प्राइवेट कारों की कमर्शल पूलिंग चाहती हैं कंपनियां
|दिल्ली सरकार ने पिछले हफ्ते करीब एक दर्जन कार-शेयरिंग कंपनियों के साथ बैठक कर उनसे सुझाव मांगे थे। ज्यादातर कंपनियों की राय है कि कारपूलिंग को पूरी तरह लीगल-फ्रेमवर्क में लाने के लिए सरकार को मोटर रूल्स में बदलाव करना चाहिए। कंपनियां चाहती हैं कि कारपूलिंग वाली गाड़ियों के लिए सड़कों पर खास लेन बनाई जाए और ज्यादातर बड़े डेस्टिनेशंस पर उनके लिए पार्किंग की व्यवस्था हो।
करीब 10 हजार कारों की फ्लीट वाली कार्जऑनरेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड अपने मोबाइल और क्लाउड बेस्ड सॉल्यूशन के साथ कारशेयरिंग की सेवाएं दे रही है। कंपनी की एग्जिक्युटिव डायरेक्टर साक्षी विज कहती हैं, ‘अभी प्राइवेट कार ओनर्स आपसी सहमति से पूलिंग कर सकते हैं, लेकिन कोई कंपनी अपने कमर्शल फ्लीट और सॉल्यूशंस के साथ जैसे ही उनसे जुड़ती है, कानून आड़े आता है। फिलहाल कोई कंपनी सिर्फ कमर्शल रजिस्ट्रेशन वाली गाड़ियों को ही पूल कर सकती है। चूंकि पॉलिसी का मकसद प्राइवेट गाड़ियों की संख्या कम करना है, ऐसे में यह बंदिश हटनी चाहिए।’
फिलहाल पर्सनल वीकल्स को जोड़ने वाली ज्यादातर कंपनियां ऐसे मॉडल पर ऑपरेट कर रही हैं, जहां वित्तीय लेन-देन कम होता है और पूलिंग की जिम्मेदारी यूजर्स पर होती है। कंपनी केवल अपने ऐप के जरिए संबंधित रूट पर उपलब्ध यूजर्स की जानकारी देती है।
letsdrivealong.com के को-फाउंडर एस श्रीनाथ ने बताया, ‘हमने दिल्ली सरकार को सुझाव दिया है कि वह कॉरपोरेट को भी इसमें शामिल करे, क्योंकि ऑड-ईवन पॉलिसी से प्रभावित होने वाला सबसे बड़ा समूह नौकरीपेशा लोगों का है। लोग समय पर डेस्टिनेशंस पर पहुंचें, इसके लिए सड़कों पर डेडिकेटेड लेन मिलना जरूरी है। विदेशों में यह सुविधा है। रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, मेट्रो स्टेशनों और कमर्शल हब पर प्रेफरेंशल पार्किंग भी मिलनी चाहिए।’
अपने ऐप राइड के जरिए कस्टमर्स को डेस्टिनेशन, डायरेक्शन और पार्टनर सर्च करने की सुविधा देने वाले ibibo ग्रुप के एक प्रतिनिधि ने कहा, ‘कारपूलिंग की राह में पैसेंजर्स की सेफ्टी बड़ा मुद्दा है। मोटर वीकल ऐक्ट का सेक्शन 66 कारपूलिंग के तहत दुर्घटना में पैसेंजर्स को इंश्योरेंस की सुविधा से भी वंचित करता है। दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा संवेदनशील मुद्दा है। को-पैसेंजर्स के बीच होने वाली वारदात या किसी यूजर विशेष की दिक्कतों को लेकर रेग्युलेशन तो सरकार को ही तय करने होंगे।’
जानकारों का कहना है कि दिल्ली सरकार की पॉलिसी पूरी तरह केंद्रीय एजेंसियों डीडीए, दिल्ली पुलिस और सिविक एजेंसियों के सहयोग पर निर्भर करेगी। पैसेंजर्स की सेफ्टी को लेकर दिल्ली पुलिस के सख्त रवैये के चलते 2009 में इस तरह की एक कोशिश पैन सिटी मेगा कारपूल स्कीम परवान नहीं चढ़ पाई। तब सरकार ने पूलिंग में दिलचस्पी रखने वाले कारमालिकों को स्कीम के तहत एनरॉल होने को कहा था। कार में कार्डरीडर, जीपीएस और जीपीआरएस लगे होने की शर्त थी। बहुत कम लोगों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई थी।
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