‘2700 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से आईएएस की क्यों नहीं तय होती सैलरी?’
|मजूदर दिवस पर मजदूरों की सैलरी तय किए जाने के पैमाने पर बात करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘कैलोरी-नियम’ पर वार किया। उन्होंने कहा कि मजदूरों की और जरूरतें होती हैं, अगर कैलोरी के हिसाब से सैलरी तय होनी चाहिए तो आईएएस की सैलरी इस हिसाब से तय क्यों नहीं होती?
दिल्ली सरकार की योजनाओं से जुड़ी फाइलों पर एलजी की आपत्तियों का जिक्र करते हुए सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ऐसी हिटलरशाही तो उन्होंने नहीं देखी। न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी के फैसले को लागू करने में आई अड़चनों के बारे में बताते हुए सीएम ने कहा कि सरकार की कमिटी ने रिपोर्ट दी और न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी की फाइल एलजी को भेजी लेकिन उन्होंने इस आधार पर सारी सिफारिशें रिजेक्ट कर दीं कि कमिटी बनाने से पहले एलजी ऑफिस की मंजूरी नहीं ली।
सीएम ने कहा कि दोबारा कमिटी बनाई, वही सदस्य शामिल किए गए और वही सिफारिशें की गईं। छह महीने बाद दोबारा फाइल गई, फिर एलजी की मंजूरी मिली। दिल्ली की व्यवस्था ऐसी है कि जनता चुनती तो मुख्यमंत्री को है, लेकिन चलती एलजी की है। सीएम मंगलवार को मजदूर दिवस के मौके पर दिल्ली श्रमिक सम्मेलन में बोल रहे थे।
सीएम केजरीवाल ने कहा कि महंगाई इतनी ज्यादा है कि 9500 रुपये में मजदूर अपना घर चला ही नहीं सकता। इसलिए सरकार ने न्यूनतम मजदूरी में 37 पर्सेंट तक की बढ़ोतरी की। पहले जो कमिटी बैठा करती थी, वह 2700 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी तय करने की बात करती थी। यह भी कोई फॉर्म्युला है? क्या मजदूर अपने बच्चों के लिए कपड़े नहीं खरीदेगा या उसकी दूसरी जरूरतें नहीं हैं। दिल्ली सरकार ने साफ कर दिया कि कैलोरी खर्च के हिसाब से मजदूरी तय नहीं हो सकती। अगर कैलोरी के हिसाब से वेतन तय करना है तो फिर आईएएस अफसरों का वेतन इस हिसाब से तय क्यों नहीं कर दिया जाता?
सीएम ने कहा कि ठेकेदारी प्रथा को खत्म करके रहेंगे। ठेकेदारी प्रथा कानून, संविधान और इंसानियत के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अगर दिल्ली पूर्ण राज्य होता तो दस दिनों के अंदर सारे कच्चे कर्मचारियों को पक्का करके दिखा देते लेकिन लाख अड़चनों के बाद भी सरकार कच्चे कर्मचारियों को पक्का करके दिखाएगी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है और उम्मीद है कि कोर्ट का फैसला दिल्लीवालों, जनतंत्र के हक में होगा। उन्होंने ठेकेदारों को चेतावनी देते हुए कहा कि या तो सुधर जाओ, नहीं तो सुधारना आता है। दिल्ली सरकार ने तो न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 13500 रुपये कर दी लेकिन अभी भी कई जगह यह मजदूरी नहीं दी जा रही है। कुछ प्राइवेट संस्थानों की अपील पर कोर्ट में मामला चला और हाई कोर्ट का फैसला आने वाला है। उम्मीद है कि मजदूरों के पक्ष में फैसला आएगा। इसके बाद अगर कोई ठेकेदार न्यूनतम मजदूरी नहीं देगा तो सरकार सख्त कार्रवाई करेगी।
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