तो नॉर्थ-वेस्ट दिल्ली का नरेला जैसा इलाका जेजे क्लस्टर, अवैध कॉलोनी और गांवों का है। उपचुनाव हुए तो यह देखना रोचक होगा कि तुलनात्मक रूप से कम आय वर्ग वाला यह इलाका क्या फिर ‘आप’ को चुनता है, क्योंकि पारंपरिक रूप से इसे कांग्रेस के प्रभुत्व वाला इलाका माना जाता रहा है। इसी तरह की तस्वीर बुराड़ी विधानसभा की है, जहां से आप विधायक संजीव झा जीते हैं।
दिल्ली के दिल यानी चांदनी चौक की सीट से अलका लांबा हैं, जिनपर सदस्यता रद्द होने की तलवार लटक रही है। पहले यह सीट कांग्रेस के हाथ में थी। यहां मुस्लिम वोट निर्णायक है। उपचुनाव की स्थिति में यहां यह देखना रोचक होगा कि आप के डेढ़ साल के शासन के बाद अल्पसंख्यक समुदाय का मूड क्या है। सदर बाजार की सीट से आप विधायक सोम दत्त ने कांग्रेस के दिग्गज अजय माकन को हराया था। ऐसे में देखना होगा कि चुनाव हुए तो इस कम आय वर्ग वाले इलाके के मतदाता अबकी बार किसकी तरफ झुकेंगे।
मिडिल क्लास के सामने भी परीक्षा से गुजरेगी ‘आप’
अगर उपचुनाव हुए तो पश्चिमी दिल्ली का मिडिल क्लास का मूड भी काफी अहम होगा। जनकपुरी, तिलक नगर, राजौरी गार्डन और राजेंद्र नगर में मिडिल इनकम, धनाढ्य और गरीब मतदाताओं की मिक्स संख्या है। जनकपुरी से कभी नहीं हारने वाले बीजेपी के दिग्गज जदगीश मुखी को भी 2015 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इन तीनों सीटों के कुछ हिस्सों में पंजाबी और सिख वोट काफी अहम हैं। दिल्ली के दक्षिणी हिस्से कालकाजी और जंगपुरा विधानसभा की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है।
उपचुनाव की स्थिति में द्वारका सीट से केजरीवाल के करीबी और आईटी संसदीय सचिव आदर्श शास्त्री का काम दांव पर रहेगा। महरौली के गांव और वसंतकुंज, साकेत के उच्च आय वर्ग वाले इलाके भी उपचुनाव की स्थिति में ‘आप’ सरकार को लेकर पब्लिक का मूड बयान करेंगे। ऐसे में कांग्रेज जहां कम आय वर्ग वाले अपने पारंपरिक मतदाताओं के बीच फिर से पैठ बिठाने की कोशिश करेगी, वहीं बीजेपी मध्यम वर्ग का दिल जीतने के लिए जोर लगाएगी।
‘आप’ के दलित कार्ड का भी होगा टेस्ट
21 विधायकों में केवल एक सीट है, जहां उपचुनाव की स्थिति में आप के कथित दलित कार्ड का भी टेस्ट हो सकता है। कोंडली की सीट रिजर्व है। पिछले दिनों दलित स्टूडेंट रोहित वेमुला की खुदकुशी के बाद आप ने खुलकर इस मुद्दे पर अपना हस्तक्षेप दिखाया था। इस सीट से आप के मनोज कुमार विधायक हैं।
कांग्रेस लक्ष्मी नगर और गांधी नगर की अपनी पारंपरिक सीट वापस पाने की भी कोशिश कर सकती है, जिसे आप ने उससे छीन लिया था। इसी तरह उपचुनाव की स्थिति में कस्तूरबा नगर विधानसभा के सरकारी कर्मचारियों का मिजाज भी देखने लायक होगा।
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