कैसे लागू होगा जनलोकपाल विधेयक
| भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली सरकार का जनलोकपाल विधेयक (बिल) आजकल खासी चर्चा में है। सरकार का कहना है कि इस बिल को लागू करने के लिए उसने सभी संवैधानिक प्रक्रियाएं पूरी कर ली हैं। दूसरी ओर विपक्ष के साथ-साथ संविधान विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि इस बिल के साथ दिल्ली सरकार द्वारा विधानसभा में पेश किए गए अन्य बिल के भी पास होने में अड़चने आएंगी। उनका कहना है कि इन बिलों को लेकर संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है।
दिल्ली विधानसभा के शीतकालीन सेशन में कल उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कल अपने उस महत्वाकांक्षी बिल जनलोकपाल को पेश किया, जिसको लेकर आप आदमी पार्टी ने अपनी सरकार को कुर्बान कर दिया था। उन्होंने दावा किया कि इस बिल में ऐसे सभी प्रावधान किए गए हैं जो दिल्ली में “बिगड़े” जनप्रतिनिधियों और भ्रष्टाचार कर रहे सरकारी अफसरों की कार्यप्रणाली पर रोक लगाएगा। उनका कहना है कि इस बिल को पास करने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन इस बिल में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जो इसे राजनिवास या केंद्र सरकार द्वारा पारित होने में सवाल खड़े कर रहे हैं। जनलोकपाल में अफसरों व अन्य नियुक्तियों को लेकर वित्त विभाग को बजट मंजूर करना होगा। दूसरे इस प्रस्तावित लोकपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वह केंद्र सरकार के मंत्रियों व केंद्र के कथित भ्रष्ट अफसरों पर एक्शन ले सकेगा। इसमें उनकी संपत्ति जब्त करने के लिए अलावा लंबी सजा का भी प्रावधान है।
सूत्र बताते हैं दिल्ली विधानसभा में किसी भी बिल को पेश किए जाने से पहले उसे राजनिवास को भेजना जरूरी है। लेकिन उसे राजनिवास में भेजने से पहले से ही सदन में पास करने के लिए भेज दिया गया है। दूसरी ओर संविधान विशेषज्ञ व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा का कहना है कि जनलोकपाल बिल की बात तो अलग, दिल्ली सरकार ने हाल में सदन में जो भी बिल रखे हैं, उसे पेश करते हुए संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है। दिल्ली विधानसभा चूंकि केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए किसी भी बिल को विधानसभा में पेश करने से पहले उसे राजनिवास को भेजा जाना जरूरी है। उन्होंने इस बात की संभावना जताई कि राजनिवास के पास जब यह बिल आएगा तो इस बात की संभावना है कि किसी विवाद से बचने के लिए उपराज्यपाल सीधे इस बिल को राष्ट्रपति के पास भेज दें। शर्मा के अनुसार संभव है कि राष्ट्रपति इस बिल पर कोई निर्णय ही न लें और बिल राष्ट्रपति भवन में ही पड़ा रहे। इस बात की भी संभावना है कि राष्ट्रपति इस बिल को बिना पारित किए दिल्ली सरकार को दोबारा भेज दें और कहें कि इस बिल को पारित करने के लिए संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।
दूसरी ओर दिल्ली विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि ऐसा लग रहा है कि आप सरकार इन बिलों को विधानसभा में लाने के बजाय अपने पार्टी कार्यालय से उसे पारित कर रही है और इसके लिए सदन का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब इस बिल पर चर्चा होगी तो विपक्षी पार्टी इसका कड़ा विरोध करेगी।
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